साहित्यकार की अनुभूति विविध रूपों में अभिव्यक्त होकर अनेक विधाओं को जन्म देती है तथा जनमानस में उसकी अनुभूतियाँ प्रकाशमान होकर समाज व संसार को आलोकित करती हैं। यही वह अमूल्य धरोहर है जो युगों-युगों तक समाज को अनुभूतिमय दिशा प्रदान करती है। साहित्य के पठन-पाठन से ज्ञान का अमूल्य कोष प्राप्त होता है साथ ही नित नवीन साहित्य मनीषियों, साहित्य प्रेमियों का जन्म होता है। भावना के सागर का मंथन करके साहित्यकारों ने नया साहित्य तथा नई विधाओं को जन्म दिया है। जब-जब हृदयांगन में पीड़ा का उद्भव हुआ है, तब-तब साहित्यकारों ने साहित्य-सरोवर में नव्य कमल-वृत्तों की रचना की है। भूत व वर्तमान की परिस्थितियों के अनुकूल वह युगों-युगों तक इंसान व समाज को प्रेरणा- स्रोत एवं मार्गदर्शक रहा है।
'उर्वशी का मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक अध्ययन' रामधारी सिंह 'दिनकर' कृत 'उर्वशी' पर राजकुमार शर्मा 'रंजन' द्वारा किया गया शोध- ग्रन्थ है, जो 'उर्वशी' महाकाव्य एक समालोचनात्मक अध्ययन (मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में) के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। समीक्षक, आलोचक डॉ. राजकुमार रंजन द्वारा प्रेम और सौन्दर्य की अनुभूति को अत्यन्त कलात्मक ढंग तथा बेबाक टिप्पणियों के साथ प्रस्तुत किया गया है। आलोचक की निरखने, परखने तथा तथ्यों के आधार पर उनके निष्कर्षों को बाकायदा जाँचा-परखा गया है। 'उर्वशी' महाकाव्य प्रेम की भव्य कविता है जो प्रेम को ही समर्पित है, जिसमें प्रेम के विविध रूपों की व्याख्या विस्तारपूर्वक वर्णित है। यह ग्रन्थ काम तथा प्रेम के मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक पक्षों को प्रकट करने वाला तथा पाठक के अन्तर्मन को छूने वाला शोधसार है। इसमें साहित्य से सम्बन्धित परिभाषाओं तथा उनकी व्याख्याओं को विस्तारपूर्वक समझाया गया है। इसके अतिरिक्त लेखक ने साहित्य के सम्बन्ध में अपने मंतव्य प्रकट किये हैं। दर्शन क्या है ? तथा साहित्य दर्शन के महत्व पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। समालोचनात्मक दृष्टि से साहित्य पर विभिन्न आचार्यों की चर्चाएँ प्रकाश में है।
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