भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है, फिर भी विद्वानों के बीच प्रायः यह शिकायत मिलती है कि यह संस्कृति अपने इतिहास को अच्छी तरह से अभिलिखित नहीं करती। सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड रखने की इस कमी ने विशेष रूप से, पश्चिमी दिमाग को भ्रमित कर दिया है और निराश इतिहासकार इस जटिल बहुरूपदर्शी संस्कृति का कालानुक्रमिक अर्थ निकालने का प्रयास कर रहे हैं। भारत द्वारा अपने इतिहास का प्रतिपादन प्रत्यक्षतः तर्क में लिपटे आधुनिक दिमाग के लिए सनक भरा लग सकता है। लेकिन हमें यह समझने की आवश्यकता है कि एक ऐसी सभ्यता के लिए जिसने कला, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन, विज्ञान, ज्ञानमीमांसा, गणित और आध्यात्मिकता जैसे विविध क्षेत्रों में कुछ अत्यंत आश्चर्यजनक काम किए हैं, उसके ऐतिहासिक तथ्यों और कालक्रमिक घटनाओं का अभिलेखन सरल तथा निष्पक्ष ढंग से होना चाहिए। लेकिन यह, जैसा कि इस संस्कृति के हर पहलू में है, एक जाग्रत विकल्प है। भारत अपने इतिहास की गाथा द्वंद्वात्मक तरीके से सुनाता है, केवल तथ्यों, तिथियों और घटनाओं के रूप में नहीं, बल्कि कहानियों या पुराणों के रूप में जो हर समय और हर इंसान के लिए प्रासंगिक रहते हैं।
विशेष रूप से बात जब काशी की आती है, जिसका गौरवशाली अतीत सभी मानवीय अभिलेखों से पुराना है, तब इसके इतिहास को बुनने वाले रहस्यमयी धागों को सुलझाना लगभग असंभव लगने लगता है। तथ्य हो या किंवदंती, इतिहास हो या पुराण, भारत के आध्यात्मिक पथ पर काशी का मौलिक प्रभाव गहरा और निर्विवाद है। हालाँकि, 'कब' से अधिक महत्वपूर्ण हैं 'क्या' और 'क्यों'।
क्या है काशी? इसे क्यों बनाया गया? ग्रह पर सबसे जटिल और परिष्कृत मशीन है - काशी। इसका निर्माण एक नगर के रूप में, एक भव्य यंत्र के रूप में किया गया था। 54 किलोमीटर के दायरे में, पांच संकेंद्रित परतों में व्यवस्थित ज्यामितीय अनुपात की एक जटिल मशीन जिसके केंद्र में प्रकाश की एक मीनार 'काशी' है। जटिल ऊर्जावान अधिरचना के साथ एक विशाल मानव शरीर की तरह यह यंत्र, सूक्ष्म जगत (व्यक्तिगत मानव) और स्थूल जगत (ब्रह्मांड) के बीच मिलन हेतु निर्मित किया गया था। इसे इस तरह से डिजाइन और साकार किया गया था कि एक इंसान को ब्रह्मांडीय वास्तविकता के साथ एकजुट होने की अभूतपूर्व संभावना प्राप्त हो सके।
इस यंत्र-शहर की परिकल्पना अपनी महत्वाकांक्षा और पैमाने में इतनी चौंका देने वाली थी कि इसे शायद ही कभी दोहराया जा सके। यह वह अपूरणीय गुण है जिसने काशी को कई सहस्राब्दियों से इस सभ्यता का आधार, इस भूमि और लोगों की चेतना में एक स्थाई प्रकाशस्तंभ बना दिया है। इस पुस्तक के साथ, विक्रम संपत इस सातत्य को उजागर करने में आश्चर्यजनक रूप से सफल हुए हैं।
वैसे तो काशी की किंवदंती और दर्ज इतिहास का उनका चित्रण श्रमसाध्य, सूक्ष्म और प्रेमपूर्ण रहा है, परंतु मेरे लिए पुस्तक की मुख्य उपलब्धि यह है कि यह मार्मिक रूप से रेखांकित करती है कि काशी कैसे समय, आक्रमण, उपेक्षा, मुकदमेबाजी और संघर्ष के बावजूद भारत के आध्यात्मिक चरित्र की धड़कन बनी हुई है। काशी एक अटूट धागा है, वह सूत्र है जिस पर भारत की आध्यात्मिक गाथा के विभिन्न अध्याय पिरोए गए हैं।
प्रतिष्ठित इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत द्वारा लिखित इस उत्कृष्ट पुस्तक, 'प्रतीक्षा शिव की' के प्राक्कथन के रूप में कुछ शब्द लिखते हुए मुझे अत्यंत खुशी हो रही है। यह शीर्षक पौराणिक कथाओं के उनके स्वयं के पाठ से प्रेरित हैः किंवदंतियों में दर्शाया गया है कि कैसे भगवान शिव को काशी से 'निर्वासित' किया गया था, जिसे पुनः प्राप्त करने के लिए वह पूरे शाही गौरव के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं: जाहिर तौर पर, यहां लुटेरी मुस्लिम भीड़ द्वारा हमारे पवित्र तीर्थस्थलों पर किए गए दुष्कृत्यों का छिपा हुआ संकेत दिया गया है।
यद्यपि काशी-खंड (स्कंद पुराण का भाग) जैसे नए पौराणिक ग्रंथों ने भी काशी की महिमा का गुणगान करना जारी रखा, साथ ही टोडरमल के गुरु, नारायण भट्ट (1514-1594) द्वारा लिखित एक पाठ, त्रिस्थली सेतु में खुले तौर पर म्लेच्छादि-दुष्ट राजाओं, क्रूर मुस्लिम शासकों के घृणित कृत्यों का उल्लेख किया गया है, और लोगों से आग्रह किया गया है कि वे काशी के मूल स्थान का सम्मान जारी रखें।
काशी ही क्यों? इस प्रसिद्ध शहर का उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों- रामायण व महाभारत, और यहां तक कि वैदिक ग्रंथों (शतपथ ब्राह्मण) में भी मिलता है। मार्क ट्वेन (1897) का मानना था कि 'बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपरा से भी पुराना, किंवदंतियों से भी पुराना है, और उन सभी को मिलाकर भी उनसे दोगुना प्राचीन दिखता है'; एम एच शेरिंग (इंडोलॉजिस्ट) ने (1868) भी संक्षेप में कहा है कि यह शहर 'धार्मिक और बौद्धिक रूप से भारत का प्रतिनिधित्व करता है।' सभी हिंदू अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार काशी जाने की इच्छा रखते हैं, और यहां तक कि वहां मरने की अभिलाषा भी उनके मन में रहती हैं। एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग स्थल, ज्ञान वापी, 'ज्ञान का कुआं' भी यहां स्थित है, जिसमें भगवान तरल रूप में निवास करते हैं, और जिसका पानी पीने, या यहां तक कि स्पर्श मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है। आज हमारी अदालतों में चल रहा विवाद इसी पवित्र स्थान को लेकर है।
मुस्लिम राजाओं की नज़र शहर की दौलत पर भी थीः इलियट और डाउसन (1869) के अनुसार, 'शहाब-उद-दीन मोहम्मद गोरी (1194), 1400 ऊँटों पर अपना खजाना लादकर ले गयाः हसन निज़ामी (इतिहासकार) लिखते हैं कि वहाँ एक हजार मंदिरों में तोड़फोड़ की गई। मंदिरों का स्थान मस्जिदों ने ले लिया, जिनमें कई बार मंदिरों की ही सामग्री का उपयोग किया जाता था; या इससे भी बदतर, जैसा कि संपत ने इस पुस्तक में उल्लेख किया है, उनकी 'सामान्य विकृत मान्यताओं' को ध्यान में रखते हुए, मंदिरों के आधे हिस्से को लूटकर शेष आधे भाग को छोड़ दिया गया - यह शेष बचा भाग हिंदुओं को लगातार स्मरण कराने के लिए डिज़ाइन किया गया था कि उनके साथ कितनी सख्ती, घृणा और तिरस्कार का व्यवहार हुआ है! फिर भी, कोई भी पूरे इतिहास में हिंदुओं के 'प्रत्येक आपदा के बाद लचीले पुनरुत्थान' (जैसा कि संपत ने ठीक ही कहा है) को कभी भूल नहीं सकता।
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