(पुस्तक के विषय में)
भागवत धर्म
'उद्धव! जिस परम पिवत्र भागवत धर्म का श्रद्धापूर्वक पाल करने से मनुष्य मृत्यु से भी अनायास ही मुक्ति पा सकता है, वह मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो- मेंरा स्मरण करके समस्त कार्यों को शुरू करना तथा कर्म के फल मुझे अर्पित करना। साधुगण जिस प्रकार का आचरण करते हैं, वैसा ही आचरण करना। मेंरे नाम पर अनुष्ठित होनेवाले महोत्सवों में भाग लेना। भक्तों तिा महापुरुषों की जीवन-कथा पर चर्चा करना। इन सबके द्वारा जब भक्त के मन की मलिनता मिट जाएगी, तब वह सभी प्राणियों में निवास करनेवाले मुझ (भगवान) को अपने हृदय में स्पष्ट रूप से अनुभव करेगा। तब वह समस्त जीवों में भी मुझे देख सकेगा। ब्रहामण और अब्रहामण, साधु और असाधु, सूर्य और आगऔ की चिंगारी, अच्छा और बुरा-जो सबके प्रति समान दृष्टि रखते हैं, वे ही ज्ञानी हैं। जान लो कि सभी प्राणियों में ईश्वर की सत्ता का अनुभव करना ही मुझे प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ है।'
प्रकाशकीय
श्रीमद्भागवत को समस्त पुराणो में श्रेष्ठ-महापुराण कहते हैं । स्वयं भागवत में ही इसकी महिमा का सुन्दर निरूपण हुआ है- 'सर्ववेदान्तसार' हि श्रीभागवतमिष्यते। तद्रसामृततृप्स्य नान्यत्र स्याद्रति: क्वचित् ।' - 'श्रीमद्भागवत वेदान्त का सार है । जो व्यक्ति इसके रसामृत का पान करके परितृप्त हो जाता है, उसकी अन्यत्र कहीं भी आसक्ति नही रह जाती।'
श्रीरामकृष्ण के जीवन की एक घटना भी इस ग्रन्थ की महिमा को प्रकट करती है । एक बार वे भागवत की कथा सुनते-सुनते भावाविष्ट हो गए। तभी उन्हें श्रीकृष्ण की ज्योतिर्मय मूर्ति के दर्शन हुए। मूर्ति के चरणों से रस्सी की भाँति एक ज्योति निकली । सर्वप्रथम उसने भागवत को स्पर्श किया और उसके बाद श्रीरामकृष्ण के सीने से लगकर उन तीनों को कुछ देर के लिए एक साथ जोड़े रखा । इससे श्रीरामकृष्ण के मन में दृढ़ धारणा हो गई कि भागवत, भक्त और भगवान-तीनों एक हैं तथा एक के ही तीन रूप हैं ।
स्वामी अमलानन्द जी ने भागवत की कुछ कथाओं का संक्षिप्त तथा सरल बँगला भाषा में पुनर्लेखन किया था, जो बेलघरिया के रामकृष्ण मिशन कोलकाता विद्यार्थी भवन द्वारा 1985 ई. में पहली बार प्रकाशित हुआ। अद्वैत आश्रम के अनुरोध पर छपरा के डॉ. केदारनाथ लाभ, डी. लिट् ने इस पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद किया और तदुपरान्त यह हमारे रायपुर के रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम के स्वामी विदेहात्मानन्द द्वारा सम्पादित होकर, उसी आश्रम से प्रकाशित होनेवाली मासिक पत्रिका 'विवेक ज्योति' के सितम्बर 2007 से नवम्बर 2008 तक के 15 अंकों में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुई । वही से अब हम इसे एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। स्वामी निर्विकारानन्द, स्वमी प्रपत्यानन्द तथा श्रीमती मधु दर ने इसके प्रूफ संशोधन आदि में विशेष सहायता की है । श्री अलिम्पन घोष के चित्रो ने पुस्तक को अति सुन्दर बना दिया है । इसके लिए हम इन सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते है।
अनुक्रमणिका
पूर्व कथन
1
भागवत की रचना
9
प्रथम स्कन्ध
2
सूत मुनि द्वारा भागवत का प्रचार
11
3
अवतार-कथा
12
4
राजा परीक्षित
द्वितीय स्कन्ध
5
शुकदेव का उपदेश
15
6
चार श्लोकों में भागवत
16
तृतीय स्कन्ध
7
विदुर-उद्धव-मैत्रेय संवाद
19
8
जय-विजय
20
कपिल मुनि
21
चतुर्थ स्कन्ध
10
दक्ष-यज्ञ एवं सती का देहत्याग
24
ध्रुव उपाख्यान
26
पुरजन की कथा
29
13
पंचम स्कन्ध
14
जड़भरत
33
षष्ठ स्कन्ध
अजामिल
38
17
दधीचि का आत्मत्याग और वृत्रासुर-वध
40
सप्तम स्कन्ध
18
प्रह्लाद-चरित्र
44
अष्टम स्कन्ध
गजेन्द्र- मोक्ष
51
समुद्र- मन्थन
53
22
बलि और वामन
55
23
नवम स्कन्ध
अम्बरीष और दुर्वासा
59
25
ययाति और देवयानी
62
दुष्यन्त-शकुन्तला
64
27
रन्तिदेव की अतिथि-सेवा
65
दशम स्कन्ध
28
श्रीकृष्ण का जन्म
68
पूतना-वध
71
30
यशोदा का विश्वरूप-दर्शन
72
31
दाम-बन्धन
73
32
यमलार्जुन-उद्धार
74
ब्रह्मा का मोह-भंग
75
34
कालिय- दमन
78
35
गोवर्धन-गिरि धारण
79
36
रास लीला
81
37
सुदर्शन-शंखचूड़-अरिष्टासुर वध
86
अक्रूर और कृष्ण-बलराम
87
39
कंस-वध
89
उग्रसेन को राज्य-दान
93
41
कृष्ण-बलराम की गुरु-दक्षिणा
94
42
उद्धव का व्रज-गमन तथा गोपियों की उलाहना
95
43
हस्तिनापुर का समाचार
97
जरासन्ध से युद्ध
99
45
कालयवन और मुचुकुन्द
100
46
रुक्मिणी-विवाह
101
47
प्रद्युम्र
103
48
स्यमन्तक मणि-जाम्बवती और सत्यभामा
104
49
इन्द्रप्रस्थ में कुन्तीदेवी से वार्तालाप
106
50
उषा और अनिरुद्ध
107
नारद का द्वारका-दर्शन
108
52
जरासन्ध वध
110
राजसूय यज्ञ और शिशुपाल वध
112
54
दन्तवक्र वध
114
सहपाठी श्रीदाम
115
56
महादेव का संकट
117
57
भृगु के चरण-चिह्न
119
58
द्वारका और यदुवंश
120
एकादश स्कन्ध
ऋषियों का शाप-मूसल और उसका परिणाम
122
60
नारद-वसुदेव संवाद (नव योगीन्द्र)
123
61
श्रीकृष्ण-उद्धव संवाद
129
उद्धव-गीता
131
63
अवधूत के चौबीस गुरु
बन्धन और मुक्ति
137
भगवान की विभूतियाँ
139
66
उद्धव के प्रश्न और श्रीकृष्ण के उत्तर
140
67
उद्धव को श्रीकृष्ण का अन्तिम उपदेश
141
श्रीकृष्ण का महाप्रयाण
143
द्वादश स्कन्ध
69
युगधर्म और शुकदेव का अन्तिम उपदेश
147
70
परीक्षित का देहत्याग
149
जनमेंजय का सर्पयज्ञ
150
उपसंहार
भागवत के कुछ अन्तिम श्लोक
151
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