मैं भूला नहीं हूँ, अपनी मेहनत को। जिन दिनों रात दिन एककर उस परमलक्ष्य को प्राप्त किया था, उस समय न ऐसी कोई विधा थी, जिसको पढ़कर लक्ष्य को प्राप्त कर सकूँ, उसी समय मानस पटल पर यह संकल्प मन में जागृत हुआ था, जो कालान्तर में आज आपके सम्मुख है। दिन में पुस्तकालयों में जाकर विषय सम्बन्धित पुस्तकों को खोजता और पढ़ता, वही रात्रि में तत्सम्बन्धित विषयों को मन-मानस पटल पर लाता, और उसके नोट्सों को तैयार करता, वही मेहनत आज हम सबके सम्मुख रंग ला रही है, जिसकी प्रतीक्षा हमारे भाई-बहन चिरकाल से कर रहे थे।
मेरे मित्रों मैं जानता हूँ कि सागर में रत्नों का आलय होता है, परन्तु उस आलय को प्राप्त करना इस कलिकालरूपी, परिपाटी में, व्यक्ति अत्यन्त व्यस्त रहते हुए अल्प समय में अधिक प्राप्त करने की चेष्टा करता है, तत्काल रत्न की इच्छा करता है, उस रत्न प्राप्ति का साधन नहीं खोजता है। जैसे नवनीत को प्राप्त करने के लिये दूध दहि, मन्थन रूपी कार्य यद्यपि अनुस्यूत है, परन्तु आज का मानव नाना रूपी कार्य को न ध्यान देकर फलरूपी नवनीत के पीछे दौड़ता है, और उसको बाजार में प्राप्त भी कर लेता है।
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