वेदान्तशास्त्र के मुख्य प्रामाणित ग्रन्थ प्रस्थानत्रयी उपनिषद् ब्रह्मसूत्र और श्रीमदभगवद्गीता माण्डूक्यकारिका तथा योगवासिष्ठ है | इसमें योगवासिष्ठ संस्कृत भाषा का एक बृहत ग्रन्थ है | बृहत योगवासिष्ठ में लगभग बत्तीस हजार (३२०००) या तैंतीस हजार (३३०००) श्लोक है | यह ग्रन्थ योगवसिष्ठमहारामायण महारामायण आर्षरामायण वासिष्ठरामायण ज्ञानवासिष्ठ और वासिष्ठ आदि नमो से भी ज्ञात है | यह ग्रन्थ अत्यन्त आदरणीय है क्योकि इसमें किसी सम्प्रदायविशेष का उल्लेख नही है | भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक इसका पाठ मूल तथा भाषानुवाद में चिरकाल से होता चला आ रहा है | जो महत्तव भगवद् भक्तो के लिए भागवतपुराण और रामचरितमानस का है तथा कर्मयोगियों के लिए भगवद्गीता का है वहीं महत्तव ज्ञानियो के लिए योगवासिष्ठ का है | सहस्त्रो स्त्री पुरुष राजा से रंक तक इस अद्भुत ग्रन्थ के अध्ययन से प्रतिदिन के जीवन में आनन्द और शांति प्राप्त करते रहे है | इस ग्रन्थ में प्राय सभी ग्रन्थ के पाठको के अनुयोग के लिए सामग्री प्रस्तुत है | जहाँ अबोध बालक भी इनकी कहानिया सुनकर प्रसन्न होते है वह बड़े बड़े विद्वानो के लिए गहनतम दार्शनिक सिंद्धान्तो का इसमें प्रतिपादन है | ऐसा कोई भी प्रश्न नही है जिसका समाधान इसमें प्राप्त न हो | यह ऐसा अद्भुत ग्रन्थ है कि इसमें काव्य उपाख्यान तथा दर्शन सभी का आनन्द वर्तमान है | य सब श्रुतियों का सार एवं माण्डूक्यकारिका का वार्तिक व्याख्यान ग्रन्थ है |
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