श्यामा मंजरी उपन्यास में लेखिका ने भारतीयता की भावना को उजागर करते हुए यहां के समाज की आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक समस्याओं के प्रति ध्यानाकर्षण किया है। स्त्री-पुरुष के आपसी सम्बन्ध, उनकी पवित्र भावनाएं एवम् विश्वास को दृढ़ किया है। भारतीय समाज में हिन्दू-विधवा विवाह की दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए समाज की इस प्रबल बुराई को दूर करने का प्रयत्न किया है।
श्यामा मंजरी उपन्यास का लेखन मथुरा के आस-पास के ब्रज धरातल का है। ब्रज भाषा का माधुर्य भी इसमें झलकता है तथा साथ ही सामाजिक बुराई के प्रति समाज को चेताया है और सुधार लाने का प्रयास किया है। इस उपन्यास में; नारी जीवन के प्रेम, करुणा और त्याग को लेकर अपनी इसी कल्पना को साकार रूप देकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है।
इस उपन्यास को लेखिका अपने पति एल. पी. शर्मा की स्मृति को समर्पित करती हैं।
उपन्यास की भाषा और शैली भाव- प्रधान व अत्यन्त माधुर्य से ओत-प्रोत है। उपन्यास रोचक है और शिक्षाप्रद भी। आशा है यह पाठक वृन्द के मन को अन्त तक बांधे रखकर मनोरजित करने में सक्षम रहेगा।
मेरी रचनाओं का क्षेत्र भारतीय समाज तक ही सीमित रहा है और उसमें भी मुख्यतया भारत के जन-साधारण वर्ग की भावनाओं, मान्यताओं और सुख-दुख तक। मुझे संघर्ष चाहे उसका आधार राजनीतिक हो, आर्थिक, सामाजिक अथवा स्त्री-पुरूष के सम्बन्ध और उससे उत्पन्न कटुता, तनाव, अविश्वास, शंका आदि को समझने तथा व्यक्त करने में रुचि नहीं रही है। सम्भवतया, मेरे लेखन का यह एक दोष भी है। परन्तु मेरी सृजन-कला का आधार इस संघर्ष से विरक्त-रहित होकर मनुष्य-स्त्री और पुरूष दोनों की सरल भावनाओं की अभिव्यक्ति और उसके माध्यम से उन पर बल देकर भारतीय समाज द्वारा उनको ग्रहण किये जाने की अभिलाषा है। निसन्देह, हमारे समाज में अनेक कुरीतियां और भ्रांतिपूर्ण धारणायें और भावनायें व्याप्त हैं और उनका निराकरण किया जाना आवश्यक है। इस कारण मेरी दृष्टि इस ओर न हो, ऐसा नहीं है। भारत में हिन्दू-विधवा की स्थिति दयनीय है। "श्यामा मंजरी" के माध्यम से मैंने इस कुप्रथा की बुराईयों की ओर संकेत दिया है, यद्यपि मेरा मूल अभिप्राय पति-पत्नी, भाई-बहिन, और मां-बेटी के आदर्श सम्बन्धों को उजागर करना है। कथानक का मुख्य केन्द्र-स्थान मथुरा के निकट वृन्दावन है जहां ब्रज-भाषा प्रभावशाली है। मुझे ब्रज-भाषा का अधिक ज्ञान नहीं है। तब भी मैंने क्षेत्र के अनुकूल ब्रज-भाषा के प्रयोग को उचित मानकर प्रयोग करने का प्रयत्न किया है। मैं कहां तक सफल हूं, इसका निर्णय पाठक-गण ही करेंगे।
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