पुस्तक परिचय
क्रियाकलाप शब्द शालाक्यतंत्रोक्त प्रत्यगों की चिकित्सा विशेषतः नेत्र चिकित्सा में प्रयुक्त उपकर्मो के लिए प्रचलित पारिभाषिक शब्द है | एवं आयुर्वेद दृष्टया नेत्र व् अन्य इन्द्रियधिष्ठानों की चिकित्सा के लिए विशिष्ठ चिकित्सा व् मौलिक दें है | इन उपकर्मो के बारे में विषय वस्तु संहिता, ग्रंथों में यत्रतत्र व् अति संक्षिप्त रूप में विद्दमान है | कई विषयों में स्पष्टता का आभाव देखने को मिला | क्रित्यात्मक दृष्टया दक्षिण भारत को छोड़ इसका प्रचलन भी बन्द प्रायः देखा जाता है | इन चिकित्सा उपकर्मो को स्पष्टता सामने लेन व् क्रियात्मक प्रयोग लेन हेतु सुगम बनाने हेतु इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है |
नेत्र चिकित्सोपयोगी परिषेक/सेक, आश्रोचतन, पिण्डिका, विडालक, स्वेद, तर्पण, पुटपाक और अञ्जन उपकर्मो को विमर्शात्मक व् क्रियात्मक प्रयोग हेतु सुगम्य/ सुबोध रूप में प्रस्तुत किया गया है | साथ ही कर्ण, नासा, मुख व् दन्त चिकित्सा उपकर्मो यथा कर्णपूर्ण, कर्ण प्रमार्जन, कर्ण पक्षालन, नस्य, धूमपान, मुख प्रतिसारण, कवल गण्डूष, मूर्द्ध टेल व् मुखा लेप को भी समाहित किया गया है जिससे की शालाक्य तन्त्र विषय के समस्त चिकित्सोपक्रम एक स्थान पर उपलब्ध हो | इन उपकर्मों का आधुनिक अौषधगुण धर्म विज्ञानं के सिंद्धान्तानुसार तार्किक विवेचन भी उपस्थित किया गया है | लेखक के व्यक्तिगत प्रायोगिक अनुभव के आधार पर इनमे विमर्श प्रस्तुत किया गया है व् इन उपकर्मों के आवश्यक चित्र भी प्रस्तुत है | लेखक का विश्वास है की इस पुस्तक को पढ़कर आयुर्वेद चिकित्स्यक इन उपकर्मों को रुग्णों पर क्रियात्मक रूप में प्रयोग करने हेतु सुगमता पाएंगें व् यशलाभ प्राप्त करेंगे |
लेखक परिचय
प्रोफेसर करतार सिंह धीमान का जन्म हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद, ज्वाली तहसील के सिद्धपुरघाड (भरमाड) गाँव में हुआ | प्राथमिक शिक्षा के दौरान पूज्य पिताश्री ज्ञान सिंह जी का साया सर से उठ गया व् उनका एक बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना पूज्य माताश्री श्रीमती प्रीतमकौर व् अग्रज, श्री वरयाम सिंह जी ने मेरे द्वारा पूरा करवाया | स्कूली शिक्षा गाँव से प्राप्त कर, हिमाचल प्रदेश के पपरोला स्थित आयुर्वेद कालेज से १९८८ में बी. ए. एम. एस. पास की व् १९९१ में गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्दालय, जामनगर से शालाक्य विषय में प्रोफेसर कुलवंत सिंह जी के निर्देशन में एम. डी. (आयु) उपाधि प्राप्त की | बी. ए. एम. एस. के अध्ययन क्ले दौरान वैद्द सुरेन्द्र कुमार शर्मा, सलाहकार आयुर्वेद, भारत सरकार, का मार्गदर्शन लेखक को आयुर्वेर्दोन्मुखी करने में विशिष्ठ रहा |
फरवरी १९९२ से सितम्बर, २००८ तक पपरोला आयुर्वेद कालेज में ए. एम. ओ. व्याख्याता, वरिष्ठ व्याख्याता व् रीडर एवं विभागाध्यक्ष शालाक्य पदों पर कार्य किया व् पपरोला कालेज के शालाक्य विभाग को वर्तमान स्वरुप दिया | नेत्र, कर्णनासा, गल रोग व् मुख दंतरोग के चिकित्सकीय कार्य को अलग अलग कर एक आदर्श सहलकी विभाग की नींव रखी |
अक्टूबर २००८ से स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसन्धान संस्थान, गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्दालय, जामनगर में प्रोफेसर व् विभागाध्यक्ष शालाक्य के पद पर कार्यरत है | विभाग को आधुनिक निदान व् अनुसन्धान उपकरणों से सुसज्जित कर नेत्र, कर्ण, नासा, मुख और शिर रोगों की आयुर्वेद चिकित्सा का केंद्र विकसित करने व् वैज्ञानिक मुल्यांकन करने में अग्रसर है | इस विभाग के क्रियाकलाप कक्ष, नेत्र, ई. एन. टी. व् मुख दन्त रोग चिकित्सा यूनिट, क्रियाकलाप प्रोगशाला और नेत्र शलयकर्म थिएटर सुचारू व् प्रभावी रूप से कार्यरत है व् शालाक्य विज्ञानं के उत्थान व् लोकसेवा में अग्रसर है |
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