'सांबपंचाशिका' आध्यात्मिक विषय का एक बहुत ही प्राचीन, महत्वपूर्ण और सारगर्भित ग्रंथ है। इसमें चित्-सूर्य की बहुत सुन्दर रूप में स्तुति की गई है और उसकी महिमा का बखान किया गया है। कुछ श्लोकों में बड़े रोचक, अनूठे और विलक्षण रूप में उद्धार के लिए उस से विनती की गई हैं। इसके रचयिता भगवान् श्रीकृष्ण के सुपुत्र श्री साम्ब जी हैं। यह बात न केवल पुस्तक के नाम से विदित होती है बल्कि इस की पुष्टि कई अन्य बातों से भी होती है। साम्बपञ्चाशिका का जो छपा हुआ संस्करण इस समय मिलता है उसके पहले पृष्ठ पर दी गई पाद-टिप्पणी में संपादकों ने वाराह-पुराण से दो श्लोक इसी बात को सिद्ध करने के लिए उद्धृत किये हैं। पाठकों की जानकारी के लिए वे नीचे दिये जाते हैं:-
'ततः साम्बो महाबाहुः कृष्णाज्ञप्तो ययौ पुरीम् ।
बहुत प्राचीन काल से कश्मीर ऋषि-भूमि और शारदा पीठ के नामों से प्रसिद्ध है। इस के ये नाम तब भी सार्थक थे और अब भी है। कहीं कहीं इसे भूस्वर्ग भी कहते हैं, किन्तु हमे इस की अपेक्षा पहले दो नाम ही अधिक प्यारे है। इस प्रान्त के निवासी सदा से शारदा अर्थात् सरस्वती के उपासक होते आये हैं। डल झील के तटों के आस पास और अन्य स्थानों पर जो बहुत सुन्दर जगहें हैं वे बडे बडे कश्मीरी ऋषियों, कवियों और तार्किकों के आश्रमों तथा गुरुकुलों से सुशोभित होती थीं। वे लोग वहां प्रकृति देवी के खुले आंगन में निवास करते थे और इस के तत्त्वों और रहस्यों से पूर्ण रूप में अभिज्ञ हो कर ब्रह्म-ज्ञान में पारंगत हो जाते थे। इस प्रकार जहां वे कालान्तर में परम-पद को प्राप्त कर के अपना व्यक्तिगत लाभ उठाते थे वहां उन्होंने लोकोपकार की बात को भी नहीं भुलाया। वे एक विशाल साहित्य अपने पीछे छोड गये हैं और कहना न होगा कि वह साहित्य अब सारे साहित्यिक संसार की बहुमूल्य और पुनीत सम्पत्ति बन गई है। इस साहित्य के सागर में डुबकी लगा कर न केवल लौकिक ज्ञान और सुख चाहने वाले लोग ही लाभ उठा सकते हैं वरन् पारमार्थिक लाभ और उन्नति के इच्छुक भी इस में गौता लगा कर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
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