रतिशास्त्रं विना देवि नास्ति शास्त्रं धरातले ।
तस्मिन्तिष्ठति पृथ्वी च तस्मिन्नेव जगत्त्रयम् ।।
ब्रह्मा शिवश्च विष्णुश्च इन्द्रादयोऽ सुरद्विषः ।
चिन्तयन्ति सदा सर्वे शास्त्रमेतत्सुखावहम् ।।
'हे देवि ! इस धरातल पर रतिशास्त्र जैसा कोई शास्त्र नहीं है। यह पृथ्वी और तीनों भुवन उसीके आधार पर स्थित है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा असुरों के शत्रु इंद्रादि देवता भी, नित्यं सुखदायक (ऐसे) इस शास्त्र का ही चिंतन करते हैं।'
मनुष्य देव और दानव के बीच की प्रजाति है। मनुष्य से ही देव बना जा सकता है और मानव ही दानव भी बन सकता है। ये देव, दानव और मानव तीनों के लिए सृष्टिकर्ता ने पुरुषार्थ चतुष्टय के रूप में एक नियत संविधान प्रस्तुत किया होने की बात, हमारें शास्त्रों में पाई जाती है। जिनमें से धर्म, अर्थ और काम का उचित आचरण मनुष्य को देव और अनुचित आचरण दानव बनाता है। इसी कारण धर्म, अर्थ और काम के त्रिवर्ग का मनुष्यजीवन में अतिशय महत्त्वपूर्ण स्थान और उपयोगिता है। इन तीनों के द्वारा ही मनुष्य की वैयक्तिकता तथा सामाजिकता सुव्यवस्थित होती है। इसलिए, धर्म को धारण करने के लिए धर्मशास्त्र का ज्ञान जरूरी है, अर्थ को प्राप्त करने के लिए अर्थशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है, वैसे ही काम को पाने के लिए कामशास्त्र के अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है। भारत के अध्यात्म को संसार में अद्वितीय माना जाता है, किन्तु उसका कामशास्त्र भी समस्त विश्व को भारत की और से मिली हुई अनमोल सौगाद है। आज Google या Internet में किसी भी आध्यात्मिक ग्रन्य से अधिक वात्स्यायन के 'कामसूत्र' विषयक Search और Likes का प्रमाण कई गुना ज्यादा है। इतना ही नहीं, भारतीय कामशास्त्र की सम्पूर्णता और वैज्ञानिकता ने समस्त बुद्धिजीवियों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। ऐसे कई कामशास्त्रीय सिद्धांतों का आकलन और निश्चय भारतीय कामाशास्त्रियों ने किया है, जिनके सामने आज भी दुनियाभर के मनोवैज्ञानिक और शरीरशास्त्री नतमस्तक हैं। इसका कारण यह है कि एक स्थिर, प्रसन्न और दीर्घजीवी दाम्पत्यजीवन का उत्कृष्ट प्रतीक, भारतीय कामशास्त्र ने विश्व के सामने प्रस्तुत किया है। और भारत के उस महिमामण्डित दाम्पत्य का आधार, और भारत के उस महिमामण्डित दाम्पत्य का आधार, उसके कामशास्त्रीय सिद्धांत ही है। धर्म और अर्थ गार्हस्थ्यजीवन को टिकाने के लिए आवश्यक ही है, परंतु यदि पति और पत्नी के बीच में आपसी आकर्षण और प्रेम नहीं होगा अथवा सुखी दाम्पत्य के लिए आवश्यक आतंरिक और साहजिक संकलन नहीं होगा, तो वह दोनों ना तो धर्म के मार्ग में एक-दूसरे का सहयोग कर सकेंगें और ना ही अर्थ का सुचारू उपभोग और संकलन कर सकेंगें। उन दोनों के बीच उस प्रकार के संकलन को साधने का कार्य कामशास्त्र करता है। धर्म और अर्थ उन दोनों को जोड़े रखते हैं, परंतु आतंरिक भावों की गहनता तो काम के द्वारा ही उत्पत्र होती है। कामशास्त्र का मुख्य उद्देश्य धर्म और अर्थ के विनियोग के साथ काम का उपभोग कर, व्यक्ति के दाम्पत्यजीवन को रसिक और टिकाऊ बनाने का है। वात्स्यायन के 'कामसूत्र' का प्रथम सूत्र ही 'धर्मार्थकामेभ्यो नमः ।।' है, किन्तु ऐसा महत्त्वपूर्ण शास्त्र ही जब समाज के अंतर्गत अंतःस्रोत बनकर बह रहा हो, तब उसमें नुकसान समाज का ही होता है। समाज के निषेधात्मक रवैयों के कारण, हमारे यहाँ कामशास्त्रीय क्षेत्र में उचित विवेचन का सदंतर अभाव रहा है। ऐसा होने में अनेक कारणों का सहयोग है। उनमें से एक तो यह है कि, ऐसे दाहक विषय में हस्तक्षेप कर के अपनेआप को कौन जलाएगा? और दूसरा, अपनी दाम्भिक शिष्टता का चित्र दूषित होने का भय। कुछ पारंपरिक सुग भी भी इसमें कारणभूत होती है। संस्कृत भाषा के श्रृंगारपूर्ण वर्णनों को पढ़ना हमें अच्छा लगता है, दिवास्वप्नों को सज़ाकर उसमें नायक या नायिका के रूप में स्वयं को स्थापित करना भी हमको अच्छा लगता है; परंतु हमारे जन्म और अस्तित्व में जो समवायी कारण है, उसकी चर्चा करने से भी हम कतराते हैं। हमारे कामशास्त्रीय ग्रंथों में निरूपित काम का केंद्र सूक्ष्म है, परंतु उसका व्याप विशाल है। भारतीय 'काम' पाश्चात्य 'Sex' के जैसा व्यक्तिकेन्द्रित नहीं है, उसकी नज़रों में समष्टि का चितार है। 'Sex' शब्द के मूल में नियतकालिकता (periodicity) का भाव है, जबकि भारतीय 'काम' सातत्यपूर्ण (consistency) और अनंत (endless) है। 'Sex' केवल शरीर की भूख को मिटाता है, परंतु 'काम' शरीर के साथ मन और आत्मा को भी संतुष्टि प्रदान करता है। यह 'काम' ही एक ऐसा तत्त्व है, जो व्यक्ति को पुनः प्रकृति या पुरुष के साथ प्रत्यक्षरूप से जोड़ता है।
जीवन की सफलता या निष्फलता अथवा पूर्णता और अपूर्णता का नापन, आनंदानुभूति के द्वारा अच्छे से किया जा सकता है। व्यक्ति आजीवन अनेक विषयों से जुड़ा रहता है। विषयों के द्वारा प्राप्त होने वाला आनंद, उसको जीवन के साथ जोड़े रखता है। अन्य के साथ जुड़े रहने में, उसको जीवन की सार्थकता दिखती है। यहीं कारण है कि वह जीवनभर विभिन्न कामनाओं से भरा पात्र बनकर रह जाता है।
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