आपके हाथों में यह पुस्तक आध्यात्मिक शक्ति से भरपूर है। यह एक आध्यात्मिक एवं प्रतिभाशाली युवक द्वारा की गई विश्वशान्ति यात्रा का सजीव चित्रण है। आध्यात्मिकता का समय और आयु से कोई प्रयोजन नहीं होता। यह आयु और समय की सीमा से परे, सदाबहार, सदा नवीन, बुनियादी सत्य का अनुभव है जो हमारे अन्दर स्पन्दित होता है और जो संपूर्ण रचना को धारण किए हुए है। यह 'सत्य' की चेतन तार है जो हमारे अस्तित्व में जीवनदायिनी स्वांस रूपी माला के रूप में गूंज रही है। आध्यात्मिक गुरु हमें दर्शाते हैं कि हम उस माला में अपने मन को कैसे लगा सकते हैं और वे हमें उत्साहित करते हैं उसको जानने के लिए। जब तक हम इस ग्रह पर जीवित हैं, और हमें यह मानव चोला जो प्रदान किया गया है, तो जीवन का रहस्य जानने के लिए पूरा प्रयत्न करना है। सद्गुरु का यह सर्वोच्च परोपकार है जो वे मानव जाति के लिए अपनी दया के अनन्त भण्डार के साथ अवतरित होते हैं।
आधुनिक समाज में जो संकट हर देश के वयोवृद्ध एवं बुजुर्गों को चिंतित किए हुए हैं, वह यह है कि युवा पीढ़ी के बहुत से युवक न केवल आध्यात्मिकता के नैतिक मूल्यों से दूर जा रहे हैं अपितु वे उनका उपहास भी कर रहे हैं और इन आदशों का तिरस्कार भी कर रहे हैं। माता-पिता इस असमंजस की स्थिति का सामना कर रहे हैं। हमारी भौतिक और तकनीकी उन्नति ने कई नई तरह की समस्याओं को जन्म दिया है। मानसिक तनाव बढ़ोतरी पर है। गला काटो प्रतियोगिता सामाजिक व्यवहार का मानदंड बन चुकी है। धन-सम्पत्ति संचित करना, गगनचुम्बी महत्त्वाकांक्षाएं, इन्द्रिय सुखों की बढ़ोतरी, अभिमानी व्यक्तियों का प्रभुत्व, विषयों में लिप्त जीवन शैलियों, निर्दयी शस्त्रों की दौड़, बढ़ता हुआ आतंकवाद, बदतर होते हुए नैतिक मूल्य, इन सब ने समाज में अस्त-व्यस्तता और बेचैनी को बढ़ावा दिया है। जितना दूर हम अपनी आत्मिक जड़ों से जा रहे हैं उतना अधिक भौतिक सुख प्राप्ति के सिद्धान्तों पर चल रहे हैं, फिर भी अपने आप को अपने जीवन में असंतुष्ट पा रहे हैं। इसीलिए बुद्धिमत सुझाव है, "वापिस प्रकृति की ओर" और "वापिस अपनी मूल सत्ता की ओर"। समय की आवश्यकता ऐसे महामानव को जन्म देती है। श्री विभु जी का मिशन युवा वर्ग को प्रेरित करना है ताकि वे उस आन्तरिक शक्ति को जागृत करें जो उनके अन्दर सुषुप्तावस्था में पड़ी है।
ईसा मसीह का कथन है, "मानव केवल रोटी से ही जीवित नहीं रहता।" हम आत्मा की शाक्ति से जीवित हैं जो दिव्य चिंगारी के रूप में हमारे अन्दर मौजूद है। आत्मा "सार्वभौमिक जीवन का विषय है।" जीने की कला सम्पूर्ण हो जाती है यदि आप सार्वभौमिक जीवन के रहस्य को जान लें जो समूची सृष्टि को एकता के सूत्र में बांधकर एक माला का रूप देता है।
अपनी इस सम्पूर्ण विश्व शान्ति यात्रा के दौरान श्री विभु जी ने मानवता और मानव धर्म के सिद्धान्तों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है; उस सामान्य सूत्र की ओर हमारा ध्यान खींचा है जो हम सबको आकर्षित करता है। आध्यात्मिकता हमें दूसरे धर्मों से नफरत करना या उनकी निन्दा करना नहीं सिखाती। वह ईश्वर की सर्वव्यापक सत्ता को जानने के लिए हम सब को प्रेरित करती है। श्री विभु जी का सन्देश और सदा रहने वाला आत्मज्ञान आज के विश्व के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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