पुस्तक परिचय
तोडलतन्त्रम्-यह तन्त्र केवल अधिकारीगण के लिए ही है। यथाविधि दीक्षित तथा कौलगुरु के शरणापत्र होने पर ही इस तन्त्र में उक्त की गई साधना फलदायी हो सकती है। पंचमकार पद्धति का आश्रम लेकर साधना-पथ पर अग्रसर होने का विधान भी सांकेतिक रूप से इसमें वर्णित है। सदगुरु का आश्रय लेकर इस तन्त्रोक्त विधान का अनुशीलन करने पर वांछित फल प्राप्त किया जा सकता है।
निर्वाणतन्त्रम्-यह मूलत: कौल-साधनापरक ग्रन्थ कहा जा सकता है। इसमें कौलसाधना अन्तर्गत पचंमत्तव (पंचम मकार) परक साधना को इंगिग करने के साथ-साथ उसके रहस्यों उद्घाटन करते हुये जिस प्रकार की संकेतात्मक पद्धति अपनाई गई है उससे प्रतीत होता है कि उच्चस्तरीय कौलगुरु के लिये विनानात्मक निर्देश देने-हेतु इसका प्रणयन किया गया है, जो कि प्राथमिक विधान के पूर्ण वेत्ता होने हैं। इसमें निहित तत्वों को जानने के लिये अनुसन्धित्सुओं के लिये 'आगमतत्व विलास' 'सर्वोल्लासतन्त्र' के साथ-साथ अन्य कौलसाधना-परक ग्रन्थों का अध्ययन करना आवशक है । ऐसा करने पर ही इस ग्रन्थ के साधनतत्वमय महत्व का वास्तविक आकंलन किया जा सकेगा।
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