कोंकणी में केरल के मोडी लिपि में काव्य रचना की परंपरा बहुत प्राचीन काल से ही रही है। कोंकणी को समृद्ध करने के लिए इस मोडी लिपि ने कितने ही लेखक और कवियों को दिया है। उनमें ही एक प्रमुख कवि हैं-आर.एस. भास्कर। गोकुलदास प्रभु, शरत्चंद्र शैणै, के आर. वसंतमणी आदि गद्य साहित्य में अपने अमूल्य योगदान देनेवाले लेखक हैं। लेकिन पी.एन. शिवानंद शैणै ने भी भास्कर जी के साथ कोंकणी काव्य में बड़ा योगदान दिया है।
आर.एस. भास्कर जी को मैंने कितने ही सालों से कोंकणी के क्षेत्र में लिखने का प्रयत्न करते हुए देखा है। अपने छोटी-सी कद से समग्र कार्यक्रमों में मौन रहकर कार्य करनेवाले, सरस्वती के एक निष्ठावान सेवक हैं। कोंकणी के आंदोलन में सक्रिय रूप से कार्य करनेवाले, संघटना परिपक्व इस मनुष्य में एक संवेदनशील कवि भी है, उनकी ऋतु कविता-संग्रह की कुछ कविताओं को पढ़ने पर मैं सचमुच आश्चर्यचकित हो गई। एक सहृदय पाठक के रूप में उनकी कविताओं का आस्वादन करना मुझे अच्छा लगता है।
अक्षरां (1992), नक्षत्रां (1995), अक्षतां (1997) और अब युगपरिवर्तनांचो यात्री (युगपरिवर्तन के यात्री 2014) ऐसे एक से बढ़कर एक कविता-संग्रह को काव्याकाश में फैलानेवाले आर.एस. भास्कर जी काव्यभास्कर के एक चमकनेवाले किरण ही है। अक्षरां संग्रह के प्रस्तावना में उनके बारे में पुंडलीक नायक जी कहते हैं: "कवि का ज्ञान बहुत ही प्रबुद्ध और नज़र तीखी है।" पहले संग्रह के लिए ही कवि को दी गई स्वीकृति उनकी विशेषता को दर्शाती है। पहले के किसी भी प्रकार के चिह्न को न दिखाते हुए अपनी परिपक्वता का परिचय कवि देता है।
यह उनके समर्थ भाषा जीवन के ज्ञान का आविष्कार है। लगता है आज इस नये काव्य-संग्रह में कवि का यह ज्ञान और अधिक परिपक्व हो गया है।
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