लेखिका के विषय में
डॉ. शाहीना तबस्सुम
जन्म: दिल्ली
शिक्षा: एम ए., एम फिल पीएच डी, दिल्ली विश्वविद्यालय उर्दू पुस्तकें फरहग-ए-कलाम-ए-मीर (आलोचनात्मक भूमिका सहित), उर्दू में जदीद शेअरी रिवायत तसलसुल और इन्हिराफ़ (आलोचना) इक्कीसवीं सदी की शायरी (संपादन), मिस्टर जिनाह (अनुवाद) शेअर-ओ-अदब के बाब में (आलोचना), मेवे के पेड़ (अनुवाद) हिंदी पुस्तकें कुर्रतुल-ऐन-हैदर की श्रेष्ठ कहानियाँ (अनुवाद) उड़ान की शर्त, हिंदी कहानियाँ (संपादन), ज़ाफ़री की शायरी (संपादन), कुछ गजलें कुछ गीत (संपादन) पुरस्कार' मिर्जा गालिब प्रोईज़ (दिल्ली विश्वविद्यालय), दिल्ली, उर्दू अकादमी तथा उतर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा पुस्तकों पर पुरस्कार ।
संप्रति: असिस्टेंट प्रोफेसर, जाकिर हुसैन पोस्ट ग्रेजुएट इवनिंग कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) दिल्ली।
लेखक के विषय में
डॉ. कुलदीप सलिल
जन्म: 30 दिसंबर, 1938, सियालकोट (पाकिस्तान)
कुलदीप सलिल का पहला कवितासंग्रह 'बीस साल का सफर' सन् 1979 में प्रकाशित हुआ था कवि-समीक्षक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने जो उन दिनों सारिका के संपादक थे, अपनी वार्षिक समीक्षा में इसकी गणना वर्ष के सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में की यह संग्रह काफी चर्चित रहा । कुलदीप सलिल की दूसरी काव्य पुस्तक 'हवस के शहर में' जो कि एक गजल सग्रह है सन् 1987 में सामने आया पुस्तकाकार होने से पहले इस पूरे सग्रह को 'दीर्घा' ने अपने एक विशेषांक में प्रकाशित किया। दिल्ली हिंदी अकादमी ने 'साहित्यिक कृति पुरस्कार' के अंतर्गत इस सग्रहको सम्मानित किया । 'हवस के शहर में' से एक ग़ज़लकार के रूप में कुलदीप सलिल की पहचान बन गई। इनकी तीसरी पुस्तक ( और द्वय ग़ज़ल संग्रह) 'जो कह न सके' सर 2000 में प्रकाशित हुआ। और सन् 2004 में 'आवाज का रिश्ता' शीर्षक से तीसरा ग़ज़ल संग्रहवाणी प्रकाशन से सामने आया सन् 2005 में 20 अंग्रेज़ी काइयों का हिंदी काव्यानुवाद अग्रेजी के श्रेष्ठ कवि और उनकी श्रेष्ठ 'कविताएँ' के नाम से छपा हिंदी के अलावा अनेक पत्र-पत्रिकाओं मे इनकी अंग्रेज़ी कविताएँ हिंदी काव्यानुवाद सहित नियमित रूप मे कई वर्षों से प्रकाशित हो रही हैं । हाल में ही कुलदीप सलिल के ग़ालिब, फ़ैज, इक़बाल और अहमद फ़राज़ की कविता के अंग्रेज़ी काव्यानुवाद सामने आए हैं इस अनुवाद के लिए इन्हें साहित्य अकादमी और डी. ए. वी. लिटरेरी अवार्डसे कमेटी ने पुरस्कृत किया।
कुलदीप सलिल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम. ए. किया वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से अंग्रेज़ी विभाग से रीडर के पद से सेवामुक्त हुए हैं।
प्रकाशकीय
यह प्रसन्नता का विषय है कि नई पीढी में उर्दू शायरों को पढने-समझने का शौक बढ़ रहा है हम सभी का अनुभव यही है कि एक नया पाठकसमाज सामने आ रहा है और इस समाज की जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियाँ टूटी हैं रोजमर्रा की जिदगी में उर्दू-शायरी का बोलबाला बढा है और प्रबुद्ध वर्ग भाषणों-वार्ताओं में उर्दू शेर बोलता है उर्दूकी सबसे कीमती चीज है-उर्दू-ग़ज़ल उर्दू-ग़ज़ल का चस्का हिंदी-पाठकों कवियों को ऐसा लग गया है कि हिंदी के अनेक कवि उर्दू गजल की तर्ज पर हिंदी में ग़ज़ल लिख रहे हैं और हिंदी कवि सम्मेलनों में उर्दू ग़ज़ल की धूम रहती है । हिंदी के कवि उर्दू-ग़ज़ल मे नए-नए प्रयोग कर रहे हैं और इसमें नया भाव-बोध आ रहा है उर्दू जानने वालों की सख्या कम हो रही हे, लेकिन उर्दू शायरी के संकलन भारतीय भाषाओं के बाजार में खूब बिक रहे हैं इसका कारण है कि खडी बोली में हिंदी उर्दू दोनों भाषाओं के शब्द एकखास रग और लय का आनंद बढ़ा रहे हैं यह बात कितनी दिलचस्प है कि खड़ी बोली का पहला नमूना अमीर खुसरो में मिलता है।
