आन्ध्रों की भाषा, आन्ध्रों की मिट्टी श्रीराम की पावन चरण-धूलि से पवित्र बनी है। आन्ध्रों की भाषा में, आन्ध्रों की संस्कृति में, आन्ध्रों के जीवन विधान में, आन्ध्रों की सॉस-साँस में राम तत्त्व फैला हुआ है। पावन गोदावरी नदी, पर्णशाला, दण्डकारण्य, भद्राचल श्रीराम-लक्ष्मण की मूर्तियों आदि आन्ध्रों की अमूल्य सम्पदा हैं। श्रीराम के बहुमूल्य जीवन के उन पलों का आन्ध्रों की मिट्टी में समा जाना उन का सौभाग्य है। इस का यही प्रमाण है कि आन्ध्रों के साहित्य में, कलाओं में और जीवन में श्रीराम परावर्तित हुए हैं। श्रीराम के नामधारी पुरुष, सीता के नामधारी नारी वर्ग, श्रीराम के नामधारी गाँव, गलियाँ, नगर, कॉलोनी, मण्डल आदि आन्ध्रों के श्रीराम के प्रति समर्पण के सूचक हैं। आन्ध्रों के लिए यह गौरव की वात है कि साहित्य के सभी रूपों में राम कथा प्रस्तुत हुई है। क्या पद्य, क्या गद्य काव्य, कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, आलोवना, निवन्च, लोक साहित्य आदि सभी साहित्यिक रूपों में राम कथा अभिवर्णित है। आन्धों के लिए यह गौरव की बात है कि तेलुगु में समृद्ध राम काव्य परम्परा प्राप्त होती है। प्राचीन एवं मध्य युग में राम से सम्बन्धित अनेक महाकाव्य रचे गए हैं। रंगनाथ रामायण, भास्कर रामायण, मोल्ल रामायण, निर्वचनोत्तर रामायण, उत्तर रामायण आदि इस की पुष्टि करते आज भी काव्य रत्न के रूप में आन्ध्रों की गली-गली और गाँव-गाँव में रामकथा को फैलाते देखे जा रहे हैं। आन्ध्रों की यह विशेषता भारतीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता को परिपुष्ट करती है।
'भारतीय भाषाओं में रामकथा श्रृंखला की इस पुस्तक को तेलुगु रामकथा पर केन्द्रित किया गया है जिसमें तेलुगु रामकथा के 46 मर्मज्ञ विद्वानों के आलेखों का हिन्दी अनुवाद संकलित किया गया है। हिन्दी भाषा के माध्यम से यह पूरी सामग्री पाठकों को तेलुगु रामकथा के विविध पहलुओं की जानकारी देगी और रामकथा को देखने-परखने की नयी दृष्टि भी प्रदान करेगी।
प्रो. रेड्डी ने श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय तिरुपति में लगभग 32 वर्ष आचार्य के रूप में, डीन के रूप में एवं उप प्राचार्य के रूप में अमूल्य सेवाएँ प्रस्तुत की हैं। 2014 में ही सेवानिवृत्ति के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एमिरिटस प्रोफेसर के रूप में उन की पहचान बनायी है। सेवानिवृत्ति के तदुपरान्त भी वे शोध और लेखन कार्य में कार्यरत हैं। उन की कलम से अब तक 17 पुस्तकें प्रकाश में आयी हैं। और भी कई पुस्तकें मुद्राणाधीन हैं। लगभग सौ से भी अधिक पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में प्रकाशित शोध-पत्र उन की शोध-निष्ठा के प्रमाण हैं। 80 से भी अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में उन्होंने शोध लेख प्रस्तुत किये हैं। हिन्दी और तेलुगु : तुलनात्मक अध्ययन उनके शोधाध्ययन का एक प्रमुख आयाम है। लोक साहित्य के संग्रह कार्य में भी उन की रुचि रही है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी व्यंग्य साहित्य एवं कथा साहित्य पर अनेक गम्भीर समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं। उन्हीं के परिणाम स्वरूप अप्रैल 2016 में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के हाथों से 'सुब्रह्मण्यम भारती राष्ट्रीय पुरस्कार' प्राप्त । अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या के सौजन्य से एक ही बार तीन पुस्तकें 1. भारतीय भाषाओं में राम कथा : तेलुगु भाषा (तेलुगु) 2. भारतीय भाषाओं में राम कथा : तेलुगु भाषा (हिन्दी) 3. आन्ध्र लोक साहित्य में उत्तर रामायण (हिन्दी) का प्रकाशन और लोकार्पण उनके शोध-समर्पण के साक्ष्य हैं।
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