हिमालय की तलहटी के हरे-भरे जंगलों के बीच रहने वाले रस्किन बॉण्ड के सरल पात्न अपनी शांत वीरता, साहस, शालीनता, ईमानदारी और निष्ठा के सदियों पुराने मूल्यों के लिए उल्लेखनीय हैं। साधारण गाँवों और कस्बों के निवासी, प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ पीड़ा से भरा जीवन जीते हैं-प्यारे माता-पिता की हानि, अधूरे सपने, प्राकृतिक आपदाएँ और भूतिया मुलाकातें, जो केवल भगवान, परिवार और पड़ोसियों में उनके स्थायी विश्वास को मज़बूत करती हैं। रस्किन की विशिष्ट शैली में लिखी ये कहानियाँ उस भारत का शानदार उद्घोष हैं, जो तेज़ी से लुप्त हो रहा है।
इस पुस्तक की कहानियों में आप भारत के वास्तविक गाँवों को पाएँगे। शामली में ठहरा वक़्त और अन्य कहानियाँ पुस्तक की कहानियों में वास्तविकता का अद्वितीय रूप दिखता है और पढ़ने वालों को अपने प्रेम और समृद्ध भारतीय संस्कृति के साथ जुड़ने का मौका देती हैं। यह पुस्तक रस्किन बॉण्ड की कल्पना और व्यक्तिगत अनुभव का एक प्रिय उदाहरण है।
रस्किन बॉण्ड ने केवल 17 साल की उम्र में अपना पहला उपन्यास द रूम ऑन द रूफ़ लिखा था। इसे वर्ष 1957 में जॉन लेवेलिन राइस मेमोरियल पुरस्कार मिला। तब से उन्होंने कई उपन्यास, निबंध, कविताएँ और बच्चों की किताबें लिखी हैं। उनमें से कई किताबें पेंगुइन द्वारा प्रकाशित की गई हैं। उन्होंने 500 से अधिक कहानियाँ और लेख भी लिखे हैं, जो विभिन्न पत्निकाओं और संकलनों में छापे जा चुके हैं। उन्हें वर्ष 1992 में साहित्य अकादमी, 1999 में पद्मश्री और वर्ष 2014 में पद्मभूषण जैसे पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।
रस्किन बॉण्ड का जन्म कसौली, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। वे जामनगर, देहरादून, नई दिल्ली और शिमला में पले-बढ़े। अपनी युवावस्था में उन्होंने चार साल इंग्लिश चैनल के द्वीपों और लंदन में बिताए। वे वर्ष 1955 में भारत लौट आए। अब वे मसूरी के लंढौर शहर में अपने दत्तक परिवार के साथ रहते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि असली भारत इनके गाँवों में पाया जाता है। कुछ लोग यह सोचते हैं कि भारत तो अपने बड़े शहरों और औद्योगिक केंद्रों में नज़र आता है। मेरे लिए भारत हमेशा से एक माहौल रहा है, एक भौगोलिक इकाई से ज़्यादा भावनात्मक रहा है। अगर मुझे साफ-साफ कहना हो, तो मैं कहूँगा कि भारत वास्तव में अपने छोटे शहरों में ही पाया जाता है।
छोटे शहरों का भारत-यही है मेरा भारत। शामली और शाहगंज, पानीपत, पीपलकोटी, अलवर, अंबाला, अल्लेप्पी, कालका, कसौली और कोलार गोल्डफील्ड्स का भारत और नदियों के किनारे, समंदर के किनारे, पहाड़ों पर फैले या जंगलों और रेगिस्तान की एकरसता को तोड़ते हज़ारों अन्य छोटे शहरों का भारत। उन सबका मिला-जुला रूप ऐसा है कि कि उन शहरों के नाम बेमानी हो जाते हैं। वे भारत का दिल हैं, विशाल मानव क्षमता का अभी तक इस्तेमाल न किया गया स्रोत हैं वे। चुनावी दौर को छोड़कर वे अमूमन उपेक्षित ही रहते हैं।
मुझे लगता है कि मैं ख़ुद एक छोटे शहर का लड़का होने के नाते पूर्वाग्रह से ग्रसित हूँ। मेरे बायोडाटा में बस यह लिखा है: कसौली में पैदा हुआ, जामनगर में बचपन बीता, देहरादून में बड़ा हुआ, शिमला में पढ़ा, आगरा, अंबाला और ऋषिकेश में कुछ रोमांचक हरकतें कीं और अब मसूरी में बसा हुआ है ! देहली दूर अस्त... दिल्ली दूर है और बंबई, मेरे जीवन-भर तुम कहाँ रहीं? क्या मुझसे कुछ अनमोल चीज़ छूट गई है? क्या रुड़की यां शाहजहापुर की धूल भरी गलियाँ चुनकर मैं कलकत्ता और मद्रास के नज़ारों से चूक गया या मैंने पीसा की झुकी हुई मीनार के सामने झुक जाने या वेनिस की नहरों की सुगंध लेने का आख़िरी मौका खो दिया? अगर ऐसा हुआ है तो कोई बात नहीं। हमारी अपनी खुशबुएँ भी काफी दिलचस्प होती है।
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