स्त्री हमारे समाज की आधी आवादी का प्रतिनिधित्व करती है। समाज में स्त्री की भूमिका माता, पत्नी, पुत्री, बहन आदि, विभिन्न रूपों में रही है और अपने हर दायित्व का वह अच्छे से निर्वाहन करती रही है।
इस पुस्तक में प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग की स्त्री की जीवन यात्रा के बारे में बताने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार प्रत्येक युग में स्त्री अनेक उतार-चढ़ावों से गुज़री है।
पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। कभी परिवार द्वारा तो कभी समाज द्वारा पारंपरिक रूढ़ियों का वास्ता देकर उसे आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया गया। आज भी हमारे समाज में ऐसी अनेक कुप्रथाएं विद्यमान हैं जिनके कारण स्त्री का शोषण होता है।
परंतु आज की आधुनिक नारी अपनी प्रगति के रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार करने के लिए प्रर्यासरत है।
मानव जाति के विकास में स्त्री और पुरुष दोनों ने समान भूमिका का निर्वाहन किया है। स्त्री हो या पुरुष दोनों में से किसी एक के भी बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि स्त्री के विषय में बात की जाए तो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल पर दृष्टि डालने पर हमें यह ज्ञात होता है कि स्त्री आज तक अनेक उतार-चढ़ावों से गुज़रती आई है। जो स्थिति प्राचीन काल में थी वो अन्य कालों में बदलती गई। आधुनिक युग से पूर्व कहीं उसे सम्मान मिला तो कहीं अनेक प्रकार की प्रताड़नाओं की वह शिकार हुई।
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