(पुस्तक के विषय में)
जब हम चारों ओर दृष्टि दौड़ाते हैं तो प्रश्नों से स्वयं को घिरा हुआ पाते हैं। किसी को परीक्षा में उत्तीर्ण होने की चिन्ता है तो किसी को मन चाहे विषय या संस्था में प्रवेश या admission पाने की चिन्ता है। कोई नौकरी को लेकर परेशान है तो कोई 30 वर्ष देहरी के समीप पहुँची कन्या के विवाह के लिए चिन्तित है। चिन्ता का नाम रूप बदल सकता है किन्तु चिन्ता का जीवन से चोली दामन जैसा साथ है।
ये चिन्ता विज्ञ ज्योतिषी के समीप प्रश्न बन कर पहुँचती है । चिन्ता का समाधान ज्योतिषी के लिए एक चुनौती है तो शायद उसके ज्ञान और अनुभव की परीक्षा भी है।
प्राच्य संदर्भ गन्धों में सभी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास हुआ है। पंडित मुकुन्द वल्लभ मिश्र ने अपने कथ फलित मार्तण्ड का समापन प्रश्न फलाध्याय से किया है ।
महर्षि पराशर ने भी बृहत्पराशर होरा शास्त्र में ग्रहशान्ति से पूर्व प्रश्नाध्याय को 47 श्लोकों में समेटा है।
उत्तर कालामृत में कालिदास ने दशाफल के बाद प्रश्न खंड को स्थान दिया है। प्रश्न शास्त्र पर अनेक विद्वानों ने टीका और व्याख्या की है उदाहरण के लिए प्रश्नविद्या बादरायण मुनि की इस रचना पर भट्टोत्पल की संस्कृत व्याख्या है षट्पंचाशिका ऋषि वराहमिहिर के पुत्र पृथुयशस की यह रचना मात्र 56 श्लोकों में बनी है। इस पर सुब्रामण्यम शास्त्री की अंग्रेजी भाषा में सुन्दर टीका हुई है।
आर्यासप्तति ऋषि उत्पल ने 70 छन्दों में दसवीं सदी में यह बहु प्रचलित रचना लिखी।
प्रश्नतंत्र आचार्य नीलकंठ ने अपने बहुमूल्य ग्रंथ ताजिक नीलकंठी में वर्ष तंत्र के साथ इसे समाहित किया है । यह लगभग 1587 ई० की रचना हैं इस पर डाक्टर बी०वी०रमण की टीका उपलब्ध है
प्रश्न शिरोमणि श्री वाल्मीकि त्रिपाठी के सुयोग्य पुत्र आचार्य रुद्रमणि द्वारा 18वीं शताब्दी के अंत में लिखी रचना है।भुवनदीपक आचार्य पद्मप्रभु सूरी की 13 वीं सदी की रचना में 170 श्लोकों द्वारा 36 प्रश्नों का विचार हुआ है
प्रश्न वैष्णव आचार्य ब्रह्मदास के पुत्र नारायण जो बाद में सिद्ध नारायण दास के नाम से प्रसिद्ध हुए की यह लघुकाय व प्रसिद्ध रचना है।
प्रश्न सिन्धु पर्वतीय वासवानन्द द्वारा 1817 में रचित पुस्तक पर चौखम्बा प्रकाश्न ने टीका प्रकाशित की है
प्रश्न चंडेश्वर दैवज्ञ रामकृष्ण कृत यह उपयोगी व छोटी रचना हैं वाराणसी से इस पर हृदयग्राही टीका प्रकाशित हुई है।
कृतज्ञता ज्ञापन
मैं आभारी हूँ दिव्य दृष्टा ऋषि मुनियों का जिनके अथक प्रयास से यह दिव्य ज्ञान मानवमात्र के कल्याण के लिए संजोया गया। ज्योतिष के विद्वान लेखक प्रकाशक और वितरक भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने इस अमूल्य धरोहर को संभाल कर रखा व नष्ट होने से बताया ।
मैं कृतज्ञ हूँ ज्योतिष प्रेमी जन और विद्वान ज्योतिषियों का जिनके प्रयास से ज्योतिष मात्र किताबी ज्ञान न हो कर जीवन का अभिन्न अंग बन गया । कदाचित इनके सहयोग के बिना ये दिव्य ज्ञान पुस्तकों में बंद पड़ा रहता ।
