भारतीय समाज में रिश्तो को जितनी मजबूती, आत्मीयता ओर ऊर्जा हासिल रही है , वह विरल है एक तरह से कहा जा सकता है कि इस देश के यतार्थ को रिश्तो के समझ के समाज के बगैर जाना- समझा नहीं जा सकता है ! माँ-पिता, भाई-बहन , दोस्त, दादी-नानी, बाबा-नाना, मौसा-मौसी , बुआ-फूफा, दादा, चाचा, दोस्ती-अनगिनत समबन्ध है जो लोगो कई अनुभव -संसार में जीवन्त है और जिनसे लोगो का अनुभव -संसार बना है इसीलिए हमारे देश की विभिन्न भाषाओ में लिखी गई कहानियो, उपन्यासों आदि में ये रिश्ते बार-बार समूची ऊष्मा , जटिलता ओर गहनता के साथ प्रकट हुए है ! न केवल लेखको , कवियों , कलाकारों बल्कि सामाजिक चिन्तको के लिए भी ये रिश्ते एक तरह से लिटमस पेपर है जिनसे वे अपने अध्ययन क्षेत्र के निष्कर्षो , स्थापनाओं , सिद्धांतो की जाँच कर सकते है ! अतः रिश्तो पर रची गई कहानियो की यह श्रृंखला हमारी दुनिया का अंकन होने के साथ-साथ हमारी दुनिया को पहचानने ओर उसकी व्याख्या करनी की परियोजना के लिए सन्दर्भ कोष के रूप में भी ग्रहण क़ी जा सकती है !
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