रेखाचित्र का रेखाचित्र लिखने वाले लेखक श्री शिवचंद्र जी नागर की लेखनी से लिखे गए रेखाचित्र एवम् संस्मरण साहित्यिक कसौटी पर तो सफल हैं साथ ही लेखक की लेखन क्षमता एवम् दक्षता के परिचायक हैं तथा उनसे तादात्मय स्थापित करने एवम् परकाया प्रवेश कर दूसरे के मनोभावों को ग्रहण कर अभिव्यक्त करने की कला के संवाहक भी हैं।
डायरी-लेखन नितांत व्यक्तिगत विधा है परन्तु जब कोई लेखक व्यक्तिगत स्तर से ऊपर उठ कर समाज, साहित्य एवम् संस्कृति के संबंध में अपने विचारों एवम् प्रतिक्रियाओं को कलात्मक स्तर पर प्रस्तुत करता है, तब डायरी का अंग बन जाती है।
श्रीयुत नागर जी द्वारा इलाहाबाद में अध्ययनकाल में भारतीय संस्कृति के निर्माताओं के संबंध में अपने भावों एवम् विचारों को अपनी साहित्यिक डायरी के पृष्ठों में अंकित किया गया है जिसमें महीयसी महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, उपेन्द्र नाथ 'अश्क', शान्तिप्रिय द्विवेदी, डा. रघुवंश, श्री गंगाप्रसाद पांडेय, मैथिलीशरण गुप्त, विश्वम्भर मानव, नृत्यकार उदयशंकर, श्रीमती लीलावती मुंशी, हीरानंद वात्सयायन 'अज्ञेय', रामकुमार वर्मा, श्रीमती विद्यावती कोकिल, लेनिन, स्टालिन, रवीन्द्रनाथ टैगोर, जगदीश गुप्त, धर्मवीर भारती, इलाचंद जोशी एवम् रामधारी सिंह दिनकर आदि का यथास्थान उल्लेख हुआ है तथा महादेवी, पंत एवम् निराला के प्रदेय के संबंध में विशेष रूप से चर्चा हुई है। डायरी के पृष्ठ बहुत कम हैं। यदि और पृष्ठ लिखे जाते तो निश्चय ही हिन्दी साहित्य की और अधिक सेवा होती। त्रिवेणी के तट पर विरचित साहित्य के इन अमर शब्दों में भाषा एवम् भाव के सुंदर संगम का आनंद प्राप्त कर हृदय का परिमार्जन करने हेतु मैं प्रत्येक पाठक का स्वागत करता हूँ, आह्वान करता हूँ, निमंत्रण करता हूँ। पुस्तक साहित्य की धरोहर है। सभी पृष्ठ आकर्षक, सुंदर, सजीव एवम् सरल हैं तथा पाठक को आद्योपांत अपने पार्श्व में बांधने में सफल हैं। भारतीय साहित्य के निर्माण में उस युग के योगदान का सुंदर दस्तावेज हैं। अनुपम निदर्शन हैं। संक्षेप में पुस्तक संग्रहणीय है। हिन्दी जगत में प्रथम बार प्रस्तुत है, मौलिक है, अभिनंदनीय है।
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