आज उर्दू शायरी के नाम पर केवल जाम-ओ-मीना का, कोरे इश्क-मुहब्बत की सात खत्म हो चुकी है भारत में उर्दू सांस्कृतिक नवजागरण में सहयोग देनेवाली भाषा रही है आजादी के आंदोलन का एक बड़ा देशभक्ति, प्रकृति प्रेम का अरमान उर्दू-कविता में मिलता है। उर्दू में हिंदी की तरह हमारी जातीय अस्मिता निखरकर सामने आती है। सौंदर्य-बोध का नया गुलदस्ता उर्दू सजाती-सँवारती है । इस संकलन में वली दकनी से लेकर फ़ैज अहमद फ़ैज, बशीर बद्र, निदा फ़ाज़ली तक को आप एक साथ पाएँगे । मैं हिंदी-उर्दू-अंग्रेजी के विद्वान प्रो. कुलदीप सलिल के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिन्होंने एक विशिष्ट भूमिका के साथ यह संकलन पाठकों तक पहुँचाने का अविस्मरणीय श्रम किया है । हमें विश्वास है कि इस संकलन का पाठक खुले दिल से स्वागत करेंगे।
अनुक्रम
1
दो शब्द
13
2
वली दकनी
27
3
जिसे इश्क का तीर कारी लगे
28
4
कूच: ए-यार ऐन कासी है
29
5
मीर तक़ी मीर
30
6
यारो, मुझे मुआफ रखो, मैं नशे में हूँ
32
7
ग़फ़िल हैं ऐसे सोते हैं गोया जहाँ के लोग
33
8
फ़क़ीराना आए सदा कर चले
34
9
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
35
10
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
36
11
सोज़िशे-दिल से मुफ्त गलते हैं
37
12
आ जाएँ हम नज़र कोई दम ये बहुत है याँ
38
नजीर अकबराबादी
39
14
बुढ़ापा
40
15
मुहम्मद रफ़ी 'सौदा'
42
16
गुल फेंके हैं औरों की तरफ बल्कि समर भी
44
17
बदला तेरे सितम का कोई तुझसे क्या करे
45
18
ख़्वाजा मीर दर्द
46
19
तोहमतें चंद अपने जिम्मे धर चले
47
20
हम तुझसे किस हवस की फलक जुस्तजू करें
48
21
इन्शा अल्लाह ख़ाँ 'इन्शा'
49
22
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
50
23
असद उल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब'
51
24
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले-यार होता
53
25
आह को चाहिए इक उम्र, असर होने तक
54
26
किसी को देके दिल कोई नवा संजे-फुग़ाँ क्यों हो
55
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
56
नुक्ताचीं है ग़मे-दिल उसको सुनाए न बने
57
दिल ही तो है, न संगो-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यों
58
बाज़ीच-ए- अत्फ़ाल है दुनिया, मिरे आगे
59
31
सब कहाँ-कुछ लाला- ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
60
शेख़ मोहम्मद इब्राहीम ज़ौक
61
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली, चले
63
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
64
मोमिन ख़ाँ मोमिन
65
वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो
67
नावक-अंदाज़ जिधर दीद:-ए-जानाँ होंगे
68
बहादुर शाह ज़फ़र
69
न किसी की आख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
71
लगता नहीं है दिल मेरा, उजड़े दयार में
72
41
दाग़ देहलवी
73
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
75
43
दिल गया, तुमने लिया हम क्या करें
76
हसरत मोहानी
77
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
78
मोहम्मद इक़बाल
79
साक़ी नामा
81
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
84
तराना-ए-हिंदी
85
नया शिवाला
87
तस्वीरे-दर्द
89
52
अकबर इलाहाबादी
92
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
94
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर खुदा मिलता नहीं
95
एक फ़रज़ी लतीफ़ा
96
हंगामा है क्यों बरपा
97
अख़्तर शीरानी
98
ओ देस से आनेवाले बता
99
मजाज़ लखनवी
101
जमाले-इश्क़ में दीवाना
103
आवारा
104
62
नौजवान ख़ातून से
107
जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है
109
