प्रकाशकीय
'वेतालपचीसी' वेताल द्वारा राजा त्रिविक्रमसेन (विक्रमादित्य) को कही गई पच्चीस कहानियों का संग्रह है । यह कथा-संग्रह महाकवि गुणाढ्य की विलुप्त 'बृहत्कथा' की परम्परा में परिगणनीय है। इसमें भी 'बृहत्कथा' की भांति अद्भुत और रोमांचकारी यात्रा-विवरणों तथा विचित्र प्रणय-प्रसंगों का मनोहारी विनियोग हुआ है। 'वेतालपचीसी' को 'बृहत्कथा' का परोक्ष वंशज कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यद्यपि इसकी कथाओं की अपनी मौलिकता है।
'वेतालपचीसी' रोचक लोककथाओं का सुशोभन एवं सुव्यवस्थित संकलन है। इन कहानियों का, ग्यारहवें शतक में प्रचलित सर्वप्राचीन रूप क्षेमेन्द्र की 'बृहत्कथा-मंजरी' तथा सोमदेव के 'कथासरित्सागर' में उपलब्ध होता है। ये कहानियाँ बहुत ही हृदयावर्जक, बुद्धिवर्द्धक, ज्ञानोन्मेषक और नीतिप्रद हैं, साथ ही कौतूहलोत्पादक भी।
'वेतालपचीसी' की कहानियों को बहुत हद तक हिन्दी-कहानियों की प्रेरणा- भूमि भी माना जा सकता है । भले ही, इनका स्वरूप-विधान इनसे भिन्न हो। किन्तु संस्कृत और हिन्दी के आधुनिक काल के बीच गल्प की परम्परा अखण्डित रही है, इसलिए हिन्दी-कथाकारों का 'वेतालपचीसी' की कथा-रचनाप्रक्रिया से प्रभावित होना असम्भव नहीं है।
प्रवाहपूर्ण संस्कृत-गद्य में निबद्ध इस कथाकृति ने पौरस्त्य और पाश्चात्य कथा-मनीषियों को समानान्तरता के साथ प्रभावित किया है। इस दृष्टि से यह अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की कथाकृति है।
संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के बहुश्रुत साहित्यमनीषी डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव द्वारा सम्पन्न इस ऐतिहासिक कथाग्रन्थ का सरस साहित्यिक हिन्दी-अनुवाद प्रबुद्ध पाठकों को मौलिक ग्रन्थ का आस्वाद प्रदान करेगा। स्वयं वेताल के शब्दों में-
''ये कथाएँ कामदायिनी हैं। जो इसके अंशमात्र को भी कहेगा या सुनेगा, वह तत्क्षण पापमुक्त हो जायगा। जहाँ भी ये कहानियाँ कही जायेंगी, वहाँ यक्ष, राक्षस, डाकिनी, वेताल, कुष्माण्ड, ब्रह्मराक्षस आदि का प्रभाव नहीं पड़ेगा।''
कथा-क्रम
उपक्रमणी
1
कथावतरण
4
पद्यावती और वज्रमुकुट की कथा
6
2
मन्दारवती और तीन ब्राह्मणकुमारों की कथा
14
3
सुग्गा-मैना की कथा
17
शूद्रक और वीरवर की कथा
23
5
सोमप्रभा और तीन ब्राह्मणकुमारों की कथा
30
मदनसुन्दरी और धवल की कथा
33
7
चण्डसिह और सत्त्वशील की कथा
36
8
भोजनचण्ड, नारीचण्ड और तूलिकाचण्ड की कथा
43
9
अनंगरति और चार विज्ञानियों की कथा
47
10
मदनसेना और धर्मदत्त की कथा
50
11
धर्मध्वज और उसकी तीन पत्नियों की कथा
54
12
यशःकेतु और दीर्घदर्शी की कथा
57
13
हरिस्वामी और विप्रपत्नी की कथा
66
रत्नवती और चोर की कथा
70
15
शशिप्रभा और मन:स्वामी की कथा
74
16
मलयवती और जीमूतवाहन की कथा
80
उन्मादिनी और यशोधर की कथा
91
18
चन्द्रस्वामी और सिद्ध तपस्वी की कथा
95
19
धनवती और चोर की कथा
101
20
इन्दीवरप्रभा और चन्द्रालोक की कथा
107
21
अनंगमंजरी और कमलाकर की कथा
115
22
सिहोज्जीवक चार भाइयों की कथा
121
विप्रपुत्र के शरीर में अन्तःप्रविष्ट तपस्वी की कथा
124
24
चन्द्रावती और चण्डसिंह आदि की कथा
127
25
राजा त्रिविक्रमसेन की वेताल-सिद्धि की कथा
132
कथा का उपसंहार
136
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