मादनाख्य महाभावस्वरूपा श्रीराधारानी वृन्दावनाधीश्वरी हैं। वे वृन्दावन की साम्राज्ञी हैं। इस पद पर उनका राज्याभिषेक किया स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने।
नित्य रागानुगा भक्ति के परिकर गौड़ीय षड्गोस्वामिवृन्द श्रीश्रीराधामाधव की लीलाओं के नित्य दृष्टा हैं।
उन्होंने इन लीलाओं की स्फूर्ति प्राप्त की है।
श्रीरूप मंजरी अर्थात् श्रीरूप गोस्वामी ने दानकेलिकौमुदी और स्तवमाला ग्रन्थों में, श्रीतुलसीमंजरी अर्थात् श्रीरघुनाथदास गोस्वामी ने मुक्ताचरित्र, व्रजविलासस्तव और विलाप कुसुमांजलि में तथा श्रीविलासमंजरी अर्थात् श्रीजीवगोस्वामी ने माधव महोत्सव नामक ग्रन्थ में इस राज्याभिषेक का वर्णन मधुरातिमधुर रूप में किया हैं। राज्याभिषेक महोत्सव मधुमास (चैत्र) की पूणिमा तिथि को होने से इसका नाम माधव महोत्सव हुआ।
ऐसी अनेक अनसुनी व मधुररस की लीलाएँ हैं- श्रीराधारानी की। आह्लादिनी शक्ति होने से वे श्रीकृष्ण को प्रतिपल आनन्दित करती हैं।
इसी प्रकार के अनेक प्रसंगों का अद्भुत संकलन है - यह श्रीराधाचरितामृत !
मेरी भव बाधा हरौ, श्रीराधा नागरि सोय ।
जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय ॥
सब द्वारन कूँ छाँड़ि कै, मैं आयी तेरे द्वार।
श्रीवृषभानु की लाड़िली, टुक मेरी ओर निहार ॥
श्रीराधे मेरी स्वामिनी, मैं राधे की दास।
जनम जनम मोहे दीजियो, श्रीवृन्दावन को वास ॥
ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण से अभिन्न उनकी आह्लादिनी-स्वरूपा श्रीराधारानी का चरित्र दिव्य है और अद्भुत है। श्रीशुकदेवजी महाराज ने परम गोपनीय रखा - श्रीराधा नाम को। कहीं समाधि न लग जाये श्रीराधा के नाम उच्चारण से-इसलिये वे कभी गोपी, कभी कान्ता, कभी श्री तो कभी कृष्णवधू आदि शब्दों से उनका स्मरण करते रहे। अतः जिन 'श्रीराधा' का नाम लेने मात्र से ही समाधि अवस्था में चले जाएँ और वह भी भगवत् स्वरूप श्रीशुकदेव जी महाराज जैसे परमवीतराग परमहंस सन्त, तो संसारी जीवों की क्या सामर्थ्य कि वह उनके चरित्र का सम्पूर्ण वर्णन कर सकें।
अतः यथामति सार संक्षेप रूप में श्रीराधा के जन्म से लेकर और कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से पुनर्मिलन तक की यह दिव्य-यात्रा शब्दों के माध्यम से आप तक पहुँचाने का एक लघु प्रयास मात्र है। इसका आधार श्रीराधा का वह चरित्र है जो महर्षि शाण्डिल्य ने श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को उसके पूछने पर सुनाया।
श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार जी के श्रीराधामाधव चिन्तन नामक ग्रन्थ के स्मरण तथा एक अज्ञात विद्वान् द्वारा लिखित श्रीराधाचरित के आधार पर इस श्रीराधाचरितामृत ग्रन्थ का संयोजन किया भगवान् श्रीश्रीसीताराम जी का अनुग्रह-प्राप्त गृहस्थ-सन्त श्रीसीताराम दास जी ने। अति परिश्रमयुक्त स्तुत्य कार्य आपने किया, एतदर्थ उनका हार्दिक अभिनन्दन है।
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