परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएँ: True Incidents of the Other World and Rebirth

$14
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: GPA170
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Author: भक्त रामशरणदास पिलखुवा: (Bhakta Ramsharan Das Pilkhuva)
Language: Hindi
Edition: 2013
ISBN: 9788129302762
Pages: 152
Cover: Paperback
Other Details 8.0 inch X 5.5 inch
Weight 130 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description
<meta content="text/html; charset=windows-1252" http-equiv="Content-Type" /> <meta content="Microsoft Word 12 (filtered)" name="Generator" /> <style type="text/css"> <!--{cke_protected}{C}<!-- /* Font Definitions */ @font-face {font-family:Mangal; panose-1:2 4 5 3 5 2 3 3 2 2;} @font-face {font-family:"Cambria Math"; panose-1:2 4 5 3 5 4 6 3 2 4;} @font-face {font-family:Calibri; panose-1:2 15 5 2 2 2 4 3 2 4;} /* Style Definitions */ p.MsoNormal, li.MsoNormal, div.MsoNormal {margin-top:0in; margin-right:0in; margin-bottom:10.0pt; margin-left:0in; line-height:115%; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} a:link, span.MsoHyperlink {color:blue; text-decoration:underline;} a:visited, span.MsoHyperlinkFollowed {color:purple; text-decoration:underline;} p.MsoListParagraph, li.MsoListParagraph, div.MsoListParagraph {margin-top:0in; margin-right:0in; margin-bottom:10.0pt; margin-left:.5in; line-height:115%; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} p.msolistparagraphcxspfirst, li.msolistparagraphcxspfirst, div.msolistparagraphcxspfirst {mso-style-name:msolistparagraphcxspfirst; margin-top:0in; margin-right:0in; margin-bottom:0in; margin-left:.5in; margin-bottom:.0001pt; line-height:115%; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} p.msolistparagraphcxspmiddle, li.msolistparagraphcxspmiddle, div.msolistparagraphcxspmiddle {mso-style-name:msolistparagraphcxspmiddle; margin-top:0in; margin-right:0in; margin-bottom:0in; margin-left:.5in; margin-bottom:.0001pt; line-height:115%; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} p.msolistparagraphcxsplast, li.msolistparagraphcxsplast, div.msolistparagraphcxsplast {mso-style-name:msolistparagraphcxsplast; margin-top:0in; margin-right:0in; margin-bottom:10.0pt; margin-left:.5in; line-height:115%; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} p.font5, li.font5, div.font5 {mso-style-name:font5; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Mangal","serif"; color:black;} p.font6, li.font6, div.font6 {mso-style-name:font6; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Mangal","serif"; color:red;} p.xl65, li.xl65, div.xl65 {mso-style-name:xl65; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Times New Roman","serif"; font-weight:bold;} p.xl66, li.xl66, div.xl66 {mso-style-name:xl66; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Times New Roman","serif"; font-weight:bold;} p.xl67, li.xl67, div.xl67 {mso-style-name:xl67; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Mangal","serif"; font-weight:bold;} p.xl68, li.xl68, div.xl68 {mso-style-name:xl68; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Times New Roman","serif";} p.xl69, li.xl69, div.xl69 {mso-style-name:xl69; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Mangal","serif";} p.xl70, li.xl70, div.xl70 {mso-style-name:xl70; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Times New Roman","serif";} p.xl71, li.xl71, div.xl71 {mso-style-name:xl71; margin-right:0in; margin-left:0in; font-size:12.0pt; font-family:"Mangal","serif"; font-weight:bold; font-style:italic;} p.msopapdefault, li.msopapdefault, div.msopapdefault {mso-style-name:msopapdefault; margin-right:0in; margin-bottom:10.0pt; margin-left:0in; line-height:115%; font-size:12.0pt; font-family:"Times New Roman","serif";} .MsoChpDefault {font-size:10.0pt;} @page WordSection1 {size:8.5in 11.0in; margin:1.0in 1.0in 1.0in 1.0in;} div.WordSection1 {page:WordSection1;} -->--></style>

भूमिका

भारतीय संस्कृति और हिन्दूधर्ममें परलोक तथा पुनर्जन्मका सिद्धान्त अकाटय एवं आधारभूतरूपमें मान्य है । इसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे हमारे सभी शास्त्रोंने समर्थन किया है । वेदोंसे लेकर आधुनिक दार्शनिक ग्रन्थोंतकने इस सिद्धान्तकी एकमतसे पुष्टि की है ।