इज़्मे-ख़िराम लेते हुए आस्माँ से हम
110
जोश मलीहाबादी
111
66
शिकस्ते-ज़िंदाँ
113
एक गीत
114
सोज़े-ग़म दे के मुझे उसने ये इर्शाद किया
116
गुंचे! तेरी सादगी पे दिल हिलता है
117
70
जिगर मुरादाबादी
118
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना यह फ़साना है
120
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं
121
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
122
74
दुनिया के सितम याद, न अपनी ही वफ़ा याद
123
हफ़ीज़ जालंधरी
124
अभी तो मैं जवान हूँ
126
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके
130
फ़िराक़ गोरखपुरी
131
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
133
80
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
134
सुकूते-शाम मिटाओ, बहुत अँधेरा है
135
82
शाम भी थी बुआ धुआँ? हुस्न भी था उदास उदास
136
83
शामे-ग़म कुछ उस निगाहे-नाज़ की बातें करो
137
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं
138
शकील बदायूनी
139
86
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए- आम तक न पहुँचे
140
आज वो भी इश्क़ के मारे नज़र आने लगे
141
88
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
142
शामे-फ़िराक़ अब न पूछ, आई और आके टल गई
144
90
मुझसे पहली-सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
145
91
गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार चले
146
मेरे हमदम मेरे दोस्त
147
93
निसार मैं तेरी गलियों पे
149
अब वही हर्फ़े-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है
151
जाँ निसार अख़्तर
152
आख़िरी मुलाक़ात
154
हर एक रूह में इक ग़म छिपा लगे है मुझे
157
साहिर लुधियानवी
158
ताजमहल
160
100
मादाम
162
जब कभी उनकी तवज्जोह में कमी पाई गई
164
102
चंद कलियाँ निशात की चुनकर
165
अख़तर-उल-ईमान
166
उम्रे-गुरेज़ाँ के नाम
168
105
एक सवाल
170
106
कैफ़ी आज़मी
171
सोमनाथ
173
108
एक लम्हा
174
ख़ारो-ख़स तो उठे, रास्ता तो चले
175
अली सरदार ज़ाफ़री
176
सुबहे-फ़रदा
178
112
मेरा सफ़र
180
मजरूह सुलतानपुरी
183
मुझे सहल हो गईं मंजिलें वो हवा के रुख भी बदल गए
184
115
जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया
185
नासिर काज़मी
186
गए दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो
188
दयारे-दिल की रात में चिराग़-सा जला गया
189
119
नुशूर वाहिदी
190
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी
191
क़तील शिफ़ाई
192
ये मोजिज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे
194
उस अदा से भी हूँ मैं आशना, तुझे जिस पे इतना ग़रुर है
195
अहमद फ़राज़
196
125
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें
198
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
199
127
अब के ऋतु बदली तो खुशबू का सफ़र देखेगा कौन
200
128
परवीन शाकिर
201
129
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
203
चेहरा मेरा था निगाहें उसकी
204
शहरयार
205
132
तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या
207
तेरे सिवा भी मुझे कोई याद आनेवाला था
208
कुछ शे'र
209
बशीर बद्र
211
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
213
यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
214
निदा फ़ाज़ली
215
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है
217
ऐलान
218
सादिक़
219
तुम्हें क्या पता है
220
143
बिछड़ा हर एक फ़र्द भरे ख़ानदान का
222
कुलदीप सलिल
223
इस क़दर कोई बड़ा हो, मुझे मंज़ूर नहीं
225
दिन फ़ुर्सतों के, चाँदनी की रात बेचकर
226
है जो कुछ पास अपने सब लिए सरकार बैठे हैं
227
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