प्रकाशकीय
सस्ता साहित्य मण्डल ने अबतक जितना साहित्य प्रकाशित किया है, वह सब मूल्य परक है, वस्तुत: उसकी स्थापना ही नैतिक मूल्यों के प्रसार प्रचार के लिए हुई थी । सन् 1825 से लगातार 'मण्डल' इसी उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न इससे पहले 'मण्डल' ने गांधी आख्यान माला के नाम से 10 पुस्तकों की एक सीरीज प्रकाशित की थी, जिसे पाठकों द्वारा बहुत सराहा गया । उनका आग्रह था कि इन सभी पुस्तकों को एक ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करना चाहिए ताकि यह सभी पुस्तकें पाठकों को एक साथ सुलभ हो,सकें और इसके संग्रह में भी आसानी रहे ।
पाठकों की इसी माँग को ध्यान में रखते हुए हमने इस पुस्तक माला की सभी पुलकों को दो खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रथम खण्ड में पहली पाँच पुस्तकें तथा द्वितीय खण्ड में शेष पाँच पुस्तकें संग्रहित की गई है ।
इन गुसाको की सामग्री अनेक पुछाको में से चुनकर ली गई है । इन प्रसंगों की भाषा को अधिकाधिक परिमार्जित कर दिया गया है । यह कार्य श्री विष्णु प्रभाकर ने किया है । वह हिन्दी के जाने-माने कथाकार तथा नाटककार हैं । उन्होंने हिन्दी की अनेक विधाओं को समृद्ध किया है। इन पुस्तकों की भाषा को अपनी कुशल लेखनी से उन्होंने न केवल सरस बनाया है, अपितु उसे सुगठित भी कर दिया है । इसके लिए हम उनके आभारी हैं ।
भूमिका
जो बात उपदेशों के बड़े-बड़े पोधे नहीं समझा सकते, वह उन उपदेशों में से किसी एक को भी जीवन में उतारने से समझ में आ जाती है । इसलिए गांधीजी कहते थे कि 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है' उनके जीवन का यह संदेश उनके दैनन्दिन जीवन की घटनाओं में प्रदर्शित और प्रकाशित होता है ।
संसार के तिमिर का नाश करने के लिए मानव-इतिहास में जो व्यक्ति प्रकाश-पुंज की भाति आते हैं, उनका सारा जीवन ही सत्य और ज्ञान से प्रकाशित रहता है । गांधीजी के जीवन में यह बात साफ दिखाई देती है 4 इस पुस्तक-माला में गांधीजी के जीवन के चुने हुए प्रसगों का संकलन करने का प्रयास किया गया है । उनका प्रकाश काल के साथ मन्द नहीं पड़ता । वे क्षण में चिरन्तन के जीवन न होकर विश्वव्यापी हैं ।
ये प्रसंग गांधीजी के जीवन से सम्बन्धित प्राय: सभी पुस्तकों के अध्ययन के बाद तैयार किये गए हैं । हर प्रसंग की प्रामाणिकता की पूरी तरह रक्षा की गई है । फिर भी वे अपने-आपमें समूर्ण और मौलिक हैं ।
यह पुस्तक-माला अधिक-से-अधिक हाथों में पहुँचे तथा भारत की सभी भाषाओं में ही नहीं वरन् संसार की अन्य भाषाओं में भी इसका अनुवाद हो, ऐसी अपेक्षा है । मैं आशा करता हूँ कि यह पुस्तक-माला अपनी प्रभा से अनगिनत लोगों के जीवनों को प्रेरित और प्रकाशित करेगी ।
(Vol-1)
अनुक्रम
1
मैं महात्मा नहीं हूं
9
2
मुआवजे की आशा नहीं रखनी
10
3
मेरा बिस्तरा इसी पर करना
11
4
तुम्हें शादी करने की बड़ी जरूरत है
12
5
मौत से नहीं लड़ा जा सकता
14
6
सत्याग्रह में मनुष्य को स्वयं कष्ट सहना चाहिए
15
7
आटा पीसना बहुत अच्छा है
16
8
मैं तो पैसे का लालची ठहरा
17
विरुद्ध मत रखते हुए भी हम एक-दूसरे को सहन कर सकते हैं
18
केवल सुनी-सुनाई बातें मानने के लिए मैं तैयार नहीं
19
अच्छा, ले जाओ, तुम्हारी लड़की है
20
जहां संकल्प होता है वहां सस्ता मिल ही जाता है
13
वह सांप भी पहले नंबर का सत्याग्रही निकला
22
प्रकृति मनुष्य के अपव्यय के लिए पैदा नहीं करती
23
अपने साथियों की भावनाओं का भी तो कुछ ख्याल करेंगे
25
आश्रम के नियमों ने बाप की ममता को जकड़ कर रख दिया है
26
तुम तो अब बड़े हो गये
28
आपका अर्थ सही है
किसी रात को तुम्हारा हार बुरा ले जाऊंगा
31
सब मारवाड़ी तुम्हारे जैसे ही उदार-हृदयी हों
21
इन्हें हरिजन बच्चों को दे देना
34
मैं सरकार के साथ अपना सहयोग छोड़ दूंगा
कीमती गहने पहनना शोभा नहीं देता
36
24
मैंने भी यही किया था
37
अपने-जैसे आदमी मिल जाते हैं ता हमेश आनन्द होता है
39
तेरे इन आभूषणों की अपेक्षा तेरा त्याग ही सच्चा आभूषण है
27
आज मैंने कौमुदी, तुझे पाया
40
मैं तो उसी को सुन्दर कहता हूं जो सुन्दर काम करता है
41
29
यह लड़की मेरी हजामत बनाने से शर्माती है
43
30
ईश्वर की मुझ पर कैसी अपार दया है
44
मैं खूब दौड़ता था जिससे शरीर में गर्मी आ जाती थी
45
32
मैं तुमसे भूत की तरह काम लेता हूं
33
हमारी सभ्य पोशाक तो धोती-कुर्ता है
46
अपने लिए लाभदायक मौके को कोई छोड़ता है भला !
47
35
मुझे 'महात्मा' शब्द में बदबू आती है
जड़ भरत की तरह खाती हो
48
उपवास एक बड़ा पवित्र कार्य है
49
38
जहां हरिजनों को मनाही है वहां हम कैसे जा सकते हैं?
51
मुझे तुम जैसा अल्पजीवी थोड़े ही बनना है
हे ईश्वर, इस धर्मसंकट में मेरी लाज रखना
52
अपनी जीवन- श्रद्धा पर अमल करते हुए यदि.
54
42
अपने विरोधी को पूरा अवसर दे
55
मैं उचित शब्द खोजने में मग्न था
56
आप ही इसे संक्षिप्त कर लाइये
57
आपकी चिंता को मैंने चौबीस घंटे के लिए बढ़ा दिया
व्यायाम से कभी मुंह न मोड़ना
58
सादगी ऐसी सहज-साध्य नहीं
59
आप इतने उछल क्यों रहे थे?
60
हिन्दु-मुस्लिम-ऐक्य मेरे बचपन का रसप्रद विषय है
61
50
आपका पाव अब कैसा है?
63
सत्य के साधक को ऐसे प्रमाद से बचना चाहिए
64
हम सूर्य के सामने आखें न खोल सके तो
65
53
यह कहां का इन्साफ है
जरा वक्त भी लग जाये तो कोई बात नहीं
66
मंत्री तो जनता के सेवक हैं
67
इतना-सा पेंसिल का टुकड़ा सोने के दुकड़े के बराबर है
68
(Vol-2)
मेरा पेट भारत का पेट है
मैं अपना कतेव्य यदि
यरवदा पैक्ट की शर्तें ठीक तरह पूरी हों
क्या तू मुझे अच्छी तरह देख सकती है?
सोने के गहने तुम्हें शोभा नहीं देते
इसी तरह गांवों की सेवा करोगे?
मुझे ही यह करने दो
मजाक में भी झूठ का व्यवहार नहीं करना
आनंद तो मन की वस्तु है
मुझे यह भाषा बिल्कुल पसंद नहीं
ये आदमी तो बनें
वह तो आजादी का दीवाना है
मां की ममता बच्चे को स्वावलम्बन नहीं सीखने देती
सत्याग्रही को ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए
तुमने भोजन किया?
मनुष्य का मूल्य उसकी बनायी संस्था से लगाना चाहिए
यह लड़की आश्रम की शोभा बढ़ा रही है
जब तुम स्वराज प्राप्त कर लोगी
इतना करके देखिए तो फर्क पड़ेगा
बीड़ी न पीने में ही तुम्हारा भला है
मैं धरती पुत्र हूं
जो मैं कहता हूं वह करो
अब श्रद्धापूर्वक किसके साथ परामर्श करूंगा
जुलाब की जरूरत नहीं
मैं रामजी का नाम रटते-रटते मरूं
क्यों, कैसी है कल्पना?
क्यों, तुम्हारी आखें खराब तो न ही हैं?
दो हजार वर्ष की अवधि आपको अधिक मालूम होती है?
मेरा आपरेशन करती तो
उनका नंगा रहना क्या नग्न सत्य को प्रकट नपहीं करता?
आज तो तुम लोगों की शादी का दिन है
मेरी नही, शंकरलाल की दवा करो
अपनापन खोकर मैं हिन्दुस्तान के काम का नहीं रहूंगा
क्या वह मेरी शिकायत करती है?
अब तो सेल्फ ठीक हो गया न?
यदि गंगोत्री मैली हो जाये तो
जो श्रद्धा की खोज करता है, उसे वह जरूर मिलती है
मेरा टिकट तुम ले लो
आखिर मुझे एक रास्ता सूझ गया
बोलने का अधिकार केवल है
यदि मेरे संदेश में सत्य है
मैं जैसा हूं वैसा हूं
उनकी रक्षा करना आपका दायित्व है
ईश्वर ने जो कुछ दिया है, सदुपयोग के लिए
वह इंकार करेगा तभी मैं सो सकूंगा
अब तो यह हरिजनों का हो गया
बोलो, मैं कितना आज्ञाकारी हूं
भगवान ने हम सबको उबार लिया?
डॉक्टर अपने रोगी को कैसे छोड़ सकता है!
यह तो बड़ी अच्छी बात है
आप जरा भी ल हिले
मेरे लिए तो यह पवित्र यात्रा है
वह बल तो तुम्हारे अंदर भी है
हम सब तो ट्रस्टी है
लाओ, कार्ड बोर्ड का वह टुकड़ा दो
उसे अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं
उस लड़के का क्या हुआ?
बोतल से रोटी 'अच्छी बेली जा सकती है
62
श्रद्धा बड़ी चीज है
सच्ची खूबी सीधा रखने में ही है
कर्मचारी कैदियों की सेवा के लिए हैं
मनुष्य कितना दुर्बल है
यहां से तुम्हें मुफ्त आशीर्वाद नहीं मिलेगा
वधू कहां है?
बड़ी दिखाई देनेवाली चीज मुझे बड़ी नहीं लगती
69
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