अपनी बात
वाग्देवी के जिन प्रतिविशिष्ट पुत्रों ने अपनी यशस्विनी प्रतिभा से समस्त हिन्दी साहित्य को आलोकित किया है, सूरदास उनमें अग्रगण्य हैं । उनका 'सूरसागर' नामक ग्रंथ अनेक विशेषताओं का पुंज है । श्रीमद्भागवत का आधार लेकर, अपनी अन्त: प्रवेशिनी सूक्ष्म दृष्टि की शक्ति से, सर्वत्र मौलिकता की छाप लगाते हुए कृष्ण-चरित्र का, उन्होंने रससिक्त वाणी में वर्णन किया है कि कृष्ण-भक्ति परम्परा के अनेक कवियों के लिए सदैव आदर्श और प्रेरणा-स्रोत रहा है । भ्रमरगीत-प्रसंग सूरसागर का ही अंश है जिनके विषय में आचार्य शुक्ल नै कहा है, ''सूरसागर का सबसे मर्मस्पर्शी और वाग्वैदग्ध्यपूर्ण अंश भ्रमरगीत है ।'' आचार्य शुरू? ने लगभग 400 पदों को सूरसागर के भ्रमरगीत से छांटकर उनका 'भ्रमरगीत सार' के रूप में संग्रह किया था । प्रस्तुत भ्रमरगीत सार में कुछ पदों की औचित्य की दृष्टि से और वृद्धि कर दी गई है आशा है इससे कुछ नवीन बातें सामने आ सकेंगी । पुस्तक के लिखने में अनेक पुस्तकों से सहायता ली गई है। मैं उन सभी लेखकों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ । यद्यपि हिन्दी में सूर सम्बन्धी पुस्तकों की कमी नहीं है पर मेधावी कवि का काव्यानुशीलन करते समय हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिए-
'धृष्टं धृष्टं पुनरपि पुनश्चंदनं चारुगन्धम्'
विषय-सूची
आलोचना भाग
1
श्रीमद्भागवत का भ्रमरगीत
2
भ्रमरगीत परम्परा
7
3
भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान
16
4
सूरदास के भ्रमरगीत की विशेषताएँ
20
5
भ्रमरगीत : विरह वर्णन
27
6
भ्रमरगीत : प्रकृति वर्णन
46
भ्रमरगीत का भाव सम्पदा
54
8
भ्रमरगीत का काव्य-सौष्ठव
60
9
सूर की राधा
71
10
भ्रमरगीत का प्रतिपाद्य
76
व्याख्या भाग
उद्धव प्रति श्रीकृष्ण के वचन
83
कुब्जा के वचन उद्धव के प्रति
90
उद्धव का ब्रज में जाना
91
उद्धव-प्रति यशोदा के वचन
343
कुब्जा संदेश कथन
345
उद्धव-गोपी संवाद
मथुरा लौटने पर उद्धव-प्रति श्रीकृष्ण वचन
349
कृष्ण प्रति उद्धव के वचन
350
उद्धव प्रति कृष्ण के वचन
361
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