मेरे मित्र व प्रकाशक श्री अमृत लाल जैन उनके पुत्र श्री देवेन्द्र ओर श्री उन्नीत जैन का स्नेह च सहयोग इस कृति की प्राण शक्ति है! उन्होंने बहुत परिश्रम व प्रयास से दुर्लभ पांडुलिपियों को संग्रह कर इस पुस्तक को सुसज्जित करने में अमूल्य योगदान दिया । मैं उनका हृदय से कृतज्ञ हूँ।
प्रशंसा करनी होगी कार्यदल के सभी सदस्यों की जिन्होंने बड़ी निष्ठा श्रम व धैर्य से इस कार्य को पूरा करने में अपनी भूमिका निभायी।
मेरे गुरुजन सहयोगी व ज्योतिष मित्र भी प्रशंसा व सम्मान के पात्र हैं- जिन्होंने मेरा उत्साह और मनोबल बनाए रखा- मैं उनका आभारी हूँ।
ज्योतिष में रुचि रखने वाले पाठक मेरी लेखनी की प्राण शक्ति हैं उनके स्नेह व सहयोग के बिना ऐसा लेखन या प्रकाशन भला कब संभव था। वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं उन पर उस हजार हाथ वाले की कृपा निरंतर बनी रहे सभी जन सुख समृद्धि पाएं बस यही प्रार्थना है।
अन्त में आभारी हूँ उस नटवर नागर का जो नित्य नई लीला करता है उठा पटक या उलट पुलट करना तो मानो उसका व्यसन है । सभी को श्रद्धापूर्ण नमन ।
अध्याय-1
विषय प्रवेश
1.1
कालशास्त्र
1
1.2
प्रश्न कुंडली
1.3
प्रश्न कुंडली का उपयोग
2
1.4
प्रश्न व जन्मकुंडली का अन्तर
1.5
प्रश्न कुंडली क्या और क्यों
3
1.6
प्रश्न व जन्म कुंडली का रोचक संबंध
4
अध्याय-2
ग्रह तथा भाव विचार
2.1
ग्रह परिषद
5
2.2
नैसर्गिक शुभ ग्रह
2.3
ग्रहों का अंग विचार
6
2.4
त्रिदोष विचार
2.5
ग्रह से दिशा विचार
2.6
तत्व विचार
7
2.7
ग्रहों में स्त्री पुरुष विचार
2.8
सत्वादि गुण विचार
2.9
वर्ण विचार
8
2.10
ग्रहों का आकार व रंग
9
2.11
धातु मूल जीव विचार
2.12
ग्रहों का स्वरूप व कारकत्व
10
2.13
प्रश्न शास्त्र में भाव विचार
11
2.14
भावाधिपति फल
14
2.15
ग्रहों का षडबल
अध्याय-3
रोग चिन्ता
3.1
रोग प्रश्न कुंडली
18
रोग निदान
19
स्वास्थ्य लाभ
20
3.4
चंद्रमा का बल व शुभता
रोगी की मृत्यु
21
अध्याय-4
नष्ट वस्तु लाभ
4.1
नष्ट धन चिंता
23
4.2
चोर विचार
माल कहाँ है
24
44
ग्रह दृष्टि से नष्ट वस्तु की स्थिति का ज्ञान
25
4.5
चोर पकड़ा जाए
4.6
नष्ट द्रव्य की प्राप्ति
4.7
चोरी का सामान नहीं मिले
26
4.8
पुलिस की सहायता से माल मिले
4.9
क्रूर कर्म विचार
4.10
सामान खोया नहीं है भूल से गलत जगह पर रखा गया
27
अध्याय- 5
पथिक/प्रवासी चिन्ता
5.1
पथिक का अपहरण या मृत्यु
28
5.2
प्रवासी की मृत्यु के योग
29
विवाह कब होगा - 6 नवंबर 1962 प्रात : 9 :20 बैंगलूर
121
मजदूरों की हड़ताल कब समाप्त होगी
122
चोरी हुई हीरे की अंगूठी कब मिलेगी
123
अपने कर्जदार पर दायर किया मुकदमा क्या मैं जीतूँगा
मेरी विदेश यात्रा कब होगी
124
बेहतर नौकरी कब मिलेगी
125
तरक्की कब मिलेगी
126
30
क्या मेरा अपना मकान होगा
31
मेरी पदोन्नति का मामला विचाराधीन है क्या परिणाम होगा
127
32
लाभ कब मिलेगा
128
33
धन प्राप्ति और अपंगता
34
संतान सुख कैसा है
129
35
कितनी बार गर्भपात होगा
36
मेरा प्रेम विवाह होगा या नहीं
130
37
क्या भाग्य साथ देगा
132
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