निवेदन
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाकी पुस्तक 'साधना-पथ' प्रेमी, भक्त, साधक, गृहस्थ और विरक्त सभी प्रकारके आध्यात्मिक जिज्ञासुओंके हाथोंमें समर्पित करते हुए हमें अपार हर्षका अनुभव हो रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके कई प्रवचनोंका संग्रह है, जिसमें प्रभुको प्राप्त करनेके सम्बन्धमें हर तरहसे सूक्ष्म विचार किया गया है। 'ध्यान और नामजप' शीर्षकके अन्तर्गत साधनाके महत्त्व और उसकी विधियोंका विस्तृत उल्लेख है। ध्यानयोगका अभ्यास करनेवाले साधकोंके लिये यह लेख बहुत उपयोगी है। 'साधन और निष्ठा' में 'साधन' की सफलताके लिये 'निष्ठा' की अपरिहार्य आवश्यकतापर विशेष बल दिया गया है। 'प्रेमी भक्त की स्थिति' और 'प्रभु का सौन्दर्य'- इन दोनों लेखोंमें भक्ति-रसकी धारा प्रवाहित हुई है । इस पुस्तकमें और भी बहुत-से महत्त्वपूर्ण प्रवचन हैं। भक्त और ज्ञानी; गृहस्थ और विरक्त सभी प्रकारके साधकोंके लिये उपयोगी सामग्री इस पुस्तकमें समाहित है।
आशा है कि सभी पाठक पुस्तकमें दी हुई मार्मिक बातोंसे अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
विषय-सूची
1
चेतावनी
2
सर्वत्र ईश्वर-दर्शन
11
3
शरणागति ही सुगम साधन है
17
4
व्यापारमें सत्यताकी आवश्यकता
26
5
संगका प्रभाव
37
6
वैराग्य होनेमें स्थानका प्रभाव
41
7
परमात्माके ध्यान एवं चिन्तनकी महिमा
44
8
भगवान् सर्वोपरि हैं
50
9
कलियुगमें भगवन्नाम-महिमा
51
10
संसारके सकम्पसे ही दु:ख
53
श्रद्धाकी विशेषता
55
12
विविध प्रश्नोत्तर
61
13
ब्राह्मणोंके प्रति सद्व्यवहारकी प्रेरणा
64
14
वैराग्यसे उपरति एवं ध्यान
67
15
पापोंका फल दु:ख
72
16
भगवान्के गुण-प्रभाव
77
बालकोंके लिये शिक्षा
85
18
धारण करनेयोग्य आवश्यक तीन बातें
91
19
साधन और निष्ठाकी आवश्यकता
96
20
प्रेमी भक्तकी स्थिति
103
21
प्रभुका सौन्दर्य
107
22
ध्यान और नामजपकी विधियों
116
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