(भाग 1)
प्रकाशकीय निवेदन
आज हमें हिन्दी पाठकों के सम्मुख संयुत्त निकाय के हिन्दी अनुवाद को लेकर उपस्थित होने में बड़ी प्रसन्नता हो रही है । अगले वर्ष के लिए विसुद्धिमग्ग का अनुवाद तैयार है । उसके पश्चात् अंगुत्तर निकाय में हाथ लगाया जायेगा । इनके अतिस्क्ति हम और भी कितने ही प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करना चाहते हैं । हमारे काम में जिस प्रकार से कितने ही सज्जनों ने आर्थिक सहायता और उत्साह प्रदान किया है उसेसे हम बहुत उत्साहित हुए है ।
आर्थिक कठिनाइयों एवं अनेक अन्य अड़चनों के कारण इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने में जो अनपेक्षित विलम्ब हुआ है उसके लिए हमें स्वयं दुख है । भविष्य में इतना विलम्ब न होगा ऐसा प्रयत्न किया जायेगा । हम अपने सभी दाताओं एवं सहायकों के कृतज्ञ हैं जिन्होंने कि सहायता देकर हमें इस महत्वपूर्ण कार्य को सम्पादित करने में सफल बनाया है।
प्राक्कथन
संयुत्त निकाय सुत्त पिटक का तृतीय ग्रन्थ है । यह आकार में दधि निकाय और मज्झिम निकाय से बड़ा है । इसमें पाँच बढ़े बड़े वर्ग हैं सगाथा वर्ग निदान वर्ग खन्ध वर्ग सलायतन वर्ग और महावर्ग । इन वर्गों का विभाजन नियमानुसार हुआ है । संयुत्त निकाय में ५४ संयुत्त हैं जिनमें देवता देवपुत्र कोसल मार ब्रह्मा ब्राह्मण सक्क अभिसमय । धातु अनमतग्ग लाभसक्कार राहुल लक्खण खन्ध राध दिद्वि सलायतन वेदना मातुगाम असंखत मग्ग बोज्झङ्ग सतिपटुान इन्द्रिय सम्मप्पधान बल इद्धिपाद अनुरुद्ध सान आनापान सोतापत्ति और सच्च यह ३२ संयुत्त वर्गों में विभक्त हैं जिनकी कुल संक्या १७३ है । शेप संयुत्त वर्गों में विभक्त नहीं हैं । संयुत्त निकाय में सौ भाणवार और ७७६२ सुत्त है ।
संयुत्त निकाय का हिन्दी अनुवाद पूज्य भदन्त जगदीश काश्यप जी ने आज से उन्नीस वर्ष पूर्व किया था किन्तु अनेक बाधाओं के कारण यह अभीतक प्रकाशित न हो सका था । इस दीर्घकाल के बीच अनुवाद की पाण्डुलिपि के बहुत से पन्ने कुछ पूरे संयुत्त तक खो गये थे । इसकी पाण्डुलिपि अनेक प्रेसों को दी गई और वापस ली गई थी ।
गत वर्ष पूज्य काश्यप जी ने संयुत्त निकाय का भार मुझे सौंप दिया । मैं प्रारम्भ सै अन्त तक इसकी पाण्डुलिपि को दुहरा गया और अपेक्षित सुधार कर डाला । मुझे ध्यान संयुत्त अनुरुद्ध संयुत्त आदि कई संयुत्तों का स्वतन्त्र अनुवाद करना पड़ा क्योंकि अनुवाद के वे भाग पाण्डुलिपि में न ने ।
मैंने देखा कि पूज्य काश्यप जी ने न तो सुत्तों की संख्या दी थी और न सुत्तों का नाम ही लिखा था । मैंने इन दोनों बातों को आवश्यक समझा भीर प्रारम्भ से अन्त तक सुत्तों का नाम तथा सुत्त संख्या को लिख दिया । मैंने प्रत्येक सुत्त के प्रारम्भ में अपनी ओं। से विषयानुसार शीर्षक लिख दिये हैं जिनसे पाठक को इस ग्रन्थ को पढ़ने में विशेष अभिरुचि होगी ।
ग्रन्थ में आये हुए स्थानौं नदियों विहारों आदि का परिचय पादटिप्पणियों में यथासम्भव कम दिया गया है इसके लिए अलग से बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय लिख दिया गया हैं । इसके साथ ही एक नकशा भी दे दिया गया है । आशा है इनसे पाठकों को विशेष लाभ होगा । पूरे ग्रन्थ के छप जाने के पश्चात् इसके दीर्घकाय को देखकर विचार किया गया कि इसकी जिल्दबन्दी दो भागों में कराई जाय । अत पहले भाग में सगाथा वर्ग निदान वर्ग और स्कन्ध वर्ग तथा दूधरे भाग में सलायतन वर्ग और महावर्ग विभक्त करके जिल्दबन्दी करा दी गई है । प्रत्येक भाग के साथ विषय सूची उपमा सूची नाम अनुक्रमणी और शब्द अनुक्रमणी दी गई है ।
सुत्त पिटक के पाँचों निकायों में से दीघ मज्झिम और संयुत्त के प्रकाशित हो जाने के पश्चात् अंगुत्तर निकाय तथा खुद्दक निकाय अवशेष रहते है । खुद्दक निकाय के भी खुद्दक पाठ धम्मपद उदान सुत्त निपात थेरी गाथा और जातक के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुके है । इतिवुत्तक बुद्धवंस औरचरियापिटक के भी अनुवाद मैंने कर दिये है और ये ग्रन्थ प्रेस में हैं । अंगुत्तर निकाम का मेरा हिप्पी अनुवाद भी प्राय समाप्त ही है । संयुत्त निकाय के पश्चात् क्रमश विसुद्धिमग्ग और अंगुत्तर निकाम को प्रकाशित करने का कार्यक्रम बनाया गया है । आशा है कुछ वर्षों के भीतर पूरा सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक के कुछ ग्रंथ हिन्दी में अनूदित होकर प्रकाशित हो आयेंगे ।
भारतीय महाबोधि सभा ने इस ग्रन्थ को प्रकाशित करके बुद्धवासन एवं हिन्दी जगत् का बहुत वरा उपकार किया है । इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए सभा के प्रधान मन्त्री श्री देवप्रिय वलिसिंह तथा भदन्त संघरत्नजी का प्रयास स्तुत्य है । ज्ञानमण्डल यन्त्रालय काशी के व्यवस्थापक श्री ओम प्रकाश कपूर की तत्परता से ही यह ग्रन्थ पूर्णरूप मे शुद्ध और शीघ्र मुदित हो सका है ।
आमुख
संयुत्त निकाय सुत्त पिटक का तीसरा ग्रन्थ है । दीव निकाय मैं उन सूत्रों का संग्रह हैं जो आकार में बढ़े हैं । उसी तरह प्राय मक्षोले आकार के सूत्रों का संग्रह मज्झिम निकाय में है । संयुत्त निकाय में छोटे बढ़े सभी प्रकार के शो का संयुत्त संग्रह है । इस निकाय के सूत्रों की कुल संख्या 7762 है । पिटक के इन अन्थों के संग्रह में सूत्रों के छोटे बड़े आकार की दृष्टि रखी गई है यह सचमुच जंचने वाली बात नहों लगती है । प्राय इन ग्रन्थों में एक अत्यन्त दार्शनिक सूत्र के बाद ही दूसरा सूत्र जाति याद के खण्डन का आता है और उसके बाद ही हिंसामय यज्ञ के खण्डन का और बाद में और कुछ दूसरा । स्पष्टत विषयों के इस अव्यवस्थित सिलसिले से साधारण विद्यार्थी ऊब सा जाता है । ठीक ठीक यह कहना कठिन मालूम होता है कि सूत्रों का यह क्रम किस प्रकार हुआ । चाहे जो भी हो यहाँ संयुत्त निकाय को देखते इसके व्यवस्थित विषयों के अनुकूल वर्गीकरण से इसका अपना महत्व स्पष्ट हो आता है ।
संयुत्त निकाय के पहले वर्ग सगाथा वर्ग को पढ़कर महाभारत में स्थानस्थान पर आये प्रभात्तर की शैली से सुन्दर गाथाओं में गम्भीर से गम्भीर बिपयों के विवेचन को देखकर इस निकाय के दार्शनिक तथा साहित्यिक दोनों पहलुओं का आभास मिलता है । साथसाथ तत्कालीन राजनीति और समाज के भी स्पष्ट चित्र उपस्थित होते है ।
दूसरा वर्ग निदान वर्ग बौद्ध सिद्धान्त प्रतीत्य समुत्पाद पर भगवान् बुद्ध के अत्यन्त महत्व पूर्ण सूत्रों का संग्रह है ।
तीसरा और चौथा वर्ग स्कन्धवादऔर आयतनवाद का विवेचन कर भगवान् युद्ध के अनात्म सिद्धान्त की स्थापना करते है । पाँचवाँ महावर्ग मार्ग बोध्यंग स्मृति प्रस्थानं इन्द्रिय आदि महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है ।
सन् 1935 में पेनांग (मलाया) के विख्यात चीनी महाविहार चांग ह्वा तास्ज में रह मैंने मिलिन्द प्रश्न के अनुवाद करने के बाद ही संयुत्त निकाय का अनुवाद प्रारम्भ किया था । दूसरे वर्ष लंका जा सलगल अरण्य के योगाश्रम में इस ग्रन्थ का अनुवाद पूर्ण किया । तब से न जाने कितनी बार इसके छपने की व्यवस्था भी हुई पाण्डुलिपि प्रेस में भी दे दी गई और फिर वापस चली आई । मैने तो ऐसा समझ लिया था कि कदाचित् इस ग्रन्थ के भाग्य मैं प्रकाशन लिखा ही नहीं है और इस ओर से उदासीन सा हो गया था । अब पूरे उन्नीस वर्षों के बाद यह ग्रन्थ प्रकाशित हो सका है । भाई त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित जी ने सारी पाडुलिपि को दुहरा कर शुद्ध कर दिया है । संयुत्त निकाय आज इतना अच्छा प्रकाशित न हो सकता यदि भिक्षु धर्मरक्षित जी इतनी तत्परता से इसके प्रूफ देखने और इसकी अन्य व्यवस्था करने की कृपा न करते ।
मैं महाबोधि सभा सारनाथ तथा उसके मम्मी श्री भिक्षु संघरन्त्र को भी अनेक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने पुस्तक के प्रकाशन में इतना उरसाह दिखाया ।
(भाग 2)
वास्तु कथा
पूरे संयुत्त निकाय की छपाई एक साथ हो गई थी और पहले विचार था कि एक ही जिल्द में पूरा संयुत्त निकाय प्रकाशित कर दिया जाय किन्तु ग्रन्थ कलेवर की विशालता और पाठकों की असुविधा का ध्यान रखते हुए इसे दो जिल्दों में विभक्त कर देना ही उचित समझा गया । यही कारण हें कि इस दूसरे भाग की पृष्ठ संख्या का क्रम पहले भाग से ही सम्बन्धित है ।
इस भाग में पलायतनवर्ग और महावर्ग ये दो वर्ग है जिनमें 9 और 12 के क्रम से 21 संयुत्त है । वेदना संयुत्त सुविधा के लिए पलायतन और वेदना दो भागों में कर दिया गया है किन्तु दोनों की क्रम संख्या एक ही रखी गयी है क्योंकि पलायतन संयुत्त कोई अलग संयुत्त नहीं है प्रत्युत वह वेदना संयुत्त के अन्तर्गत ही निहित है ।
इस भाग में भी उपमा सूची नाम अनुक्रमणी और शरद अनुक्रमणी अलग से दी गई है । बहुत कुछ सतर्कता रखने पर भी प्रूफ सम्बन्धी कुछ त्रुटियाँ रह ही गई हैं किन्तु वे ऐसी त्रुटियाँ हैं जिनका ज्ञान स्वत उन स्थलों पर हो जाता हें अत शुद्धि पत्र की आवश्यकता नहीं समझी गई है ।
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