अति प्राचीन काल से ही पुराण साहित्य का विशेष महत्त्व रहा है। वस्तुतः वेद की ही भाँति पुराण साहित्य भी भगवान का निःश्वास स्वरूप ही है। छान्दोग्योपनिषद् में नारद जी ने सनतकुमार से कहा- 'स होवाच ऋग्वेद भगवोऽध्येमि यजुर्वेद सामवेदमथर्वणं चतुर्थमितिहास पुराणं पंचमं वेदम्।' मैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद चौथे अथर्ववेद और पाँचवे वेद इतिहास पुराण को जानता हूँ। यदि पुराणों को नहीं जाना गया तो ब्राह्मण विलक्षण नहीं हो सकता।
अत्यन्त प्राचीन तथा वेद को स्पष्ट करने वाला होने से ही इसका नाम 'पुराण' हुआ है। पुराणों की अनादिता, प्रामाणिकता तथा मंगलमयता का स्थल-स्थल पर उल्लेख है। भगवान व्यास देव ने प्राचीनतम पुराण का प्रकाश और प्रचार किया है। वस्तुतः पुराण अनादि और नित्य है। महापुराण अठारह हैं। ब्रह्म, पद्म, शिव, विष्णु, श्रीमद् भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़ और ब्रह्माण्ड।
उक्त सभी पुराण एक से एक विशेष महत्व के हैं। गरुड़ पुराण की उपादेयता तो सर्वविदित है। मानव जीवन का कल्याण, पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, मृत्युपरांत की और्ध्वदेहिक क्रिया, षोड्ष श्राद्ध परम्परा आदि के द्वारा विश्वास का सृजन होता है। गरुड़ पुराण सत्रह अध्यायों का एक लघुकाय पौराणिक आख्यान है। भगवान विष्णु ने अपने सेवक वाहन विहगेन्द्र (गरुड़ जी) को यमराज की पुरी का भयावह दृश्य वर्णन किया है। पापाचरण युक्त प्राणी को इहलोक और परलोक दोनों में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। मानव जीवन को प्राप्त कर यदि सुकृत्य नहीं किया जाय तो यमराज की पुरी में जाकर कष्टों की प्राप्ति होती है । पुत्र को अपने माता-पिता का मृत्युपरांत की क्रिया करना परमावश्यक एवं पुनीत कर्म उल्लिखित हुआ है। पुत्र वह है जो पुम् नामक नरक से माता-पिता का उद्धार करता है। श्राद्धादिक करने से पितृीश्वर प्रसन्न होते हैं। पुत्र पौत्रादिकों के पुण्य आदि करने से जो आनन्द पितृीश्वरों को मिलता है वह अलौकिक है। इन सभी का वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है। शैय्या दान, पद दान आदि की महत्ता का वर्णन इस पुराण में बड़े विस्तार के साथ मिलता है।
सुक्ती शुद्ध और श्रीमान के घर में उत्पन्न होता है। धर्मात्मा जन स्वर्गिक आनन्द की प्राप्ति करता है। गरुड़ पुराण का श्रवण अपने तथा पूर्वजों के उद्धार के लिए है। अतः पुण्य कर्मों की साधना परम अपेक्षित है। धार्मिक वचनों में श्रद्धा, गुरु, आस्था, ज्ञान की प्राप्ति, तत्व ज्ञान आदि सभी में गरुड़ पुराण कथा का श्रवण परम उपयोगी है।
(श्राद्धादि पितृ कार्यों में वेद, धर्मशास्त्र, आख्यान, इतिहास पुराण आदि सुनाने चाहिये।)
गरुड़ पुराण वेदान्त दर्शन से ओत-प्रोत है, ईश्वर की शक्ति अपार है। वह शक्ति है माया, जिससे ईश्वर अज्ञानियों के लिए अदृश्य रहता है। गरुड़ पुराण के वचन अमृत वचन हैं जिसके अनुसार आचरण करने से प्राणी भवसागर से मुक्ति प्राप्त करने में सहायक होता है।
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