फैज़ाबाद की बच्ची 'अमीरन' के लखनऊ में तवायफ,उमराव जान से शायरा 'अदा' बनने तक के सफरको समेटती हुई यह कथा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध्द की विन्डंबनाओं, विसंगतियों तह अंग्रेजी दौर की तबाहियों का भी ख़ाका खींचती है! अपने रूप-सौन्दर्य, मधुर कण्ठ, नृत्य-कला, नफासत तथा अदबी तौर-तरीक़ों के कारन उमराव जान अमीरों-रईसों में ससम्मान लोकप्रिय रही! बचपन में ही बेघर हो जाने की वजह से ताउम्र वह मोहब्बत की तलाश में भटकती रहिन१ उसने वे साड़ी त्रासदियां भोगिन जो एक सवेंदनशील व्यक्ति के दरपेश होती है!
उपन्यास में भाषा का इस्तेमाल पात्रे और प्रस्थिति के अनुकूल है जो मार्मिक है और प्रभावशाली भी! उर्दू के अवधि लहज़े की मिठास इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है! अनुवादक गिरीश माथुर ने मूल भाषा की सजीवता बरक़रार राखी है !
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