लेखक परिचय
वर्तमान झारखण्ड प्रदेश की सास्कृतिक राजधानी के रूप मे प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिग में से एक हार्दपीठ रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ धाम देवधर जिला के मधुपुर मैं 20 जुलाई 1971 को स्व. श्री सुरेन्द्र नाथ झा एवं श्रीमती प्रभावती देवी के कनिष्ठ सुपुत्र के रूप में संजय कुमार झा का जन्म हुआ ।
प्रारंभिक एवं उच्चमाध्यमिक परीक्षा 1986 व 1988 मधुपुर देवधर से उत्तीर्ण करने के पश्चात् भागलपुर विश्वविद्यालय से बी. ए. संस्कृत प्रतिष्ठा की परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान में प्राप्त की तत्पश्चात् दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू महाविद्यालय से स्नातकोत्तर कला संस्कृति निष्णात (M.A 1995) मैं उत्तीर्ण होकर दिल्ली विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग से एम. फिल. एवं पीएच. डी. (2002) की उपाधि प्राप्त की ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से NET 1998 की परीक्षा उत्तीर्ण की साथ ही बिहार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से बट (BET) की परोक्षा 1995 में उत्तीर्ण किया। वर्त्तमान मे '' मदर्स इन्टरनेशनलस्कूल '' में संस्कृत विभा गाध्यक्ष के रूप में कार्यरत है ।
साथ ही N.C.E.R.T हा मे भी समय समय पर विषयविशेषज्ञ के रूप मे कार्य करते रहे हैं। पिछले दो वर्षो सै मदर्स इन्टरनेशनल सस्कृत पत्रिका नव चेतना का सम्पादन तथा साथ ही हिन्दूकॉलेज की संस्कृतविभागीय पत्रिका का भी सम्पादन किया ।
रामनाम सवा आश्रम उज्जैन का एक प्रकल्प ''विद्योत्तमा सम्मान समारोह'' समिति के संयोजक के रूप में पिछले तीन वर्षो सं कार्य किया जा रहा है जिस संस्था की अध्यक्षा श्रीमती वीणा सिंह जी है।
दो शब्द
परमपूज्य मौनी बाबा जी की असीम अनुकम्पा से हमारे पूज्य गुरुजी श्री बलदेव राज शर्मा के द्वारा सुझाए गए विषय पर आज इस पुस्तक को पूर्णता की स्थिति में देखकर हमें अपार आनन्द का अनुभव हो रहा है । उनका शिष्य एतदर्थ आभार व्यक्त करने की स्थिति में नहीं वरन् जीवन भर उनके आशीर्वाद की कामना करता है ।
इस पुस्तक से न केवल संस्कृत के विद्वानों को लाभ होगा वरन् सामान्य व्यक्ति को भी उपनिषद् के गूढ़ रहस्यों से साक्षात्कार करने का अवसर प्राप्त होगा ऐसा लेखक का विश्वास है । इस लाभ को जनमानस तक पहुँचाने हेतु मैं सर्वप्रथम कुलपति राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान प्रो. वेम्पटि कुटुम्बशास्त्री व डॉ. प्रकाश पाण्डेय जी के प्रति कृतज्ञ हूँ एवं हृदय से धन्यवाद करता हूँ ।
मैं इस श्रृंखला में अपने पूज्य पिता स्व. सुरेन्द्रनाथ झा एवं श्रद्धया माँ श्रीमती प्रभावती देवी को धन्यवाद देना सूर्य को दिया दिखाने के बराबर है। उनके द्वारा प्रदत्त जीवन का एक एक पल जिसने आज हमें इस मुकाम पर पहुँचाया है । उससे मैं कभी उर्ऋण नहीं हो सकता और न ही चाहता हूँ । साथ ही अपनी जीवनसंगिनी श्रीमती किरण झा व पुत्र अंकित झा का धन्यवाद किए बिना नहीं रह सकता जिन्होने हर कठिनाई व सुख के समय सान्त्वना दे कर हमें प्रोत्साहित किया ।
साथ ही पूजा दीदी श्री वीणा सिंह को धन्यवाद दिए बिना नहीं रह सकता जिन्होंने एक अनुज के भांति जीवन के हर मोड़ पर मेरा मार्ग प्रशस्त किया\। भविष्य में भी उनके प्यार व शुभकामना की मैं कामना करता हूँ ।
अन्त में अपने गुरुजनों प्रो. मदनमोहन अग्रवाल डॉ. कांशीराम दीप्ति त्रिपाठी शशिप्रभा कुमार व देवेन्द्र मिश्र को हृदय से नमन करता हूँ जिन्होने हर मोड़ पर इस कार्य को पूरा करने में प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से प्रोत्साहित किया ।
एकबार पुन. मैं प्रो. वे. कुटुम्बशास्त्री व डॉ प्रकाश पाण्डेय का धन्यवाद करता हूँ । अन्त में मनोयोग से मुद्रण कार्य व शुद्धता हेतु भाई हीरा लाल जी को धन्यवाद दिए बिना कैसे रह सकता हूँ, जिन्होंने इसे एक रूप प्रदान किया ।
विषय सूची
प्राक्कथन
iii
v
प्रथम अध्याय
भूमिका
1
द्वितीय अध्याय
तत्त्वमीमांसीय पारिभाषिकशब्द
117
तृतीय अध्याय
ज्ञान मीमांसीय पारिभाषिक शब्द
216
चतुर्थ अध्याय
आचारमीमांसीय पारिभाषिक शब्द
240
पंचम अध्याय
प्रकीर्ण पारिभाषिक शब्द
273
षष्ठ अध्याय
उपसंहार
290
7
सदर्भ ग्रन्थ
310
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12583)
Tantra ( तन्त्र ) (1014)
Vedas ( वेद ) (706)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1903)
Chaukhamba | चौखंबा (3353)
Jyotish (ज्योतिष) (1457)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1388)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23147)
History (इतिहास) (8260)
Philosophy (दर्शन) (3396)
Santvani (सन्त वाणी) (2590)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist