सृष्टि परिवर्तनशीलताक नियमक अनुसार सभ्यताक आदिम कालसँ मानव समाजमे युगानुरूप परिवर्तन होइत रहल अछि। एहि परिवर्तनशील समाजक प्रथा ओ परम्परा, युग विशेषक संस्कृतिक मूल आधार बनैत अछि। और साहित्य ओहि संस्कृतिक आरख्या-व्याख्या धिक। वस्तुतः साहित्य समाजक भाषिक अभिव्यक्ति थिक तँ साहित्यक इतिहास ओहिक अभिव्यतिक आकलन एवम् मूल्यांकन थिक । साहित्यक इतिहास युग चेतनाक आधार पर काव्य-प्रवृत्तिक निर्धारण करैत विकासशील मानवीय संस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करैत अछि। अतः सामाजिक प्रेरणाक आधार पर विभिन्न काव्य-प्रवृतिक निर्धारण तथा साहित्यिक विकाशक विश्लेषण साहित्येतिहासक मुख्य दायित्व थिक ।
उत्तरवैदिक युगक पूर्वाद्धक अन्त होइत होइत ब्राह्मण ग्रन्थक एक शाखा कर्मकाण्ड तथा दोसर शाखा उपनिषदक ज्ञान काण्डक वैचारिक संघर्ष सामाजिक स्तर पर अस्तित्वमे आबि गेल। एहि ज्ञान काण्डक संन्यासक आश्रय लैत कालान्तरमे मिथिला ओ मिथिलांचल पर क्रमशः जैन ओ वौद्ध धर्म जे कर्मकाण्डक विरोधी छल, अस्तित्वमे आयल। बौद्ध धर्मक हीनयान शाखा अपना रूढ़ीवादिताक कारणें अनेक चरण पार करैत विकसित भेल, जाहिमे मुख्य थिक मंत्रयान, व्रजयान ओ सहजयान। व्रजयानक मुद्रा सहजयानमे साधिका भऽ गेल। वैष्णव आन्दोलनमे श्रृंगार मुख्य छल सेहो परकीया भावक, जाहिमे पाछाँ गोपी भावक विकास भेल और जकर चरम परिणती सखी साम्प्रदायमे भेल।
दसम शताब्दी धरि साहित्यमे मुख्य रूपसँ ब्राह्मणमत विरोधी लोक भाषामे निवद्ध रचना भेटैत अछि। पूर्वी भारत मुख्यतः उड़ीसामे सेनराज्याश्रयसँ पूर्व जयदेव रचित गीत उपलब्ध अछि।
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