परम् श्रद्धेय श्री समनदास जी महाराज बता रहे हैं कि रविदास जी हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि हमारा यह मानव जीवन अनेक जन्मों के पुण्य फल के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है। यह अवसर अत्यंत ही अनमोल और दुलर्भ है। परमात्मा से मिलाप करना ही इस मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अनन्त काल से चले आ रहे जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाने का यही एक मात्र अवसर है। अतः इस मानव जीवन को भी प्राप्त करके यदि हम संसार के माया की दलदल में फंसे रहे गये और मालिक की भक्ति की तरफ ध्यान नहीं गया तो यह मानव जीवन व्यर्थ ही चला जायेगा। गुरु समनदास जी महाराज उन मनुष्यों पर तरस खाकर बताते हैं कि जो मनुष्य सांसारिक विषय वासनाओं के पीछे दौड़ने में अपना सारा समय गंवा रहें हैं और जीवन की बाहरी तड़क-भड़क के भ्रम में पड़कर परमात्मा की प्राप्ति के अवसर को खो रहे हैं उन्हें अन्त में यमराज के चंगुल में पड़कर अनेकों कष्ट उठाने पड़ेगें और चौरासी के जेल खाने में फिर आना पड़ेगा।
तो अब हमें मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए गुरु समनदास जी उपदेश देकर बता रहे हैं कि इस अमूल्य अवसर को न जाने दो और सत्संग रूपी नाव में बैठकर संसार रूपी भवसागर से पार हो जाओ।
मानवता प्रेमी सन्त रविदास जी ने अपने असीम प्रभु, प्रेम, भक्ति एवं ईश्वरीय ज्ञान के उच्च आदशों से पूर्ण वाणियों और सदुपदेशों द्वारा मानव मात्र को सत्य का मार्ग दर्शाया है। सभी सन्तों में हमारी पूर्ण श्रद्धा व आस्था है।
सन्त रविदास जी का सन्देश केवल दलित समाज के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज के लिए बेजोड़ है। वह इतने प्रतिभाशाली प्रचारक हुए हैं जिन्होंने उस समय में जो प्रताड़ना चल रही थी उस त्रस्त समाज का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने युग युगान्तरों से जो प्रताड़ना रुढ़िवादिता चल रही थी उसका अपने ज्ञान प्रचार के द्वारा खण्डन किया। सन्त शिरोमणि रविदास जी ने हिन्दु मुस्लिम धर्म के सभी शास्त्रों में जो पाखण्ड वाद था उसका खण्डन किया। गुरु रविदास के काव्य में वाणीया सांखीया मनुष्य मात्र के जीवन दर्शन और साधना क्षेत्र में सुव्यस्थित रूप रेखा प्रदान करती है। अज्ञान से ग्रस्त निराशा से पीड़ित तिमराच्छन भारतीय जनता के शोषित दलित एवं सतप्त जीवन को प्रशस्त करने और कोमलता प्रदान करने में सहायक है। गुरु श्री रविदास जी की विचारधारा का प्रभाव सन्त कबीरदास जी, नानकदास जी, दादू, सुन्दरदास, पलटुदास बुल्ले शाह जैसे विचारकों एवं युग प्रवर्तकों की विचारधारा में स्पष्ट दिखाई देता है।
श्री सतगुरु रविदास जी के हृदय में असत्य का त्याग और सत्यता का ग्रहण, वैराग्य, सदाचार, अंहिसा, तपस्या आदि का समावेश है। जो समाज को प्रेरित कर आत्मबोध की तरफ अग्रसर करती है। सतगुरु रविदास जी महाराज के अनुसार निर्गुण ब्रह्म अद्वैत एवं कैवल्य की स्थिति का मूल परिचायक है। इस प्रकार भारतीय संत इतिहास में उनका स्थान परम महत्वपूर्ण एवं गौण है।
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