आज संसारमें जो पापोंकी वृद्धि हो रही है तथा झूठ, कपट, चोरी, हत्या, व्यभिचार एवं अनाचार बढ़ रहे हैं, व्यक्तियोंकी भांति राष्ट्रोंमें भी परस्पर द्वेष और कलहकी वृद्धि हो रही है, बलवान् दुर्बलोंको सता रहे हैं, लोग नीति और धर्मके मार्गको छोड़कर अनीति और अधर्मके मार्गपर आरूढ़ हो रहे हैं, लौकिक उन्नति और भौतिक सुखको ही लोगोंने अपना ध्येय बना रखा है और उसीकी प्राप्तिके लिये सभी लोग प्रयत्नशील हैं, विलासिता और इन्द्रियलोलुपता बढ़ती जा रही है, भक्ष्याभक्ष्यका विचार उठता जा रहा है, जीभके स्वाद और शरीरके आरामके लिये दूसरोंके कष्टकी तनिक भी परवाह नहीं की जाती, मादक द्रव्योंका प्रचार बढ़ रहा है, बेईमानी और घूसखोरी उत्रतिपर है, एकदूसरेके प्रति लोगोंका विश्वास कम होता जा रहा है, मुकदमेबाजी बढ़ रही है, अपराधोंकी संख्या बढ़ती जा रही है, असंतोष और असहिष्णुता इतनी बढ़ गयी है कि लोग बातबातपर आत्महत्या करने लगे हैं, हत्याओंके कारण मनुष्यका जीवन असुरक्षितसा हो गया है, दम्भ और पाखंडकी वृद्धि हो रही हैइन सबका कारण यही है कि आत्माकी अमरता और परलोकमें विश्वास नहीं है तथा लोगोंने केवल वर्तमान जीवनको ही अपना जीवन मान रखा है । इस्के आगे भी कोई जीवन हैइसका कोई ख्याल हो नहीं है । इसीलिये वे वर्तमान जीवनको ही सुखी बनानेके प्रयत्नमें लगे हुए हैं । जबतक जीओ सुखसे जीओ, ऋण लेकर भी अच्छेअच्छे पदार्थोका उपभोग करो, मरनेके बाद भस्मीभूत जीवका पुनर्जन्म तो हीना नहीं

यावज्जीवेत् सुखं जीवेदृणं कृत्वा मत पिबेत् ।

भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत ।।

चार्वाकके नास्तिक दर्शनका यह सिद्धान्त आजके मनचले लोगोंका आदर्श बनता जा रहा है ।

इसी सर्वनाशकारी मान्यताकी ओर आज प्राय संसार जा रहा है । यही कारण है कि वह सुखके बदले अधिकाधिक दुःखमें ही फँसता जा रहा है । परलोक और पुनर्जन्मको न माननेका यह अवश्यम्भावी फल है । इस्लाम और ईसाई धर्मोंमें पुनर्जन्म न माननेका कारण योग एवं आत्मविद्याका अभाव ही है तथापि पुनर्जन्मकी घटनाएँ तो उनके सामने भी आती हैं । भारतवर्षमें जैन तथा बौद्ध आदि अवैदिक मतोंमें भी पुनर्जन्म स्वीकार किया गया है । केवल चार्वाकने अर्थ तथा कामकी दृष्टिकी मुख्यतासे धर्म एवं मोक्षको स्वीकार नहीं किया है । चार्वाकदर्शनमें पुनर्जन्मके सिद्धान्तका विरोध किया गया है । विदेशोंमें भी मार्क्सके सिद्धान्तके अनुसार पुनर्जन्मके सिद्धान्तको व्यर्थ और झूठा बताया गया है । परंतु गम्भीरतापूर्वक विचार करनेपर यह बात पूर्णत समझमें आ जायगी कि यदि पुनर्जन्म नहीं माना जायगा तो सांसारिक व्यवस्था सम विषमरूपसे जो चल रही है, उसका कोई ठीक समाधान हो ही नहीं सकता, किसी भी भौतिक उपायसे यह असम्भव है । पुनर्जन्मको न माननेकी स्थितिमें कुछ अत्यन्त भयानक दोषोंकी उत्पत्ति अवश्यम्भावी हो जाती है । जो कुछ मनुष्यको इस जीवनमें मिल रहा है, वह बिना किये हुए ही है । कोई बुद्धिमान् कोई मूर्ख, कोई धनी, कोई गरीब, कोई महात्मा, कोई दुष्ट क्यों है इन भेदोंका समाधान हो ही नहीं सकेगा । वर्तमानमें जो धर्मात्मा शुभ कर्म कर रहे हैं, अधर्मीपापी जो पाप करते हैं, उसका फल उन्हें नहीं मिलेगा न् क्योंकि मरनेके पश्चात् फिर जन्म न होनेसे दोनों एकसे ही होंगे । अत यह सर्वतोभावेन स्पष्ट है कि इन भयानक दोषोंका समाधान परलोक और पुनर्जन्मके सिद्धान्तसे ही सम्भव है । हिन्दू धर्ममें वेद और शास्त्र तो परलोक और पुनर्जन्मके सिद्धान्तका प्रतिपादन मुख्यरूपसे करते ही हैं, इसके साथ ही यह सिद्धान्त सर्वांशत तर्कपूर्ण और युक्तिसंगत भी है ।

पुनर्जन्म भारतीय दर्शनका एक प्रमुख विवेच्य विषय है । यहाँके बड़ेबड़े दार्शनिकों, तत्त्वचिन्तकों, मनीषियों और तार्किकोंने इसपर अत्यन्त गम्भीरतापूर्वक मननचिन्तन किया है । आस्तिकदर्शनोंमें पुनर्जन्मका सिद्धान्त निर्विवाद मान लिया गया है । बौद्ध तथा जैनदर्शन इसे डंकेकी चोटपर स्वीकार करते हैं । बौद्ध जातकोंमें तो तथागतके पूर्वजन्मोंकी हजारों वर्षकी कथाएँ लिपिबद्ध हो चुकी हैं । न्यायदर्शनका तो यह प्रतिपाद्य विषय रहा ही है । गीताजैसी सर्वतन्त्रसिद्धान्त एवं विश्वसम्मान्य पुस्तकमें भी पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्मका उल्लेख है

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।

भगवान्की वाणी ध्रुवसत्यकी ओर अंगुलिनिर्देश कर रही है । जन्म और मरणमें अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है । जन्म है तो मृत्यु भी है और मृत्यु है तो जन्म भी स्वयं सिद्ध है । मृत्यु सिद्ध है तो जन्म क्यों कर असिद्ध हो सकता है?

पूर्वजन्म, पुनर्जन्म तथा पुन पुनर्जन्मसभीका एक कारण है कर्म । संसारमें प्रत्यक्षरूपसे यह अनुभव होता है जो जैसा करेगा वैसा उसे भोगना पड़ेगा, प्रत्येक कर्मका तदनुरूप फल भोगना ही होता है । कई प्रकारके कर्मोंका परिणाम तुरंत हाथोंहाथ मिल जाता है, किंतु अनेक कर्म ऐसे भी होते हैं कि जिनका फल कालान्तरमेंकिन्हीकिन्हीका बहुत कालके पश्चात् दिखायी देता है । मनुष्यजीवनमें प्रतिदिन अनेक प्रकारके कर्म होते रहते हैं । शरीरसे, वाणीसे, मनसे मनुष्य निरन्तर कर्म करता ही रहता है । कर्मके बिना एक क्षण भी वह रह नहीं सकता

न हि कश्रिन्धणमपि जानु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।

इन असंख्य कर्मोंमेंसे कुछ कर्म यद्यपि सद्यफलदायी, कुछ विलम्बसे परंतु इसी जीवनमें फल देनेवाले होते हैं, तथापि अनेक कर्मोंका परिणाम फल भोगरूपमें इसी जन्ममें अनुभवमें नहीं आता ।

भारतीय दर्शनके अनुसार कर्मोंका फल परलोकमें अथवा कर्मके अनुसार किसी योनिमें जन्म लेकर पुनर्जन्मके रूपमें भोगना पड़ता है । जो लोग सात्त्विक कर्म करते हैं, उन्हें ऊर्ध्वगति प्राप्त होती है, राजसलोग मध्यम गतिवाले हैं तथा तामसलोग जघन्य योनियोंको प्राप्त होते हैं । बार बार रागद्वेषात्मक कर्मफलोंमें आसक्त रहनेसे जीव जन्ममरणके चक्रमें पड़ा रहता है ।

जिनके मनमें भोग भोगनेका संकल्प नहीं है, उनके लिये जन्म मरणके बन्धनसे छूटकर तत्काल परब्रह्म परमात्माको प्राप्त हो जाना ही उनका मुख्य फल बतलाया गया है । ब्रह्मज्ञानका फल भी जन्ममृत्युरूप संसारसे छुटकारा पाना ही है । यज्ञ, दान और तपरूप तीन कर्मोंको करनेवाला मनुष्य जन्ममृत्युसे तर जाता है । श्रुति कहती है

तमेव विदित्वाति मृत्युमेति

नान्य पन्था विद्यतेऽयनाय । ।

अर्थात् उस परमात्माको जानकर ही मनुष्य जन्ममरणकी सीमाको लाँघ जाता है । परमपदप्राप्तिके लिये यह मुख्य मार्ग है ।

प्रस्तुत पुस्तकमें पुनर्जन्मकी कुछ प्रत्यक्ष घटनाओंका संकलन किया गया है । कल्याण के पूर्वप्रकाशित विशेषाङ्क परलोक और पुनर्जन्माङ्क तथा अन्य सामान्य अङ्कोंमें प्रकाशित पुनर्जन्मकी सच्ची घटनाएँजो गोलोकवासी भक्त श्रीरामशरणदासजी पिलखुवावालेके द्वारा समय समयपर भेजी गयीं, उन्हें यहाँ संगृहीत किया गया है । गोलोकवासी श्रीरामशरणदासजी सनातनधर्मके परम अनुयायी, भगवद्भक्त तथा सात्त्विक एवं परिष्कृत विचारोंके लेखक थे । पुनर्जन्मकी घटनाएँ निरन्तर प्रकाशमें आती रहती हैं । उन्हें जब भी घटनाओंके विषयमें जो जानकारी हुई, उनकी सत्यताका पता लगाकर कल्याण में प्रकाशनार्थ उन्होंने प्रेषित किया । इसके अतिरिक्त उनके द्वारा प्रेषित कुछ अन्य घटनाएँ भी प्रकाशित की जा रही हैं ।

आशा है, इन सत्य घटनाओंको पढ़नेसे परलोक एवं पुनर्जन्मके सिद्धान्तोंमें जनमानसकी आस्था सुदृढ़ होगी और वे शुभ कर्मोंकी ओर अग्रसर होकर सन्मार्गपर चलनेकी प्रेरणा प्राप्त करेंगे ।

 

विषय सूची

1

पितामहका पौत्रके रूपमें जन्म

1

2

प्रेतयोनिके बाद पुनर्जन्म

7

3

जसबीरका वृत्तान्त

18

4

कंजरका पुनर्जन्म

24

5

मृत्युके पश्चात् लौटे हुए लोगोंकी घटनाएँ

29

6

पुनर्जन्ममें योनि परिवर्तन

41

7

एक हजार वषर्प्तेंक प्रेतयोनिमें रहनेवाले मुसलमान पीर सुलेमानका वृत्तान्त

44

8

श्राद्ध तर्पण एवं ब्राह्मण भोजनसे परलोकगत आत्माकी तृप्ति तथा संतुष्टि

42

9

श्रीमद्भागवतमहापुराणकी विल क्षण महिमा

48

10

वह पहले जन्ममें लखनऊके एक रईस मुसलमानका बेटा था

64

11

पूर्वजन्मके योगी संस्कारी कुत्ते

73

12

पापका फल अवश्य ही भोगना पड़ेगा, भगवान्के यहों देर है अंधेर नहीं

83

13

यमदूत दर्शन

88

14

एकादशी व्रतकी महिमासे परलोकसे लौट आए

91

15

धर्मवीर बालक मुरली मनोहर

98

16

इच्छा मृत्यु

104

 

कुछ अन्य मार्मिक घटनाएँ

 

17

एक ईसाई लाटपादरीका श्रीकृष्ण स्मरण, प्रार्थनासे रोग नाश तथा विल क्षण परिवर्तन

110

18

स्वप्नके पापका भीषण प्रायश्चित्त

119

19

श्रीसीतारामने अंग्रेज इंजीनियरके प्राणोंकी रक्षा की

122

20

गायत्री माताकी भक्तिका विलक्षण फल

126

21

पीपलका चमत्कार

134

22

फ्रांसका एक महान् विद्वान् हिंदू धर्मकी शरणमें आकर शिवशरण कैसे बना

142

23

संन्यासी और बाह्मणका धनसे क्या सम्बन्ध

146

24

शास्त्रानुसार चलकर ही परलोक सुधारा जा सकता है

150

 







Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories