यह लघुग्रन्थ, वेदों, उपनिषदों और गीता, रामायण आदि सभी सद्ग्रंथों का निचोड़ है। योगिराज परम सन्त सद्गुरुदेव श्री हंस जी महाराज की पावन पुनीत वाणी से निसृत ये सत्संग-प्रवचन मनुष्य के जीवन की दिशा बदलने वाले हैं। इस ग्रन्थ के एक-एक वाक्य अनमोल वचन है। सरल, स्पष्ट और सीधे चोट करने वाले इन प्रवचनों में जीवन का अमृत-तत्त्व छिपा हुआ है। भगवत्-प्रेमी जिज्ञासुजनों के लिए इससे संकेत ग्रहण कर परमार्थ के मार्ग पर आगे बढ़ना अत्यन्त सरल है और प्रेमी भक्तों के लिए तो श्री महाराज जी के वचन उसके जीवन की अमूल्य निधि हैं। इसके अध्ययन से सांसारिक मोह-माया के थपेड़े खाकर सोते हुए व्यक्ति में न केवल नव-चेतना का संचार होगा वरनू सतत् जागरूक रहकर प्रभु के पावन नाम का सुमिरण भजन करते रहने की प्रेरणा उसे प्राप्त होगी। इसका पठन-पाठन करने वाला त्रिकाल में कभी भी भवसागर में डब नहीं सकता। इतना प्रभावकारी है यह सद्ग्रन्थ।
सतगुरु शब्द जहाज" शीर्षक सर्वथा इस के उपयुक्त है। सयम के तत्त्वदर्शी महापुरुष की वाणी ही वास्तव में जीव को भव-पार ले जाने वाली नौका है। उनके द्वारा जीव के हृदय में उद्घाटित शब्द ही प्रभु का पावन नाम है जिसकी महिमा सभी सग्रंथों में भरी पड़ी है। वह पावन नाम वाणी का नहीं अपितु आन्तरिक अनुभूति का विषय है। साधु-संत और साधक जन ही इस मर्म को समय के सद्गुरु की कृपा से जानते हैं। सद्गुरु द्वारा कराए इसी शब्द-बोध को दीक्षा कहा है। इसी के साधन-भजन से जीवन-मुक्त अवस्था में जीते हुए अन्तकाल में शिष्य सद्गति प्राप्त करता है।
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