जीवन रहस्य: Secret of Life

FREE Delivery
$27
$36
(25% off)
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA624
Author: Osho Rajneesh
Publisher: OSHO MEDIA INTERNATIONAL
Language: Hindi
Edition: 2013
ISBN: 9788172611521
Pages: 216 (13 B/W illustrations)
Cover: Hardcover
Other Details 8.5 inch X 7.0 inch
Weight 500 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

पुस्तक के विषय में

 

धर्म विज्ञान है जीवन के मूल स्त्रोत को जानने का। धर्म मेथडोलॉजी है, विधि है, विज्ञान है, कला है उसे जानने का जो सच में जीवन है। वह जीवन जिसकी कोई मृत्यु नहीं होती। वह जीवन जहां कोई दुख नहीं है। वह जीवन जहां न कोई जन्म है, न कोई अंत। वह जीवन जो सदा है और सदा था। और सदा रहेगा। उस जीवन की खोज धर्म है। उसी जीवन का नाम परमात्मा है। परमात्मा कहीं बैठा हुआ कोई आदमी नहीं है आकाश में। परमात्मा समग्र जीवन का, टोटल लाइफ का इकट्ठा ना है। ऐसे जीवन को जानने की कला है धर्म।

मनुष्य को बनना है दर्पण; चुप, एक लहर भी न हो मन पर । तो उसी क्षण में, जो है उसी का नाम परमात्मा हम कहें, सत्य कहें, जो भी नाम देना चाहें । नाम से कोई फर्क नहीं पडता है । नाम के झगड़े सिर्फ बच्चों के झगड़े हैं । कोई भी नाम दे दें-एक्स, वाय, जेड कहें तो भी चलेगा । वह जो है, अननोन, अज्ञात, वह हमारेदर्पण में प्रतिफलित हो जाता है और हम जान पाते हैं । तब है आस्तिकता, तब है धार्मिकता, तब धार्मिक व्यक्ति का जन्म होता है ।

अदभुत है आनंद उसका । सत्य को जान कर कोई दुखी हुआ हो, ऐसा सुना नहीं गया । सत्य को बिना जाने कोई सुखी हो गया हो, ऐसा भी सुना नहीं गया । सत्य को जाने बिना आनंद मिल गया हो किसी को, इसकी कोई संभावना नहीं है । सत्य को जान कर कोई आनंदित न हुआ हो, ऐसा कोई अपवाद नहीं है । सत्य आनंद है, सत्य अमृत है, सत्य सब कुछ है-जिसके लिए हमारी आकांक्षा है, जिसे पाने की प्यास है, प्रार्थना है ।

बस बैठें और शून्य हो जाएं, और जो होता है होने दें। बाहर सड़क पर कुत्ते की आवाज होगी, हॉर्न बजेगा, बच्चे चिल्लाएंगे, सड़क चलेगी, आवाजें आएंगी, आने दें! विचार चलेंगे, आने दें। मन में भाव उठेगे, उठने दें। जो भी हो रहा है, होने दें। आप कर्ता न रह जाएं। आप बस साक्षी रह जाएं, देखते रहें, यह हो रहा है, यह हो रहा है, यह हो रहा है। जो हो रहा है, देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें।

इसी देखने में वह क्षण आ जाता है जब अचानक आप पाते हैं कि कुछ भी नहीं हो रहा सब ठहरा हुआ हैं । और तब वह आपका लाया हुआ क्षण नहीं है। और तब आप एकदम समर्पित हो गए हैं और आप उस मंदिर पर पहुंच गए, जिसको खोज कर आप कभी भी नहीं पहुंच गए, जिसको खोज कर आप कभी भी नहीं पहुंच सकते थे।

और वह मंदिर आ गया सामने और द्वारा खुल गया है। और जिस परमात्मा के लिए लाखों बार सोचा था कि मिलना है, मिलना है, मिलना है, और नहीं मिला था, उसे बिना सोचे वह सामने खड़ा है, वह मिल गया है। और जिस आनंद के लिए लाखों उपाय किए थे और कभी उसकी एक बूंद न गिरी थी, आज उसकी वर्षा हो रही है और बंद नहीं होती। और जिस संगीत के लिए प्राण प्यासे थे वह अब चारों तरफ बज रहा है और बंद नहीं होता।

प्रवेश के पूर्व

परमात्मा सरल है

 

एक महानगरी में एक बहुत अदभुत नाटक चल रहा था । शेक्सपियर का नाटक था । उस नगरी में एक ह्रीं चर्चा थी कि नाटक बहुत अदभुत है; अभिनेता बहुत कुशल हैं । उस नगर का जो सबसे बड़ा धर्मगुरु था, उसके भी मन में हुआ कि मै भी नाटक देखूं । लेकिन धर्मगुरु नाटक देखने कैसे जाए? लोग क्या कहेंगे? तो उसने नाटक के मैनेजर को एक पत्र लिखा और कहा कि मैं भी नाटक देखना चाहता हूं । प्रशंसा सुन-सुन कर पागल हुआ जा रहा हूं । लेकिन मै कैसे आऊं? लोग क्या कहेंगे? तो मेरी एक प्रार्थना है, तुम्हारे नाटक-गृह में कोई ऐसा दरवाजा नहीं है पाछे से जहां से मैं आ सकूं, कोई मुझे न देख सके? उस मैनेजर ने उत्तर लिखा कि आप खुशी से आएं, हमारे नाटक- भवन में पीछे दरवाजा है । धर्मगुरुओ, सज्जनों, साधुओं के लिए पीछे का दरवाजा बनाना पड़ा है, क्योंकि वे सामने के दरवाजे से कभी नहीं आते । दरवाजा है, आप खुशी से आएं, कोई आपको नहीं देख सकेगा । लेकिन एक मेरी भी प्रार्थना है, लोग तो नहीं देख पाएंगे कि आप आए, लेकिन इस बात की गारंटी करना मुश्किल है कि परमात्मा नहीं देख सकेगा ।

