भीष्म साहनी तमस
मुझे ठीक से याद नहीं कि कब बम्बई के निकट, भिवंडी नगर में हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए। पर मुझे इना याद है कि उन दंगों के बाद मैंने तमस लिखना आरम्भ किया था।
भिवंडी नगर बुनकरों का नगर था शहर के अन्दर जगह जगह खडि्डयों लगी थी, उनमें से अनेक बिजली से चलनेवाली खडि्डयाँ थीं। पर घरों को आग की नज़र करने से खडि्डयों का धातुबहुत कुछ पिघल गया था।गलियों में घूमते हुए लगता हम किसी प्राचीन नगर के खंडहरों में घूम रहे हों।
पर गलियाँ लाँघते हुए, अपने क़दमों की आवाज, अपनी पदचाप सुनते हुए लगने लगा, जैसे मैं यह आवाज़ पहले कहीं सुन चुका हूँ। चारों ओर छाई चुप्पी को भी सुन चुका हूँ। अकुलाहट भरी इस नीरवता का अनुभव भी कर चुका हूँ। सूनी गलियाँ लाँघ चुका हूँ।
पर मैंने यह चुप्पी और इस वीरानी का ही अनुभव नहीं किया था। मैंने पेड़ों पर बैठे गिद्ध और चीलों को भी देखा था। आधे आकाश में फैली आग की लपटों की लौ को भी देखा था, गलियों सड़कों पर भागते क़दमों और रोंगटे खड़े कर देनेवाली चिल्लाहटों को भी सुना था, और जगह जगह से उठनेवाले धर्मान्ध लोगोंके नारे भी सुने थे, चीत्कार सुनी थी।
कुछेक दिन तक बम्बई में रहने के बाद मैं दिल्ली लौट आया।
आमतौर पर मैं शाम के वक़्त लिखने बैठता था। मेरा मन शाम के वक़्त लिखने में लगता है। न जाने क्यों। पर उस दिन नाश्ता करने के बाद मैं सुबह सवेरे ही मेज़ पर जा बैठा था।
यह सचमुच अचानक ही हुआ, पर जब कलम उठाई और काग़ज सामने रखा तो ध्यान रावलपिंडी के दंगों की ओर चला गया। कांग्रेस का दफ़्तर आँखों के सामने आया। कांग्रेस के मेरे साथी एक के बाद एक योगी रामनाथ, बख़्शीजी, बालीजी, हकीमजी, अब्दुल, मेहरचन्द, आहूजा, अज़ीज, जरनल मास्टर अर्जुनदास उनके चेहरे आँखों के सामने घूमने लगे। मैं उन दिनों यादों में डूबता चला गया।
लेखक परिचय
जन्म 8 अगस्त, 1915, रावलपिंडी (पाकिस्तान) में ।
शिक्षा हिन्दी संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा घर में । स्कूल में उर्दू और अंग्रेजी । गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर, से अंग्रेजी साहित्य में एम, फिर पंजाब विश्वविद्यालय से पी एच डी । बँटवारे से पूर्व थोड़ा व्यापार, साथ ही साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन । बँटवारे के बाद पत्रकारिता, इप्टा नाटक मंडली में काम, मुम्बई में बेकारी । फिर अम्बाला के एक कॉलेज तथा खालसा कॉलेज, अमृतसर, में अध्यापन।तत्पश्चात् स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में साहित्य का प्राध्यापन । इस बीच लगभग सात वर्ष विदेशी भाषा प्रकाशन गृह, मॉस्को, में अनुवादक के रूप में कार्य।अपने इस प्रवासकाल में उन्होंने रूसी भाषा का यथेष्ट अध्ययन और लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का अनुवाद किया । करीब ढाई साल नई कहानियाँ का सौजन्य सम्पादन । प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो एशियाई लेखक संघ से भी सम्बद्ध रहे ।
प्रकाशित पुस्तकें भाग्यरेखा पहला पाठ भटकती राख पटरियाँ बाङ्चू शोभायात्रा निशाचर पाली डायन (कहानी संग्रह) झरोखे कड़ियाँ तमस बसंती मय्यादास की माड़ी गो नीलू नीलिमा नीलोफर (उपन्यास) माधवी, हानूश कबित खड़ा बजार मैं मुआवजे (नाटक) आज के अतीत (आत्मकथा) गुलेल का खेल (बालोपयोगी कहानियाँ) ।
सम्मान तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शलाका सम्मान । साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता ।
निधन 11 जुलाई, 2003
आवरण व रेखांकन विक्रम नायक
मार्च 1976 में जन्मे विक्रम नायक ने एम (पेंटिंग) के साथ साथ वरिष्ठ चित्रकार श्री रामेश्वर बरूटा के मार्गदर्शन में त्रिवेणी कला संगम में कला की शिक्षा पाई । कई राष्ट्रीय एवं जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका सहित कई अन्तर्राष्ट्रीय दीर्घाओं में प्रदर्शनी ।1996 से व्यावसायिक चित्रकार व कार्टूनिस्ट के रूप में कार्यरत । कला के क्षेत्र में कई राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित । चित्रकला के अलावा फिल्म व नाटक निर्देशन एवं लेखन में विशेष रुचि।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist