भूमिका
वेद घोषणा करते हैं कि दुनिया की सब ऋद्धियों और सिद्धियों का निवास हिरण्य अर्थात् सोने में है । वैदिक काल मे मुख्य रूप से सोने की मुद्राओं का चलन होने के कारण वहा हिरण्य धन का ही वाचक है । इसीलिए लक्ष्मी ऋग्वेद मे हिरण्यवर्णा होने के साथ हिरण्यमयी भी है- हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्णरजतसजामू।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।।
लक्ष्मी जी को हरिणी कहा गया है । इसका बड़ा गहरा अर्थ है । सस्कृत की हर धातु का अर्थ है- हर लेना, चुरा लेना ।
इस प्रकार हरिणी शब्द का अर्थ होगा (मन को) हर लेने वाली । क्या राजा और क्या रंक' कौन रागी और कौन विरागी? एक तरफ से सबके मन को मोहने वाली, हिरनी की तरह पल भर में ही यहा से वहा पहुचकर इठलाने वाली, चचल और चलायमान हैं लक्ष्मी देवी ।
मनुष्य की तो भला हस्ती ही क्या, साक्षात् हरि, सर्वव्यापक भगवान् विष्णु के मन को भी हर लेने वाली शक्ति का नाम लक्ष्मी यानि हरिणी
यह लक्ष्मी कभी हाथी घोड़ों में, कभी जमीन जायदाद में, कभी सिंहासन या कुर्सी मे, कभी सभा, संसद में कभी बड़ी बड़ी सेनाओ की शक्ल में, और कभी ताकत के विविध रूपो मे बहुरूप बनाने पर भी अनपगामिनी अर्थात् कुपात्र के पास लम्बे समय तक नहीं ठहरती । वहा तो चार दिनों की चांदनी बिखेर कर पति पत्नी के विवाद की तरह, सुबह के बादल की तरह और खरगोश के सींग की तरह गायब हो जाती है । इसीलिए श्रुति कहती है
उच्चैर्वाजि पृतनाषाट् सभासाहं धनंजयम् ।
लक्ष्मी को तपस्या यानि एक तान एक सुर और एक लक्ष्य होकर पूरे समर्पण के साथ काम करने वाले लोग बहुत प्रिय हैं । तपस्या से ही सूरज की तरह दमकती हुई सफलता रूपी लक्ष्मी का स्वादिष्ट फल मिलता है आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो तस्या फलानि तपसा नुदन्तु । लक्ष्मी की खुशबू इश्क मुश्क और खांसी की तरह लाख छुपाए नहीं छुपती, इसीलिए वेदी मे इसे गन्धद्वारा कहा है । इसके प्रभाव और आकर्षण से कोई भी तो नहीं बच सका है, तभी तो यह दुराधर्षा भी है । सोने और चांदी का तो जूता भी प्यारा लगता है-
गन्धद्वारां दुराधर्षां... ईश्वरीं सर्वभूतानाम्।
बिना लक्ष्मी के अपनी सन्तान तो क्या खुद का साया भी साथ नहीं चलता । सुख में दुःख में सदा साथ निभाने के वायदे करने वाला जीवनसाथी भी निखट्टू खसम के साथ कब तक निर्वाह करे जब जेब में ही रेगिस्तान हो तो बीमार होने पर सरकारी अस्पतालो की लाइनों में लगे लगे असमय ही सिधारने को मजबूर होगा ही।
लक्ष्मी से ही बाजार साख बनती है। साख से ही आदमी को उधार मिलता है। लक्ष्मीहीन तो बेचारा सब जगह भिखारियों की तरह दुत्कारा ही जाता है। लक्ष्मी से ही व्यक्ति की श्री शोभा, इक्कबाल, वर्चस्व, पूरी आयु का भोग, अच्छा स्वास्थ्य है।
इसी की महिमा से व्यक्ति पवित्र, आदरणीय और अग्रपूज्य बनता है। लक्ष्मी वाले को ही झगड़े विवाद से भय नहीं लगता। वह शोक के सागर को भी सरलता से पार कर सकता है । लक्ष्मी पास हो तो मन में घबराहट नहीं होती। वैदिक ऋषि लक्ष्मी जी से यही तो चाहता है-
विषयानुक्रम
1
प्रवेशक:
11
2
पंचांग सिद्धि:
17
3
लग्नत्रय सिद्धि:
38
4
कारकांश पद सिद्धि
51
5
होरा घटी लग्न सिद्धि:
59
6
धूमादि उपगह सिद्धि:
79
7
ग्रहयोग सिद्धि
87
8
मिश्र सिद्ध:
100
9
उपाय सिद्धि:
128
10
उपसर्जनम्
167
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