स्वर्गीय डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ने गोरखवानी की भूमिका में गोरखनाथ के अतिरिक्त अन्य नाथ सिद्धों की बानियों को भी प्रकाशित करने की घोषणा की थी, किन्तु असमय की अक्स्मात देहान्त हो जाने के कारण यह कार्य न हो पाया | डाक्टर बड़थ्वाल की इस महान अधूरे कार्य प्रस्तुत संग्रह द्वारा पूरा करने का प्रयत्न किया गया|
प्रस्तुत संग्रह में नाथ सिद्धों की रचनाएँ संपादित है | इनके रचयिता नाथ सिद्धों की कुल संख्या 24 है | जिन नाथ सिद्धों की बानियाँ इस संग्रह में सम्पादित है, उसमे गोरक्ष, मत्स्येन्द्र चौरंगीनाथ, चर्पट, काणेरी, जालंधरि, गोपीचन्द और भरथरी ऐतिहासिक व्यक्ति है | इन लोगो का समय 9 वीं शताब्दी से 12ई. शताब्दी तक विस्तृत है | इनमे सर्वाधिक महिमामंडित व्यक्तित्व गोरक्षनाथ का है | बौद्ध सिद्धों और नाथ सिद्धों दोनों में समाहत मत्स्येन्द्र गोरख के गुरु थे |
आचार्य हजारी प्रसाद जैसे अधिकारी विद्वान् द्वारा सम्पादित यह कृति सभी दुष्टियों से उपादेय है |
युग प्रवर्तक समालोचक द्विवेदी जी का जन्म 19 अगस्त 1907 को बलिया जिले के 'भारत दुबे का छपरा' नामक गाँव में हुआ था | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण कर वे 'शांति निकेतन' में प्रध्यापक बने यहां रवीन्द्रनाथ टेगोर के सानिध्य में रहने का अवसर मिला तथा उनमे मानवता के प्रतीतदृढ़ आस्था पैदा हुई | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय चड़ीगढ़ में हिंदी के विभागाध्यक्ष भी रहे |
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आधुनिक हिंदी साहित्य की चेतना का प्रतीक है | उन्हें हिंदी का बाणभट्ठ कहा जाता है | वे कई संस्थाओ के संचालक तथा प्रबन्ध समिति के सदस्य रहे | सन् 1955 में राजभाषा आयोग की राष्ट्रपति मनोनीत सदस्य रहे | विभिन्न सम्मान एंव पुरस्कारों से सम्मानित हुए तथा सन् 1957 में इन्हे पद्मभूषण से नवाजा गया |
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