मैं स्वभावतः यात्रा प्रिय हूँ। जब अवसर मिलता है और साधन जुट जाते हैं, निकल पड़ता हूँ। मार्ग की बाधाएँ मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती।
देश-प्रदेश में घूमा हूँ। कुछ यात्राएँ विदेशों की भी की हैं।
ये यात्राएँ अनुभव-आधारित हैं, मात्र पुस्तकीय ज्ञान पर खड़ी नहीं की गई। वर्णित स्थान मैंने वास्तव में देखे हैं। जहाँ, जितना सम्भव हुआ, रहा हूँ। इन यात्राओं में उन स्थानों का भूगोल है, इतिहास है। सामान्य यात्री के तौर पर लोगों से वार्तालाप किया है। यथासम्भव पूर्णता के लिए सम्बद्ध चित्र भी जोड़े गए हैं।
यहाँ यह प्रश्न प्रासंगिक हो सकता है कि क्या भ्रमण और लेखन में कोई संबंध है? आखिर पर्यटन और सृजन में क्या रिश्ता है? मेरा मानना है कि लेखक जब तक अपने से बाहर नहीं जाता, अलग- अलग प्रकार के समाजों का साक्षात्कार नहीं करता, उसका अनुभव व्यापक नहीं होगा वह कुएँ का मेंढक बना रहेगा। शास्त्रों में कहा गया है-'चरैवेति चरैवेति'। ऐतरेय ब्राह्मण में लिखा है- 'चरन वै मधु विंदती अर्थात घूमते हुए घुमड़ अनुभवरूपी मधु का संचय करता चलता है। पुस्तक की भाषा-शैली सरल है। वर्णन जीवन्त है। यदि पाठक की रुचि है तो उसका साधारणीकरण सहज ही हो जाएगा। आशा है कि पाठक इस संग्रह का स्वागत करेंगे।
दिल्ली विश्वविद्यालय से एम-ए-, एम-लिट्-, पी-एच-डी। इसी विश्वविद्यालय के रामलाल आनन्द कॉलेज में तैतीस वर्षों तक अध्यापन। कुछ वर्ष विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर शिक्षण तथा शोध-निर्देशन से भी जुड़े रहे। 2004 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से अवकाश ग्रहण। सम्प्रति स्वान्तः सुखाय लेखन।
प्रवृत्ति से घुमक्कड़ा देश के लगभग सभी राज्यों में घूमे हैं। 1978-79 में जर्मनी (तब पश्चिमी जर्मनी) में लम्बा प्रवास। उस समय बेल्जियम, नीदरलैंड्स, इंग्लैंड आदि निकटस्थ देशों की यात्राएँ की। वर्ष 2015 में पुनः नीदरलैंड्स, स्कॉटलैंड तथा स्विट्जरलैंड में डेढ़ माह तक रहे और घूमे।
प्रकाशित पुस्तकें : जैनेन्द्र के उपन्यासों का शिल्प, हिन्दी भाषाः प्रयोग के स्तर, पच्चीस उपन्यासः नाटकीयता के निकष पर, नाटकीय तत्त्वः व्याख्या और व्याप्ति, प्रेमचन्दोतर उपन्यासों में नाटकीय तत्त्व (शोध- आलोचना), जयशंकर प्रसादः नवीन मूल्यांकन (बोस्टन से प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद, दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रकाशित), कण में कायनात (हाइकु-काव्य), संगीत शिरोमणि मल्लिकार्जुन मंसूर (अंग्रेज़ी से अनुवाद, कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ द्वारा प्रकाशित), आधुनिक हिन्दी, साहित्य, आलोचना-प्रसंग (आलोचना)। कुछ आखिरी नहीं होता (कविता संग्रह), बच्चे नहीं जानते (कविता-संग्रह), बिन्दु में सिंधु (हाइकु-संग्रह), पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
इधर यात्रा संस्मरण लेखन में प्रवृत्त। यह प्रथम यात्रा-वृत्तान्त संग्रह है। सम्पर्क : सी-4 बी/110 (पॉकेट-13), जनकपुरी, नई दिल्ली-110058 दूरभाष : 011-25548799, 25598799, 9870103433
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