भूमिका
पलटू का मार्ग हृदय का मार्ग है-प्रीति का भक्ति का । स्वभावत: रससिक्त आनंद-पगा! चल सको तो तुम्हारे पैरों में भी घूंघर बंध जाएं । समझ सको तो तुम्हारे ओंठों पर भी बांसुरी आ जाए । आखें खोल कर हृदय को जगा कर पी सको पलटू को तो पहुंच गए मदिरालय में । फिर ऐसी छने ऐसी छने ऐसी बेहोशी आए कि होश भी न मिटे होश भी प्रज्वलित हो उठे-और बेहोशी भी हो! ऐसी उलटबांसी हो । बेहोशी में सारा संसार डूब जाए और होश में भीतर परमात्मा जागे । बेहोशी में सब व्यर्थ बह जाए और होश में जो सार्थक है निखर आए ।
हज़ार पंखुड़ियों का खिलता कमल
बसे पहले वर्ष 1969 में अकोला के स्वराज्य भवन के विशाल खुले प्रांगण में ओशो को सुनने का अवसर मिला । ओशो को सुनने के लिए उमड़ा जन-समुदाय शब्द-शब्द को अपने भीतर उतारने के लिए व्याकुल था । दो शब्दों के बीच का विराम सृजनात्मकता चेतना और ऊर्जा का प्रतीक बन जाता । इस विराम में हर व्यक्ति अपनी भीतरी चेतना तक शब्द-शब्द को अनुभव करता । कभी-कभी स्थितियों पर ओशो द्वारा की गई टिप्पणी पर एक शालीन हंसी की लहर अनायास ही उभर आती । फिर ठीक बीस वर्ष बाद पुणे के ओशो कम्यून में 1989 में ओशो को सुना । बीस वर्ष किसी भी समाज के लिए कम नहीं होते । सारी दुनिया में अपने शब्दों का जादू बिखेर कर ओशो फिर पुणे आए थे । इस बीच ओशो जैसे व्यक्तित्व के आस-पास चर्चाओं विवादों और खबरों ने अपना एक घना जाल बुन लिया । विरोधाभासों और विपरीत स्थितियों के प्रहारों से आहत थे समाचार पर वक्त की कठोर शिला पर चेतना की छैनी और सृजनात्मक हथौड़े निरंतर चलते रहे ! क्रांतिकारी शब्द अधिक निखर कर आकाश में उड़ान भर रहे थे । ओशो के शब्दों की गरिमा और आवाज में ताजगी की खनक ज्यों की त्यों थी । प्रवचन नित नये शिखरों की यात्रा पर निकलते रहे । नृत्य और ध्यान का उत्सव चारों ओर व्याप्त था।
ओशो कहते हैं कि सृजन ही परमात्मा के करीब होता है । इसलिए सृजनात्मकता में तल्लीन जीवन आस-पास की घटनाओं को साक्षीभाव से अनुभव करता है । अत्यंत कठिन बात को वे बडी सहजता से कह जाते हैं कि देह-संसार में रह कर भी व्यक्ति को इससे ऊपर उठना होगा तभी चरम आनंद उल्लास प्रकाश और अमृत से साक्षात्कार हो सकता है । इन सारी बातों को परत-दर-परत उकेरते हुए उन्होंने आसकरण अटल से पलटू तक की रचनाओं का हवाला दिया है । कितनी सहजता से वे ध्यान प्रार्थना साधना और उपासना की सार्थकता बता जाते हैं । तमाम प्रश्नों आशंकाओं द्वंद्वों को अपने विचारो से झकझोरते हैं । जीवन के सारे द्वंद्व झर जाते हैं और भीतरी रिक्तता और शून्यता का अनुभव ही व्यक्ति को एक नया अस्तित्व-बोध कराता है ।
ऐसे ही प्रश्नों और उत्तरों को 'काहे होत अधीर' में समाहित किया गया है । ओशो द्वारा पलटू- वाणी पर दिए गए उन्नीस प्रवचनों को इस पुस्तक मे सम्मिलित किया गया है ।
ओशो ने बहुत सूक्ष्मता से हृदय के केंद्र में प्रेम और हृदय के नीचे काम-वासना धन-वासना पद-वासना को विस्तार से समझाया है 1 हृदय से ऊपर कंठ में खोते विचार तीसरी आख में विसर्जित होते भाव को पार कर सहस्रार की ओर ओशो संकेत करते हैं । तभी पलटू की याद दिला कर कहते है-'सात महल के ऊपर अठएं ' अर्थात कमल की सुवास और यही मोक्ष है निर्वाण है । इस कैवल्य तक पहुंचने के लिए उन्होंने धर्मों रूढ़ियों परंपराओं निरर्थक क्रांतियों को गहराई तक इस पुस्तक मे मथा है । ओशो ने दर्शन रहस्य और अध्यात्म को अत्यंत सीधे-सपाट सहज ग्राह्य उदाहरणों के द्वारा मुल्ला नसरुद्दीन और चंदूलाल के माध्यम से प्रस्तुत किया है । बौद्धिक आतंकवाद को झिंझोड़ कर बड़ी सहजता से समाज में व्याप्त आडंबर नाटकीयता ढोंग और मुखौटों को उतार कर उन्होंने सत्य के दर्शन कराए हैं ।
धारा के साथ चलने में सुविधा तो होती है साथ ही गुलाम हो जाने का खतरा भी होता है । धारा के विपरीत विवाद विरोध और संघर्ष अनिवार्य हो जाता है । लेकिन यही संघर्ष एक नये आदमी का निर्माण करता है । सड़ी-गली परंपराओं कर्मकांडों और अंधविश्वासों के पार नया रास्ता बनाने की एक चुनौती होती है । इसी चुनौती के गर्भ में सृजन पलता है ।
ईसा बुद्ध सुकरात जैसों ने नया रास्ता चुना । देह में रह कर सहस्रकमल का अनुभव किया । उन्होंने व्यक्ति को नई आस्था दी । इसे आगे बढ़ाते हुए ओशो ने नव-चैतन्य की पैरवी करते हुए साक्षीभाव का आग्रह किया है ।
'काहे होत अधीर' में ओशो ने लगभग विस्मृत कवि पलटू के दर्शन उनके चिंतन और उनकी दृष्टि को हमारे सामने रखा । ओशो अतीत से मुक्ति पर बल देते है । जीवन को वर्तमान से ओतप्रोत करने के वे हिमायती हैं । यदि व्यक्ति वर्तमान में होने की कला सीख जाए तो उसका भविष्य हमेशा ही एक सुखद वर्तमान के रूप में होगा । वैसे भी भविष्य की कल्पना वर्तमान को झुठलाने की एक कोशिश ही होती है ।
इसलिए ओशो जीवन को गणित में ढालने से सावधान करते हैं । यह जनम अगला जनम और पिछला जनम ये सब लेन-देन के गणित वर्तमान को धोखा देने की एक सोची-समझी साजिश है । भीड़ के मनोविज्ञान को समझ कर आदमी के अदृश्य डरो को भुनाने में कुछ खास लोग पीढ़ियों से सक्रिय हैं । वे अतीत के पाप और भविष्य के स्वप्नलोक का भुलावा देकर अपनी आजीविका चलाते हैं । ऐसे लोगों को ओशो ने बेनकाब किया है ।
ओशो ने जीवन को पल-पल उत्सव में ढालने का अनुग्रह किया है । नृत्य संगीत चित्रकारी और सृजन आदमी को प्रकृति के करीब ले जाते हैं । एक बीज विसर्जित होकर विशाल वृक्ष बन जाता है-कई-कई फूलों फलों और नव-ऊर्जावान बीजों के लिए । प्रकृति निरंतर परिवर्तनशीलता और सृजनात्मकता का प्रतीक है । हर पौधा रोज विकसित होकर नये-नये परिवर्तनों का साक्षी बनता है । केवल आदमी ही नवीनता से कतराता है । धारा के साथ बहने में उसे सुविधा होती है ।
ओशो बीज बनने की चुनौती देते हैं । ओशो के शब्द देह से ऊपर उठ कर साक्षीभाव से परम आनंद की खोज में एक संपूर्ण उत्सव को जीने का आह्वान हैं । ओशो की शैली में इतनी आत्मीयता है कि शब्द के स्पर्शमात्र से पाठक शब्दों के हजार आयाम अपने भीतर प्रस्कृटित होते पाता है । नन्हीं-नन्हीं कथाएं समाप्त होकर मन में अगली रचना का विशिष्ट कोण दे जाती है । ओशो जिस सोच जिस दृष्टि को सौंपना चाहते हैं वह निर्द्वंद्व होकर आत्मीयभाव से हमारे अस्तित्व तक अबाध रूप से पहुंचता है । सारी दुनिया के श्रेष्ठ चिंतन सक्रिय दर्शन और उत्कृष्ट सृजन के साधकों को जानने की उत्कंठा अकेले ओशो को पढ़ने से पूरी हो सकती है । यह पुस्तक भी इस बात की साक्षी है ।
अनुक्रम
1
पाती आई मोरे पीतम की स्वामी देवतीर्थ भारती
10
2
अमृत में प्रवेश
36
3
साजन-देश को जाना
74
4
मौलिक धर्म
98
5
बैराग कठिन है
124
6
क्रांति की आधारशिलाएं
150
7
साहिब से परदा न कीजै
174
8
प्रेम एकमात्र नाव है
198
9
चलहु सखि वहि देस
224
प्रेम तुम्हारा धर्म हो
252
11
मन बनिया बान न छोड़ै
280
12
खाओ, पीओ और आनंद से रहो
310
13
ध्यान है मार्ग
334
14
अपना है क्या-लुटाओ
362
15
मूरख अबहूं चेत
388
16
एस धम्मो सनंतनो
416
17
कारज धीरे होत है
440
18
कस्मै देवाय हविषा विधेम
466
19
पलटू फूला फूल
494
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (1751)
Philosophers (2386)
Aesthetics (332)
Comparative (70)
Dictionary (12)
Ethics (40)
Language (370)
Logic (73)
Mimamsa (56)
Nyaya (138)
Psychology (412)
Samkhya (61)
Shaivism (59)
Shankaracharya (239)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist