एड्रियानोपल में बहाउल्लाह के आने के बाद के वर्ष राजाओं और विश्व के शासकों को सम्बोधित उनके संदेशों की घोषणा के माध्यम से, शोगी एफेन्दी के शब्दों में, उनके प्रकटीकरण की 'चरम गरिमा के साक्षी बने। बहाई धर्म के इतिहास की इस अपेक्षाकृत संक्षिप्त किन्तु उथल-पुथल भरी अवधि के दौरान, तथा उसके बाद 1868 में अक्का की दुर्ग-नगरी में उनके निष्कासन के आरम्भिक वर्षों में, उन्होंने पूर्व और पश्चिम के सम्राटों का सामूहिक रूप से और उनमें से कुछ का व्यक्तिगत रूप से, आह्वान किया कि वे ईश्वर के दिवस को पहचानें तथा अपने-अपने धर्मग्रंथों में प्रतिज्ञापित अवतार को स्वीकार करें। बहाउल्लाह ने कहा है कि "संसार के आदिकाल से ही पहले कभी भी दिव्य संदेश की ऐसी स्पष्ट घोषणा नहीं की गई थी।
पुस्तक के इस खंड में इन प्रमुख लेखों के प्रथम सम्पूर्ण और अधिकृत अनुवाद का संकलन प्रस्तुत किया गया है। उन्हीं में शामिल है सम्पूर्ण सूरा-ए-हैकल (मन्दिर का सूरा) जिसकी गणना बहाउल्लाह की अत्यंत चुनौतीपूर्ण कृतियों में की जाती है। मूल रूप से इसे एड्रियानोपल में उनके निर्वासन के दौरान और बाद में अक्का में उनके आगमन के बाद पुनःअंकित किया गया था। इस संस्करण में उन्होंने व्यक्तिगत राज्याध्यक्षों- पोप पायस नवम, नेपोलियन तृतीय, जार अलैक्जेंडर द्वितीय, रानी विक्टोरिया, एवं नसीरुद्दीन शाह - को शामिल किया।
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