कृष्णा सोबती अपने विशिष्ट लिखें के लिए आधुनिक कथा-जगत में सुचर्तित हैं,! अपनी रचना-यात्रा के दौरान उन्होंने लगभग हर मोड़ पर कोई-न -कोई सुखद विस्मय दिया है! 'डार से बिछुड़ी' से लेकर 'सूरजमुखी अँधेरे के' तक एक-से-एक सधी हुई कथा-कृतियाँ, 'हम हशमत' के जीवन आलेख, और औपन्यासिक संरचना-शिल्प का प्रतिमान 'ज़िन्दिगीनामा'-रचनात्मक उपलब्दियों की इसी जगमगाती पृष्टभूमि में सामने आती हैं उनकी ये अपेक्षाकृत पहले की कहानियाँ! बादलों के घेरे उनकी आरम्भिक कहानियों का संग्रह है! इन कहानियों में वह 'समय' बोलता है जो गुजर चुकने पर भी गुजर रहे से असम्बद्ध नहीं है! ये जीवन के अनेक रंगों और चेहरों की कहानियाँ हैं, जिनका 'सच' बाहर से आरोपित न होकर अन्तर की गहराइयों से बरबस फूटा हुआ सच है, जिसने कथा को अपने-आप रूपायित होने दिया है! इनमें ताजगी है, तरलता है और है एक अनोखा सम्मोहन! पीछे पलटकर रचनाकार की रचना-प्रकिया की तह में जाने की दृष्टि से इन कहानियों से गुज़रना एक सुखद अनुभव है!
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