हमारी 'चरित्र निर्माण दीपमाला' का यह तीसरा दीप-राहें बदल गयीं प्रस्तुत करते समय हमें विशेष हर्ष हो रहा है। इससे पहले प्रकाशित दो अन्य रचनाएं तिरस्कार और यमराज हार गया पाठकों को बहुत पसंद आई। हमारा प्रकाशन मानवोत्थान एवं चरित्रनिर्माण के लिए कृतसंकल्प है। सरल तथा भाव-प्रण शैली में पाठक के अंतर्जगत में अमृत संचार करने वाली हमारी यह दीपमाला तो विशेष रूप से इसी उद्देश्य से प्रकाशित की जा रही है।
'राहें बदल गयीं' परम भक्त प्रहलाद की कहानी है जिसे विचार-वान और विवेकी लेखक ने तर्क संगत शैली में अत्यंत भावक परिवेश में रचा है। संसार में बढ़ती कुटिलता, आचारहीनता और शक्ति व सम्पदा के अहंकार ने कितनी बार धरती पर जन्मे 'मनुष्य' नामक प्राणी की बुद्धि को फेर कर उससे ऐसे जघन्य कार्य कराए हैं जिन्हें पढ़ते समय रोंगटे खड़े हो जाते हैं। परन्तु ये घटनाएं सच हैं और इसी धरती पर घटी हैं। प्रहलाद पर उसके पिता हिरण्यकशिपु ने दिल दहलाने वाले अत्याचार इसी धरती पर किए थे। और उसका परिणाम उसके लिए कितना घातक हुआ; अपने दृढ़ संकल्प, सच्चरित्र एवं सद्विचारों की शक्ति से प्रहलाद ने सब सहा और वह अग्नि में तपे हुए स्वर्ण-आभूषण की तरह असुर जाति में महान बनकर उभरा।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist