स.ही. वात्स्यायन 'अज्ञेय' के अभिभाषाण: Speeches of Ajneya (Set of 2 Volumes)

FREE Delivery
Express Shipping
Rs.53
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZD059
Author: Krishnadutt Paliwal
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan
Language: Hindi
Edition: 2012
Pages: 575
Cover: Paperback
Other Details 9.5 inch X 6.5 inch
Weight 810 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description
ISBN
Volume I: 9788173096914
Volume II: 9788173096938

Volume 1

पुस्तक के विषय में

आस्था का स्रोत तभी तक दिखता है, जब तक किसी जाति में ये सामर्थ्य बना हुआ है कि यह प्रक्रिया उसमें हम सकती है जब तक कोई संस्कृति अपने परिवेश के साथ अपना एक जीवंत संबंध अपने सिंचित अनुभव के आधार पर बना सकती है, तभी तक वह संस्कृति जीवित संस्कृति होती है, नहीं तो वह मर गई होती है। हमें बार-बार मुड़कर पूछना चाहिए कि हम किस संस्कृति में जी रहे हैं, अगर उसमे जी रहे हैं तो वह एक जीवित संस्कृति है या कि एक मरी हुई संस्कृति है। क्या वह केवल वही चीज है जिसका उल्लेख करते हुए हम कह सकते हैं कि यह प्राचीन संस्कृति थी, यह कुछ हजार बरस पहले थी, कितने हजार बरस पहले यह हमें नहीं मालूम, कुछ हजार बरस पहले थी लेकिन आज नहीं है।

अज्ञेय (1911-1987) : कुशीनगर (देवरिया) में सन् 1911 में जन्म। पहले बारह वर्ष की शिक्षा पिता (डॉ. हीरानंद शास्त्री) की देख-रेख में घर पर ही हुई। आगे की पढ़ाई मद्रास और लाहौर में। एम. . अंग्रेजी में प्रवेश किंतु तभी देश की आजादी के लिए एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन में शामिल हुए। जिसके कारण शिक्षा में बाधा तथा सन् 1930 में बम बनाने के आरोप में गिरफ्तारी। जेल में रहकर 'चिंता' और 'शेखर : एक जीवनी' की रचना। क्रमश: सन् 1936-37 में 'सैनिक','विशाल भारत' का संपादन। सन् 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में भर्ती। सन् 1947-1950 तक ऑल इंडिया रेड़ियों में कार्य। सन् 1943 में 'तार सप्तक' का प्रवर्तन और संपादन। क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे सप्तक का संपादन। 'प्रतीक', 'दिनमान', 'नवभारत टाइम्स', 'वाक्', 'एवरीमैन्स' पत्र-पत्रिकाओं के संपादन से पत्रकारिता में नए प्रतिमानों की सृष्टि।

देश-विदेश की अनेक यात्राएँ। भारतीय सभ्यता की सूक्ष्म पहचान और पकड़। विदेश में भारतीय साहित्य और संस्कृति का अध्यापन। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित, जिनमें 'भारतीय ज्ञानपीठ' सन् 1979 यूगोस्लविया का अंतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान 'गोल्डन रीथ' सन् 1983 भी शामिल। सन् 1980 से वत्सल निधि के संस्थापन और संचालन के माध्यम से साहित्य और संस्कृति के बोध निर्माण में कई नए प्रयोग।

अब तक उन्नीस काव्य-संग्रह, एक गीति-नाटक, छह उपन्यास, छह कहानी-संग्रह, चार यात्रा संस्मरण, नौ निबंध-संग्रह आदि अनेक कृतियाँ प्रकाशित।

प्रकाशकीय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' भारतीय साहित्य में युग-प्रवर्त्तक रचनाकार और चिंतक हैं । वे कवि, कथाकार, नाटककार, निबंधकार, यात्रा-संस्मरण लेखक, प्रख्यात पत्रकार, अनुवादक, संपादक, यात्राशिविरों, सभा-गोष्ठियों व्याख्यानमालाओं के आयोजकों में शीर्षस्थ व्यक्तित्व रहे हैं। भारतीय साहित्य में अज्ञेय का व्यक्तित्व यदि किसी व्यक्तित्व से तुलनीय है तो केवल रवींद्रनाथ टैगोर से । भारतीय सांस्कृतिक नवजागरण, स्वाधीनता-संग्राम की चेतना के क्रांतिकारी नायक अज्ञेय जी का व्यक्तित्व खंड-खंड न होकर अखंड है । रचना-कर्म में नए से नए प्रयोग करने के लिए वे सदैव याद किए जाएँगे । अज्ञेय जी जीवन का सबसे बड़ा मूल्य-'स्वाधीनता' को मानते रहे हैं ।

पचास वर्ष से अधिक समय तक हिंदी-काव्य-जगत पर छाए रहकर भी वह परंपरा से बिना नाता तोड़े नए चिंतन को आत्मसात करते हुए युवतर-पीढ़ी के लिए एक चुनौती बने रह सके । यह हर नए लेखक के लिए समझने की बात है । परंपरा के भीतर नए प्रयोग करते हुए कैसे आधुनिक रहा जा सकता है, इसका उदाहरण उनका संपूर्ण रचना-कर्म है । अज्ञेय जी का चिंतन बुद्धि की मुक्तावस्था है । भारतीय आधुनिकता है । उनका स्वाधीनता-बोध गौरव-बोध से अनुप्राणित था जिसके सांस्कृतिक-राजनीतिक आयाम इतने व्यापक थे कि उसमें इतिहास-पुराण, कला-दर्शन, संस्कृति-साहित्य सब समा जाते थे । अज्ञेय जी अपने अभिभाषणो-लेखों-निबधों में अलीकी चिंतक हैं । हमें विश्वास है कि अज्ञेय जी के नए सर्जनात्मक चिंतन से साक्षात्कार करानेवाले अभिभाषणों का यह संकलन पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा ।

 

क्रम-सूची

1

पुरोवाक्

11

2

आधुनिक हिंदी उपन्यास की सामाजिक पृष्ठभूमि और दृष्टि

13

3

लेखक की स्थिति

33

4

संस्कृतियाँ मूल्यों की सृष्टि करती हैं

42

5

शिक्षा, संस्कार और राजनीति

48

6

शिक्षा और गंभीर उत्तरदायित्व का बोध

54

7

शिक्षा और समाज-संस्कृति

62

8

उच्च शिक्षा : स्वरूप और समस्याएँ

70

9

साहित्य और संप्रेषण : स्वाधीन कर्तृत्व का ऊर्जा स्रोत

82

10

व्यक्ति और व्यवस्था

89

11

भारतीय साहित्य

114

12

साहित्य रचना और साहित्यकार

126

13

संस्कृति की चेतना

131

14

विवेक और आज की शिक्षा-पद्धति

150

15

साहित्य और अन्य विद्याएँ

158

16

आँखों देखी और कागद लेखी

167

17

बाल-जगत की देहरी पर

185

18

अकादेमियाँ क्या करें?

202

19

आज के भारतीय समाज में लेखक

212

20

काल का डमरू-नाद

220

21

समकालीन कविता की दशा

232

22

भारतीय साहित्य : तुल्नात्मक दृष्टि

244

23

इतिहास, संप्रदाय और सरकार

253

24

आस्था के स्रोत (प्रथम व्याख्यान) और साहित्य एवं सांस्कृतिक

मूल्य (द्वितीय आख्यान)

259

25

साहित्य, संस्कृति और समाज परिवर्तन की प्रक्रिया

293

26

कलाओं की बुनियाद : संप्रेषण

309

27

समृति के परिदृश्य

313

परिशिष्ट

 

(क) अज्ञेय का जीवन-वृत्त

340

 

(ख) कृतित्व

345

 

(ग) सहायक सामग्री

350

Volume 2

पुस्तक के विषय में

यदि आप आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रगति से तनिक-सा भी परिचय रखते हैं, तब आपने अनेकों बार पढ़ा या सुना होगा कि हिंदी आश्चर्यजनक उन्नति कर रही है, कि उसकने भारत की अन्य सभी भाषाओं को पछाड़ दिया हैं, कि हिंदी साहित्य-कम-से-कम उसक कुछ अंग-संसार के साहित्य में अपना विशेष स्थान रखते हैं। जब से साहित्य की समस्या भाषा-अर्थात् 'राष्ट्रभाषा'-के विवाद के साथ उलझ गई है, तब से इस ढंग की गर्वोक्तियाँ विशेष रूप से सुनी जाने लगी हैं। निस्संदेह ऐसे 'रोने दार्शनिक' भी हैं, जो प्रत्येक नई बात में हिंदी का ह्रास ही देखते हैं-और राष्ट्रभाषा की चर्चा चलने के समय से तो ऐसे समय-असमय खतरे की घंटी बजाने वालों की संख्या अनगिनत हो गई है-लेकिन इन गर्वोक्तियों से आप सभी परिचित होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।

क्या आपने कभी इनकी पड़ताल करने का यत्न या विचार किया है? क्या ये पूर्णतया सच्ची हैं? यदि इनमें आंशिक सत्य है तो कितना, और क्या? यदि हमारी प्रगति विशेष लीकों में पड़ रही है तो किनमें और कैसे?

अज्ञेय (1911-1987): कुशीनगर (देवरिया) में सन् 1911 में जन्म। पहले बारह वर्ष की शिक्षा पिता (डॉ. हीरानंद शास्त्री) की देख-रेख में घर पर ही हुई। आगे की पढ़ाई मद्रास और लाहौर में। एम. . अंग्रेजी में प्रवेश किंतु तभी देश की आजादी के लिए एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन में शामिल हुए। जिसके कारण शिक्षा में बाधा तथा सन् 1930 में बम बनाने के आरोप में गिरफ्तारी। जेल में रहकर 'चिंता' और 'शेखर : एक जीवनी' की रचना। क्रमश: सन् 1936-37 में 'सैनिक','विशाल भारत' का संपादन। सन् 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में भर्ती। सन् 1947-1950 तक ऑल इंडिया रेड़ियों में कार्य। सन् 1943 में 'तार सप्तक' का प्रवर्तन और संपादन। क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे सप्तक का संपादन। 'प्रतीक', 'दिनमान', 'नवभारत टाइम्स', 'वाक्', 'एवरीमैन्स' पत्र-पत्रिकाओं के संपादन से पत्रकारिता में नए प्रतिमानों की सृष्टि।

देश-विदेश की अनेक यात्राएँ। भारतीय सभ्यता की सूक्ष्म पहचान और पकड़। विदेश में भारतीय साहित्य और संस्कृति का अध्यापन। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित, जिनमें 'भारतीय ज्ञानपीठ' सन् 1979 यूगोस्लविया का अंतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान 'गोल्डन रीथ' सन् 1983 भी शामिल। सन् 1980 से वत्सल निधि के संस्थापन और संचालन के माध्यम से साहित्य और संस्कृति के बोध निर्माण में कई नए प्रयोग।

अब तक उन्नीस काव्य-संग्रह, एक गीति-नाटक, छह उपन्यास, छह कहानी-संग्रह, चार यात्रा-संस्मरण, नौ निबंध-संग्रह आदि अनेक कृतियाँ प्रकाशित।

प्रकाशकीय

अज्ञेय के जन्म शताब्दी वर्ष में 'सस्ता साहित्य मंडल' द्वारा उनके अनुपलब्ध साहित्य को आम पाठक के लिए सुलभ कराने का कार्य किया जा रहा है । यह कार्य इसीलिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण है कि अज्ञेय के सृजन-चिंतन में हमारा परंपरा के पुरखे बोलते मिलते हैं। परंपरा को विकृत किए बिना परंपरा के भीतर नए प्रयोग करते हुए कैसे आधुनिक रहा जा सकता है-यह बात अज्ञेय जी से सीखने की है । भारतीय स्वाधीनता आदोलन के अद्भुत जीवट वाले योद्धा रचनाकार अज्ञेय के नए रचना-तर्क को आज समझने की जरूरत है। परंपरागत रूढ़िवाद, रीतिवाद, कलावाद से लड़ते हुए अज्ञेय नए हिंदी साहित्य को स्वातंत्र्योतर युग में नया मोड़ देते हैं। एक ऐसा मोड़ जिस पर आज की पीढ़ी गर्व कर रही है। अपने समय में घोर-विवादास्पद अज्ञेय आज विरोधियों के लिए श्रद्धा के पात्र हो गए हैं । यह उनकी बहुत बड़ी विजय है । सभी ओर से यह ध्वनियाँ फूट रही हैं कि हिंदी के नए सृजन-चिंतन की असाध्य वीणा अज्ञेय के हाथों ही बजी है। वे ही उसके शिष्य साधक हैं ।

अज्ञेय द्वारा रचित, संपादित कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के प्रकाशन को लेकर 'सस्ता साहित्य मंडल' गर्व और गौरव का अनुभव कर रहा है । इसी गौरवपूर्ण परंपरा में अब तक कई प्रकाशित-अप्रकाशित अभिभाषणों को दो भागों में प्रकाशित किया जा रहा है । इस अभिभाषणों की मौलिक अंतर्वस्तु से हिंदी का नया काव्यशास्त्र निर्मित करने वालों को बहुत बड़ा खजाना मिल जाएगा । देश-विदेश से तमाम नया माल लाकर अज्ञेय ने हिंदी के चिंतन को, निबंध साहित्य को समृद्ध किया है । शायद ही किसी रचनाकार, संपादक, पत्रकार ने अपने समय में साहित्य-कला-संस्कृति, समाज, राजनीति, मिथक, काल-चिंतन को लेकर इतने बुनियादी प्रश्नों को उठाया हो, जितना अज्ञेय ने। उनका कथन है' इसलिए मैं कवि हूँ आधुनिक हूँ नया हूँ' हर तरह से अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है । अज्ञेय जी के ये अभिभाषण भारतीय भाषा-साहित्य-संस्कृति की अविच्छिन्न परंपरा को समझने में सहायक सिद्ध होंगे । इस विश्वास के साथ इन अभिभाषणों को आपके हाथों में सौंपना चाहता हूँ ।

 

क्रम-सूची

1

पुरोवाक्

09

2

शब्द, मौन, अस्तित्व

11

3

मानव:प्रतीक-स्रष्टा

17

4

छंद-बोध: आधुनिक स्थितियाँ

22

5

कविता : श्रव्य से पठ्य तक

37

6

भारतीय लेखक और राज्याश्रय

51

7

लेखक और राज्य

62

8

भारतीयता का एक सरकारी चेहरा

68

9

आत्मकथा, जीवनी और संस्मरण

78

10

शिक्षा और जाति-विचार

87

11

हमारे समाज में नारी

94

12

लेखक और परिवेश

103

13

विराट का संस्पर्श

115

14

आलोचना है आलोचक हैं आलोक चाहिए

123

15

कवि-कर्म : परिधि, माध्यम, मर्यादा

134

16

मिथक

147

17

सभ्यता का संकट

158

18

जो मारे नहीं गए वे भी चुप हैं

173

19

प्रासंगिकता की कसौटी

176

20

सांस्कृतिक समग्रता : भाषिक वैविध्य

183

21

संस्कृति और परिस्थिति

190

22

परिस्थिति और साहित्यकार

200

परिशिष्ट

23

(क) अज्ञेय का जीवन-वृत्त

217

24

(ख) कृतित्व

222

25

(ग) सहायक सामग्री

227

 

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories