प्रकाशकीय
प्रस्तुत पुस्तक वह कृति है जिसने गांधीजी पर 'जादू-भरा असर' डाला था । दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी एक बार जोहान्सबर्ग से नेटाल जा रहे थे । चौबीस घंटे का सफर था । उनके एक साथीने रास्ते में पढ़ने के लिए उन्हें स्टेशन पर एक पुस्तक दी । इस पुस्तक के विषय में गांधीजी ने अपनी 'आत्म-कथा' में लिखा है, ''इस पुस्तक को हाथ में लेकर मैं छोड़ ही न सका । उसने मुझे पकड़ लिया ।...ट्रेन शाम को डरबन पहुंचनी थी । पहुंचने के बाद मुझे सारी रात नींद नई आई । पुस्तक में प्रकट किये हुए विचारों को अमल में लाने का इरादा किया ।...में रा यह विश्वास है कि जो चीज मुझमें गहराई से भरी हुई थी, उसका स्पष्ट प्रतिबिम्ब मैंने रस्किन के इस ग्रंथ-रत्न में देखा।'' गांधीजी के जीवन की दिशा बदल गई । उन्होंने पुस्तक का आर तैयार किया, जो 'सर्वोदय' के नाम से प्रकाशित हुआ ।
वास्तव में यह पुस्तक अत्यन्त मूल्यवान है, कारण कि इसमें उन नैतिक मूल्यों का प्रतिपादन किया गया है जिनके आधार पर गांधीजी राम-राज्य की स्थापना करना चाहते थे ।
इस पुस्तक की मांग बराबर होती रहती है । यह किसी वर्ग-विशेष के लिए नहीं है । यह सबके काम की है । यह जीवन का सही रास्ता दिखाती है और बताती है कि जो भी उस रास्ते पर चलेगा उसी का जीवन कृतार्थ होगा ।
हमें पूरा विश्वास है कि यह पुस्तक आगे भी चाव से पढ़ी जायगी और अधिक-सें-अधिक पाठक इसका लाभ लेंगे ।
प्रस्तावना
पश्चिम के देशों में साधारणत: यह माना जाता है कि बहुसंख्यक लोगों का सुख-उनका अम्युदय-बढ़ाना मनुष्य का कर्त्तव्य है । सुखका अर्थ केवल शारीरिक सुख, रुपये-पैसे का सुख किया जाता है । ऐसा सुख प्राप्त करने में नीति के नियम भंग होते हों तो इसकी ज्यादा परवा नहीं की जाती । इसी तरह बहुसंख्यक लोगों को सुख देने का उद्देश्य रखने के कारण पश्चिम के लोग थोड़ो को दुःख पहुचाकर भी बहुतों को सुख दिलाने में कोई बुराई नहीं मानते । इसका फल हम पश्चिम के सभी देशों में देख रहे हैं ।
किंतु पश्चिम के कितने ही विचारवानों का कहना है कि बहुसंख्यक मनुष्यों के शारीरिक और आर्थिक सुख के लिए यत्न करना ही ईश्वर का नियम नही है और केवल इतने ही के लिए यत्न करें और उसमें नैतिक नियमों कौ भग किया जाय, यह ईश्वरीय नियम के विरुद्ध आचरण है । ऐसे लोगों में अग्रेज विद्वान् स्वर्गीय जॉन रस्किन मुख्य थे । उन्होंने कला, चित्रकारी आदि 'विषयों पर अनेक उत्तम पुस्तकें लिखी है । नीति के विषयों पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। उसमेंसे एक छोटी-सी पुस्तक 'अन्टु दिस लास्ट' है । इसे उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना माना है। जहां-जहां अंग्रेजी बोली जाती है वहां-वहां इस पुस्तकका बहुत प्रचार है । इसमें ऊपर बताए विचारों का जोरोंसे खंडन किया गया है और दिखाया गया है कि नैतिक नियमों के पालन में ही मनुष्य-जाति का कल्याण है। आजकल भारत में हम पश्चिम वालों की बहुत नकल कर रहे हैं । कितनी ही बातों में हम इसकी जरूरत भी समझते हैं, पर इसमें संदेह नही कि पश्चिम की बहुत-सी रीतियां खराब हैं। और यह तो सभी स्वीकार करेंगे कि जो खराब हैं उनसे दूर रहना उचित है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की अवस्था बहुत ही करुणाजनक है । हम धन के लिए विदेश जाते हैं। उसकी धुन में नीति को, ईश्वर को भूल जाते हैं। स्वार्थ में सन जाते हैं । इसका नतीजा यह होता है कि हमें विदेश में रहने से लाभ के बदले उलटे बहुत हानि होती है अथवा विदेश- यात्रा का पूरा-पूरा लाभ नहीं मिलता। सभी धर्मों में नीति का अंश तो रहता ही है, पर साधारण बुद्धि से देखा जाय तो भी नीति का पालन आवश्यक है। जोन रस्किन ने सिद्ध किया है कि मुख इसी में है । उन्होंने पश्चिमवालों की आंखें खोल दी है और आज यूरोप और अमरीका के भी कितने ही लोग उनकी शिक्षा के अनुसार चलते हैं। भारतीय जनता भी उनके विचारो से लाभ उठा सके, इस उद्देश्य से हमने उक्त पुस्तक का इस तंग से सारांश देने का विचार किया है कि जिससे अंग्रेजी न जानने वाले भी उसे समझ लें ।
सुकरात ने, मनुष्य को क्या करना उचित है, इये संक्षेप में, समझाया है। कह सकते हैं कि उसने जो कुछ कहा है, रस्किन ने उसी का विस्तार कर दिया है। रस्किन के विचार सुकरात के ही विचारों का विस्तृत रूप हैं । सुकरात के विचारो के अनुसार चलने की इच्छा रखने वालों को भिन्न-भिन्न व्यवसायों में किस प्रकार काव्यवहार करना चाहिए, रस्किन ने इसे बहुत अच्छी तरह बता दिया है । हम उनकी पुस्तक का सार दे रहे हैं, उल्था नही कर रहे हैं । उल्था कर. दैने से सभव है कि बाइबिल आदि ग्रंथों के कितने ही दृष्टान्त पाठक न समझ पायें । हमने पुस्तक के नाम कर भी उल्था नहीं किया शै, क्योंकि उसका मतलब भी वही पा सकते हैं जिन्होंने अंग्रेजी में बाइबिल पढी है, परन्तु उसके' लिखे जाने का उद्देश्य सबका कल्याण, सबका (केवल अधिकांश का नहीं) उदय, उत्कर्ष होने के कारण हमने इसका नाम 'सर्वोदय' रखा है ।
अनुक्रम
4
1
सचाई की जड़
7
2
दौलत की नस
22
3
अदल इन्साफ
27
सत्य क्या है?
33
5
सारांश
36
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (876)
Agriculture (85)
Ancient (994)
Archaeology (567)
Architecture (525)
Art & Culture (848)
Biography (587)
Buddhist (540)
Cookery (160)
Emperor & Queen (489)
Islam (234)
Jainism (271)
Literary (868)
Mahatma Gandhi (377)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist