अक्षय निधि
सांस्कृतिक चेतना के विकास के उद्देश्य से स्वराज सस्थान संचालनालय द्वारा अक्षय निधि प्रकाशनमाला के अंतर्गत सभी समय के शीर्ष रचनाकारों और चिंतको की कृतियो से सुबोध सस्करण के प्रकाशन की महत्तर योजना है।
कालिदास, भर्तृहरि, भास, वराहमिहिर, वररुचि, भवभूति, पतजलि, भास्कराचार्य, बाणभट्ट, राजशेखर, भोजदेव से लेकर तानसेन, केशव, पद्माकर, ईसुरी, स्वामी प्राणनाथ, स्वामी सेन, सत पीपा, स्वामी धर्मदास, गदाधार भट्ट, हरिदास स्वामी, सत सिंगाजी चंद्रशेखर आजाद, महात्मा अक्षर अनन्य, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, सुभद्रा कुमारी चौहान, हार, मुक्तिबोध, नरेश मेहता, पंडित सूर्यनारायण व्यास, डॉ. शिवमंगल सिह सुमन- ये ऐसे नाम है जिन्होंने अपने कृतित्व और प्रखर चिंतन से हमारे समाज और संस्कृति को उत्कर्ष देने का काम किया है। ये हमारी महानतम अक्षय निधि है। सौभाग्य से इनकी कर्मभूमि मध्यप्रदेश रहा है उपर्युक्त नामों के अतिरिक्त भी कई और शीर्ष नाम हो सकते हैं, जिन्हे हम अक्षनिधि योजना में शामिल करना चाहेने। इससे हमारा सास्कृतिक पर्यावरण बेहतर होगा।
संस्कृति केवल कलात्मक रुचि की भूमि नही है, यह स्वाधीन चेतना की कसौटी भी है। किसी राष्ट्र और समाज की स्वराज-भावना कितनी प्रबल है यह उसकी सांकृतिक गतिविधि और रुचि में प्रकट होती है। हमारी प्रकाशन योजना में शामिल हुए महापुरुष अपने-अपने समय मैं विशाल बौद्धिक और सामाजिक आदोलनों के प्रेरणास्रोत और मनुष्य की स्वाधीनता के सजग चिंतक रहे हैं। इनका महत्त्व दमन, अज्ञान, अंधविश्वास के विरुद्ध सामाजिक स्वाधीनता के लिए किए गए सघर्ष में है। इनके कृतित्व भी गहरे अर्थों में महान राजनीतिक मूल्य है। सांस्कृतिक अनुष्ठानों के बगैर राजनीतिक अभियानों में नैतिक शक्ति आ ही नही सकती । इसलिए यह अनुष्ठान हर दौर में जरूरी रहा है। अंगरेजी हुकूमत के दौर में, और उसके पहले भी, और आज भी इसका महत्व उतना ही है। कई मायने में पहले से ज्यादा।
अक्षय निधि के रूप में हमने जिन कृतियों का चुनाव किया है उनमें से अधिकांश सहज उपलब्ध नही हैं कुछ तो लगभग अप्राप्य हैं। दूसरी बात, पुरानी कृतियों के आधुनिक भाषाओ में लाने और लोकप्रिय स्वरूप देने के प्रयास बहुत कम हुए हैं। अनूदित रूप से अकादेमिक उपयोग की वस्तुए ही अधिक दिखाई पड़ती है। यह सब देखते हुए हमने अक्षय निधि के अंतर्गत महान कृतियो के मूल पाठ के साथ-साथ बोधगम्य भाषान्तरण अथवा पुनर्रचना को बड़े पाठक समुदाय तक पहुँचाने का संकल्प किया है। आधुनिक लेखको की कृतियो के प्रकाशन में भी हम उनके लोकग्राही स्वरूप पर विशेष ध्यान रखेगे। पहले क्रम मे भर्तृहरि के शतकत्रयी से चुने हुए श्लाका की अनुरचना, वराहमिहिर द्वारा भू-जल उपयोग पर केंद्रित कृति 'जल जीवन है', भवभूति की 'उत्तररामचरित', भोजदेव की 'समरांगण सूत्रधार' और 'नाटयकार शूद्रक' की अनन्य कृति प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है, हमारा यह प्रयास वृहत्तर समाज के विकास और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने में सहयोगी होगा।
अनुक्रम
अक्षयनिधि
5
1
शूद्रक
9
2
मृच्छकटिक
46
3
पद्मप्राभृतकम्
68
4
वीणावासवदत्ता
75
सन्दर्भ पुस्तकें
120
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