पुस्तक के विषय में
भगवत्पाद शंकराचार्य की सौन्दर्यलहरी प्रथम तान्त्रिक रचना है जिसमें सौ श्लोकों के माध्यम से आचार्य शंकर ने भगवती पराशक्ति पराम्बा त्रिपुरसुन्दरी की कादि एवं हादि साधानाओं के गोप्य रहस्यों का उद्यघाटन किया है और पराशक्ति भगवती के अध्यात्मोन्मुख अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन किया है। भगवत्पाद ने सौन्दर्यलहरी की रचना कर भगवती के स्तवन के व्याज से श्रीविद्या की उपासना एवं महिमा, विधि, मन्त्र, श्रीचक्र एवं षट्चक्रों से उनका सम्बन्ध तथा उन षट्चक्रों के वेधरूपी ज्ञान के प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया है।
सौन्दर्यलहरी में कुल सौ श्लोक हैं, जिनमें से आदि के इकतालिस श्लोक आनन्दलहरी के नाम से प्रसिद्ध हैं। शेष उनसठ श्लोकों में देवी के सौन्दर्य का नखशिख वर्णन है। वस्तुत: 'आनन्द' ब्रह्मा का स्वरूप है जिसका ज्ञान हमें भगवती करा देती है। अत: ब्रह्मा के स्वरूप 'आनन्द' को बताने वाली भगवती उमा के स्वरूप का प्रतिपादन शेष उनसठ श्लोकों में वर्णित है।
सौन्दर्यलहरी के समस्त अध्येता साधकगण जितना भगवत्पाद शंकराचार्य के ऋणी हैं उससे भी अधिक टीकाकार श्रीमल्लक्ष्मीधर के ऋणी हैं। सौन्दर्यलहरी की 'लक्ष्मीधारा' टीका समय मत के अनुसार लिखी गई है। शुभागमपंचक वैदिकमार्गानुसारी अनुष्ठान को प्रदर्शित करता है जो मार्ग वसिष्ठ, सनक, शुक, सनन्दन एवं सनत्कमार द्वार निरूपित है। वैदिक मार्गानुसारी तान्त्रिक प्रदान की गई है। यही समय मत है जिसे तन्त्रसम्प्रदाय में 'समयाचार' के नाम सेव्यवहृत किया जाता है। इसी मत का अवलम्बन करश्रीमल्लक्ष्मीधर ने शुभागमपंचक (सम्प्रति अनुपलब्ध) के अनुसार भगवत्पाद श्रीशंकराचार्य के मत का अनुसरण कर 'लक्ष्मीधारा' व्याख्या लिखी है जैसा कि वे स्वयं स्वीकार करते हैं-'अस्माभिरपि शुभागमपंचकानुसारेण समयमतमवलम्ब्ब्यैव भगवत्पाद-मतमनुसृत्य व्याख्या रचिता'। (सौ. 31 की टीका)।
'सौन्दर्यलहरी' की श्रीमल्लक्ष्मीधर कृत 'लक्ष्मीधरा' व्याख्या की इद्रंप्रथमतया कृत 'सरला' हिन्दी व्याख्या के साथ भगवान् शंकर एवं उनकी शक्ति भगवत्ती पराम्बा पार्वती के उपासकों के सम्मुख प्रस्तुत है।
डॉ. सुधाकर मालवीय
डॉ. सुधाकर मालवीय का जन्म (1944ई.) कड़ा,शैनी, इलाहाबाद में हुआ था। आपके पिता स्व. प्रो. पं. रामकुबेर मालवीय (भूतपूर्व साहित्चय विभागध्यक्ष, का. हि. वि.वि. और वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय) थे जो आपके आद्यगुरु भी थे। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए.संस्कृत तथा पी-एच्. डी. की उपाधि और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की।
वैदिक कृतियाँ- ऐतरेयब्राह्मण, सायणभाष्य एवं हिन्दी व्याख्या सहित, दो भाग में (उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत), 2. पारस्करगृहासूत्रम्, हरिहर-गदाधर भाष्य एवं हिन्दी व्याख्या सहित, 3. ऋग्वेद प्रथमाष्टक, अन्वितार्थप्रकाशित हिन्दी व्याख्या सहित (उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत) 4. गोभिलगृह्मसूत्रम् हिन्दी व्याख्या (पुरस्कृत, उ.प्र.संस्कृत अकादमी)
साहित्यिक कृतियाँ- कर्णभार, भासकृत, (उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत), 2.स्वप्नवासवदतम मध्यमव्ययोग, द्वतावाक्य, यज्ञफलम्(भासकृत) 6. दशरूपका, धनिक कृत अवलोक एवं हिन्दी व्याख्या सहित (पुरस्कृत, उ.प्र. संस्कृत अकादमी), 7. अभिज्ञान शाकुन्तलम् कालिदास कृत, 8. पंचतन्त्रम् विष्णुशर्मा कृत, संस्कृत-हिन्दी व्याख्या सहित, 9. अमरकोश (प्रथमकाण्ड) हिन्दीटीका सहित, 10 उदारराधवम् मल्लमल्लाचार्य कृत अज्ञातकर्तक संस्कृत टीका सहित। 11. नाट्यशास्त्रम् टिप्पणी एवं श्लोकार्धानुक्रमणी सहित,। 12. कुमारसम्भवत् मल्लिनाथ कृत संजीवनी एवं हिन्दी टीका सहित।
तान्त्रिक कृतियाँ- क्रमदीपिका, केशव काश्मीरिक कृत, गोविन्द कृत संस्कृत टीका एवं हिन्दी सहित (पुरस्कृत, उ.प्र. संस्कृत अकादमी)2. माहेश्वरस्त्रम् (हिन्दी टीका सहित) 3. शारदातिलकतन्त्रम् लक्ष्मणदेशिकेन्द्र कृत, हिन्दी टीका सहित, 4. रुद्रयामलम् (उत्तरतन्त्रम्) हिन्दी व्याख्या सहित, 5. कर्पूरस्तत्व महाकाल कृत, हिन्दी व्याख्या सहित।
6.विन्ध्यमाहात्म्यम् 7. सौन्दर्यलहरी, लक्ष्मीधरी संस्कृत टीका एवं हिन्दी सहित।
निबन्ध रचनाएँ-1. Different Interpretation of the Rigvedic Mantra "Carvari Shringa. हंस: शुचिषत् मन्त्र की विभिन्न व्याख्याएँ है।
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