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कौन हैं ये श्यामाचरण ?: Who is This Shamachurn? ? (Unravelling The Essence of The Fountain-Head of Kriyayoga)

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Item Code: HBF183
Author: Ashok Kumar Chattopadhyay
Publisher: Sanatan Yogadharma Prasar LLP
Language: Hindi
Edition: 2021
ISBN: 9788195150038
Pages: 336
Cover: HARDCOVER
Other Details 9.00x6.00 inch
Weight 570 gm
Fully insured
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Book Description
भूमिका

योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की जीवनी से सम्बन्धित ग्रंथ "पुराण पुरुष योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी" कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है। इसके उपरान्त "श्यामाचरण क्रियायोग व अद्वैतवाद" प्रकाश में आया, जिसमें उनकी उपलब्धियों में से चुने हुए एक सौ श्लोकों (विशिष्ट वक्तव्यों) की विषद व्याख्या प्रस्तुत की गई है। यद्यपि इन दोनों पुस्तकों के माध्यम से श्यामाचरण का प्रकारान्तर से सटीक परिचय तो दिया गया है फिर भी सर्वसाधारण के लिए वह कुछ अस्पष्ट सा है। अतएव ढेर सारे लोगों के अनुरोध पर इस पुस्तक की रचना की गई है ताकि हर कोई आसानी से श्यामाचरण का सटीक परिचय पा सके एवं सनातन धर्म के प्रति उनका क्या अवदान है, इसकी भी जानकारी पा सके। सामान्य लोगों की यह धारणा है कि श्यामाचरण एक विख्यात गृही योगी थे। केवल मात्र इतना ही उनका सही परिचय है क्या ? न कि और भी कुछ है? प्रचलित धारणा तो यही है कि जो योगाभ्यास करते हैं, वे योगी कहलाते हैं। हो सकता है कि ऐसी धारणा में कोई भूल नहीं, तथापि योगियों से परे भी तो योगी हैं। साधारण योगाभ्यासी भी योगी हैं एवं महादेव भी योगी हैं। ये दोनों ही योगी क्या एक हुए ? यदि नहीं, तो जिस किसी भी योगी के साथ श्यामाचरण की तुलना नहीं की जा सकती। महादेव जिस प्रकार से महान् योगी या योगी श्रेष्ठ हैं, श्यामाचरण भी वही नहीं हैं क्या ? महादेव एवं श्यामाचरण के बीच कहीं कोई पार्थक्य है क्या ? योगेश्वर हरि भी महायोगी हैं। योगेश्वर हरि एवं श्यामाचरण को पृथक-पृथक भाँपा जा सकता है क्या ?

गर्भ से ही सभी कुछ उत्पन्न होते हैं, सृष्टि होती है। इसीलिए उसे गर्भधारिणी या जगत् जननी कहा जाता है। ये गर्भधारिणी केवल माँ है ? पिता नहीं है क्या ? केवल मातृरूप मे ही यदि उनकी उपासना की जाय तो ऐसे मातृसाधक पितृस्नेह से वंचित नहीं हुए क्या? ठीक इसी प्रकार पिता, प्रभु व सखा के रूप में जो ईश्वर को पाना चाहते हैं वे मातृस्नेह से वंचित नहीं हुए क्या ? शास्त्र का कथन है-

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।

त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ।।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।

त्वमेव सर्व मम देवदेव ।।

तो फिर वे ही सर्वस्व नहीं हुए क्या? सामान्य दृष्टि से पुरुष या नारी अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। यदि यही ठीक है तो पुरुष देह से पुत्र का जन्म लेना एवं नारी देह से कन्या का जन्म लेना उचित था । किन्तु ऐसा नहीं हुआ करता। पुरुष देह के भीतर भी नारी एवं नारी देह के भीतर भी पुरुष है, क्योंकि एक ही पिता से पुत्र एवं कन्या दोनो उत्पन्न होते हैं। प्रकृति-पुरुष का यह सम्पर्क सकल सृष्टि में ही ओतप्रोत भाव से विद्यमान है। यही कारण है कि मातृउपासक पितृस्नेह से वंचित नहीं हुआ करते । ठीक इसी प्रकार पिता, प्रभु या सखा रूप में भजनकारी साधक भी मातृस्नेह से वंचित नहीं हुआ करते। यद्यपि ब्रह्म एक व अद्वितीय है तथापि वहीं से दो अर्थात् द्वैत की उत्पत्ति होती है। इसीलिए दो के मध्य भी एक विद्यमान रहता है।

इस दृष्टिकोण से श्यामाचरण को केवल मात्र पुरुषयोगी ही समझें क्या? उन्हें जगत्पित्ता या जगन्माता नहीं कहा जा सकता क्या? केले के पत्ते अर्थात् पत्तल पर जब हम भोजन करते हैं तो क्या उसके अपर पृष्ठ को बाद देकर ? योग एवं योगी क्या पृथक हैं? सामान्य अर्थ में जो योग का अभ्यास करते हैं उन्हें योगी एवं जिस कर्म को वे किया करते हैं उसे योग कहा जाता है। 'योग' शब्द का सामान्य अर्थ है दो का मिलन, किन्तु आध्यात्मिक अर्थ में चिन्ताशून्य अवस्था को ही योग कहा जाता है। योग यदि एक प्रकार का कर्म है तो कोई भी मनुष्य कर्मविहीन नहीं है। प्राण की चंचलता से ही कर्म की उत्पत्ति होती है। अतः कर्म एवं देह क्या अलग रह सकते हैं ? मिलन तो हुआ ही है। इस मिलन को जो जानते हैं वे ही योगी हैं एवं वे ही तब निश्चिन्त हैं ।

इसी भाव से यदि श्यामाचरण को जानने की चेष्टा की जाय तो उपर्युक्त सारे प्रश्नों की मिमांसा प्राप्त होगी एवं तभी यह जाना जा सकेगा कि श्यामाचरण हमारे कितने अपने हैं। उन्हें केवल 'अपना' कहना ही पर्याप्त होगा क्या ? वे क्या 'मैं' नहीं ? पुनः 'मैं' क्या वो नहीं ? इस पुस्तक के माध्यम से सुधी पाठक श्यामाचरण को यदि इसी भाव से ग्रहण कर सकें तो श्रम सार्थक होगा। भक्तिमान व्यक्ति तो ग्रहण करेंगे ही इसमें तनिक भी संदेह नहीं, किन्तु तार्किक, समालोचक, कट्टरपंथी, नास्तिक व साम्प्रदायिक लोग भी आसानी से यदि इसे ग्रहण कर सकें तो निश्चय ही श्रम सार्थक होगा। इसीलिए 'मानहुँश' (मानहोश) के उद्देश्य से इस पुस्तक को प्रस्तुत किया गया है।

पुस्तक में अनेक बातों का उल्लेख एकाधिक बार किया गया है। पाठक क्षमा करेंगे, क्योंकि योग की बातें बताते समय पुनरुल्लेख के सिवा कोई और उपाय ही नहीं है। यही कारण है कि गीता में भी पुनरुल्लेख मिलता है।

अमित देवान जी, नित्यानन्द मंडल, रतन सरकार, अरुण गण, अलोक चट्टोपाध्याय, मौमिता चट्टोपाध्याय, पार्थ सेन, मानसी दास, जयति कपूर, विजन सरकार, स्निग्धा गांगुली एवं अणिमा बन्द्योपाध्याय ने इस पुस्तक के लिए प्रभूत सहयोग किया है। पुस्तक के अन्त में परिशिष्ट अंश में भगवान् श्रीकृष्ण एवं भगवान् श्रीश्यामाचरण उभय के ही जन्मकुण्डलियों पर विचार किए हैं लक्ष्मीनारायण सिन्हा, सुबोध गोपाल घर चक्रवर्ती एवं मणिकान्त दे। इन्हें सहयोग प्रदान किया है मंजुला दे एवं मौमिता दे ने । इन सबों की मंगल कामना करता हूँ।

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