पीछे का दरवाजा है, लोगों को धोखा दिया जा सकता है । लेकिन परमात्मा को धोखा देना असंभव है । और यह भी हो सकता है कि कोई परमात्मा को भी धोखा दे दे, लेकिन अपने को धोखा देना तो बिलकुल असंभव' है । लेकिन हम सब अपने को धोखा दे रहे हैं । तो हम जटिल हो जाएंगे, सरल नहीं रह सकते । खुद को जो धोखा देगा वह कठिन हो जाएगा, उलझ जाएगा, उलझता: चला जाएगा। हर उलझाव पर नया धोखा? नया असत्य खोजेगा,और उलझ जाएगा । ऐसे हम कठिन और जटिल हो गए हैं । हमने पीछे के दरवाजे खोज लिए हैं, ताकि कोई हमें देख न सके । हमने झूठे चेहरे बना रखे हैं, ताकि कोई हमें पहचान न सके । हमारी नमस्कार झूठी है, हमारा प्रेम झूठा है, हमारी प्रार्थना झूठी है ।

एक आदमी सुबह ही सुबह आपको रास्ते पर मिल जाता है, आप हाथ जोड़ते है, नमस्कार करते है और कहते हैं, मिल कर बड़ी खुशी हुई । और मन में सोचते हैं कि इस दुष्ट का चेहरा सुबह से ही कैसे दिखाई पड़ गया! तो आप सरल कैसे हो सकेंगे? ऊपर कुछ है, भीतर कुछ है । ऊपर प्रेम की बातें हैं, भीतर घृणा के कांटे है । ऊपर प्रार्थना है, गीत है, भीतर गालियां हैं, अपशब्द हैं । ऊपर मुस्कुराहट है, भीतर आंसू हैं । तो इस विरोध में, इस आत्मविरोध में, इस सेल्फ कंट्राडिक्शन में जटिलता पैदा होगी, उलझन पैदा होगी ।

परमात्मा कठिन नहीं है, लेकिन आदमी कठिन है । कठिन आदमी को परमात्मा भी कठिन दिखाई पड़ता हो तो कोई आश्चर्य नहीं । मैने सुबह कहा कि परमात्मा सरल है । दूसरी बात आपसे कहनी है, यह सरलता तभी प्रकट होगी जब आप भी सरल हों । यह सरल हृदय के सामने ही यह सरलता प्रकट हो सकती है । लेकिन हम सरल नहीं हैं ।

क्या आप धार्मिक होना चाहते हैं ? क्या आप आनंद को उपलब्ध करना चाहते हैं? क्या आप शांत होना चाहते हैं? क्या आप चाहते है आपके जीवन के अंधकार में सत्य की ज्योति उतरे ?

तो स्मरण रखें-पहली सीढ़ी स्मरण रखे-सरलता के अतिरिक्त सत्य का आगमन नहीं होता है । सिर्फ उन हृदयों में सत्य का बीज फूटता है जहां सरलता की भूमि है ।

देखा होगा, एक किसान बीज फेंकता है । पत्थर पर पड़ जाए बीज, फिर उसमें अंकुर नही आता । क्यों? बीज तो वही था! और सरल सीधी जमीन पर पड़ जाए बीज, अंकुरित हो आता है । बीज वही है। लेकिन पत्थर कठोर था, कठिन था, बीज असमर्थ हो गया, अंकुरित नहीं हो सका । जमीन सरल थी सीधी थी, साफ थी, नरम थी, कठोर न थी, कोमल थी, बीज अंकुरित हो गया । पत्थर पर पड़े बीज में और भूमि पर गिरे बीज में कोई भेद न था ।

परमात्मा सबके हृदय के द्वार पर खटखटाता है-खोल दो द्वार! परमात्मा का बीज आ जाना चाहता है भूमि में कि अंकुरित हो जाए । लेकिन जिनके हृदय कठोर है, कठिन है, उन हृदयों पर पड़ा हुआ बीज सूख जाएगा, नहीं अंकुरित हो सकेगा । न ही उस बीज में पल्लव आएंगे, न ही उस बीज में शाखाएं फूटेगी, न ही उस बीज में फूल लगेंगे, न ही उस बीज से सुगंध बिखरेगी । लेकिन सरल जो होंगे, उनका हृदय भूमि बन जाएगा और परमात्मा का बीज अंकुरित हो सकेगा ।

अनुक्रम

1

परमात्मा को पाने का लोभ

9

2

मौन का द्वारा

25

3

स्वरूप का उद्याघाटन

43

4

प्रार्थना: अद्वैत प्रेम की अनुभूति

63

5

विश्वास विचार विवेक

81

6

उधार ज्ञान से मुक्ति

93

7

पिछले जन्मों का स्मरण

107

8

नये वर्ष का नया दिन

121

9

मैं कोई विचारक नहीं हूं

133

10

मनुष्य की एकमात्र समस्या: भीतर का खालीपन

143

11

प्रेम करना: पूजा नहीं

161

12

धन्य हैं वे जो सरल हैं

177

13

जीवन क्या है?

193

 

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories