प्रस्तुत कहानी संग्रह 'सिन्धु के किनारे' में भारत और उसके निवासियों के गुण-दोष, जय-पराजय गरिमा और महिमा, निकृष्ट स्वार्थ और अतुलनीय त्याग, वीरता-वैभव और कर्तव्यनिष्ठा, सुधार और रचनात्मक निर्माण के द्वारा पुनः भारत को उसके अतीत की ऊँचाईयों पर पहुँचाने के लिए जगाया गया है। प्रेरणा की एक जीवन्त पृष्टभूमि भारतीय मानस में बैठाने की कोशिश की गई है। जिसके सबल आधार पर एक प्रबल और प्रखर राष्ट्र का पुनः निर्माण हो सके। भारत के प्राचीन परिवेश से लेकर, अर्वाचीन परिस्थितियों के माध्यम से इस संग्रह में सम्मिलित कहानियों में कहीं देशभक्ति से आप्लावित बलिदान का शंखनाद है तो कहीं भारतीय समाज और शासन में सुधार की सबल आवाज है। मानवीय मूल्यों के प्रति आकर्षण और राष्ट्रीय चेतना को जगाने का प्रयास किया गया है। व्यक्तिगत हित की लिप्सा से ऊपर उठकर जन्मभूमि- पुण्यभूमि की भावना को भारत भर में कहानी के माध्यम से भरने का दृश्यमान जीवन्त प्रेरणा का उन्मेष किया गया है।
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