प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली संस्कृत-साहित्य में सुरक्षित भारतीय चिन्तनपरक बौद्धिक विरासत साहित्यकारों एवं पाठकों के लिए एक अनुपम धरोहर है। प्रस्तुत ग्रन्थ में वाल्मीकि, कालिदास राजशेखर आदि कवियों की उसी साहित्यिक- उपनिधि को लेखों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ में पाँच परिच्छेद हैं।
प्रथम में वाल्मीकिरामायण में पुनर्जन्म एवं परलोक की अवधारणा, संवेदनशीलता एवं भाग्यवादिता, शुभाशुभ कर्म-पालन से लोकमङ्गल और वामनावतरण-महाकाव्य में दार्शनिक चेतना विषयक दार्शनिक लेख हैं। द्वितीय में वाल्मीकिप्रोक्त सूर्योपासना, राजशेखर की नाट्यकृतियों एवं विश्वगुणादर्शचम्पू में सूर्य का वैशिष्ट्य और धर्म के परिप्रेक्ष्य में वाल्मीकिरामायण की विश्वजनीनता परक धार्मिक लेख हैं। तृतीय में भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धान्त, भारतीय संस्कृति के संवाहक कालिदास, राजशेखरसाहित्य में वैदिक सन्दर्भ, बालरामायण में वैदिक संस्कृति और विद्धशालभञ्जिका में सांस्कृतिक चेतना विषयक पाँच लेख हैं। चतुर्थ में कालिदास का आदर्श लोक, उनका वैश्विक चिन्तन एवम् उनके साहित्य के वैदिक आधार, राजशेखर के नाट्यग्रन्थों में सामाजिक सन्दर्भ और जानकीजीवनम् एवं वाल्मीकिरामायण में जानकी का उदात्त चरित परक पाँच सामाजिक लेख हैं। अन्तिम पञ्चम परिछेद में छह प्रकीर्ण लेख हैं: ओषधि एवं वनस्पति विज्ञानी कालिदास, अभिनवगुप्त का काव्यशास्त्रीय योगदान, शिशुपालवध में राजनीति विद्या, प्राचीन एवं अर्वाचीन कतिपय कवियों की दृष्टि में चित्रकूट, मामकीनं गृहम् कथासंकलन का वैशिष्ट्य और संस्कृत-अनूदित साहित्य में हरियाणा का योगदान ।
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