पुस्तक के विषय में
तुलसीदास असाधारण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे उनका मस्तिष्क और हृदय दोनों ही अत्यन्त उदार और विशाल थे। तुलसी महाकवि, काव्यस्रष्टा ओर जीवनदृष्टा थे अपने काव्य के लिए उन्होंने उदात्त रामचरित और रामभक्ति का विषय चुना गोस्वामीजी ने रामकथा को माध्यम बनाकर सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक परिस्थितियों को नया मोड़ दिया और जनता के नैतिक मनोबल को थामें रखा उन्होंने विभिन्न विषयों पर विभिन्न सन्दर्भों में सूक्तियों का प्रयोग किया है रामचरित मानस सूक्तियों का अनुपम भंडार है । उनकी प्रत्येक सूक्ति प्रासंगिक है ऐसी कोई सूक्ति नहीं जो आज जीवन-मूल्यों को फीका करती हो ।
तुलसीदास पर अब तक अनेक ग्रंथ लिखे जा चुके हैं । बहुत से शोध हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे । ऐसी कोई भी कृति तुलसी की नहीं बची जिस पर न लिखा गया हो परन्तु सन्दर्भ सहित तुलसी की सूक्तियों का संकलन अब तक नहीं हुआ कुछ विद्वानों ने यथा डॉ. दीपचन्द्र और डॉ. सरोज गुप्ता ने रामचरित मानस की सूक्तियों पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किए न तो ऐसी कोई रचना ओर शोध ग्रंथ या अन्य कृति उपलब्ध थी जहा तुलसी की समस्त सूक्तियां एक साथ उपलब्ध हो सकें इसी को ध्यान में रखकर तुलसी सूक्ति कोश का संचयन किया गया है इसमें तुलसीदास की तभी प्रामाणिक रचनाओ से सूक्तियाँ संकलित कर आकारादिक्रम से प्रस्तुत की गयी हैं ।
लेखक के विषय में
अनिल कुमार
जन्म : 31 अक्तूबर 1965
शिक्षा : हिन्दी साहित्य में एम.ए. पोस्ट एम०ए० अनुवाद सिद्धांत एवं व्यवहार डिप्लोमा पोस्ट एम.ए. अनुप्रयुक्त (हिन्दी) भाषाविज्ञान डिप्लोमा पोस्ट एम०ए० अनुप्रयुक्त (हिन्दी) भाषा विज्ञान उच्च डिप्लोमा बैचलर डिग्री इन जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन। सम्पादित पुस्तकें लाल किले से (हिन्दी) Lal Quile Se (English) प्रेमचन्द सूक्ति कोश सम्पादन सहयोग तुलसी निर्देशिका रामचरितमानस में शिक्षा दर्शन रामचरितमानस की सूक्तियों का अध्ययन।
सहयोगी लेखक : तीसरा प्रभाकर भारतीय मीडिया अंतरंग परिचय।
आजीवन सदस्य : भारतीय अनुवाद परिषद-ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सम्प्रति उप-सम्पादक हिन्दुस्तान: 18-20 कस्तूरबा गाँधी मार्ग, नई दिल्ली- 110001
भूमिका
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' हिन्दी साहित्य की एक ऐसी अमूल्य निधि है जो अपने रचनाकाल से आज तक भारतीय समाज का पथ प्रदर्शन करती आ रही है और भविष्य में भी करती रहैगी । लोक कल्याण की भावना से लिखित इस रचना का भारत और विदेशों में जितना सम्मान है उतना हिन्दी की किसी साहित्यिक रचना का नहीं है ।
समस्त उत्तरी भारत में यह रचना धर्मग्रंथ के रूप में पूज्य है । समाज के सभी श्रेणी के लोग बड़ी श्रद्धा से अपने घरों में इसका पाठ करते हैं, जीवन की सभी समस्याओं का समाधान उन्हें रामचरितमानस में मिल जाता है ।
तुलसीदास ने भगवान राम को आदर्श लोकनायक के रूप में चित्रित किया है। उनके विविध कर्मो में लोक-कल्याण की भावना के दर्शन होते हैं । उनकी स्पष्ट मान्यता है कि-
कीरति भनिति भूति भल सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित कोई ।।
(मानस- 1/14/9)
अर्थात् यश कविता और वैभव वही श्रेष्ठ है, जिससे गंगा के समान सबका कल्याण हो । इस दृष्टिकोण से तुलसी का साहित्य सभी प्रकार के व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। ऊँच-नीच योग्य-अयोग्य सभी उसमें से अपने काम की बातें निकाल सकते हैं । यही कारण है कि तुलसी का रामचरितमानस झोपड़ी से लेकर राजप्रासाद तक समान रूप से समादृत होता है । साधारण मनुष्यों की दृष्टि में मानस की महत्ता इसलिए है कि उसमें पारिवारिक सामाजिक और राष्ट्रीय आदर्शों की स्थापना की गई है । रामकथा में हमारी प्रत्येक परिस्थिति का समावेश है और हमारी सभी समस्याओं का समाधान भी दिया हुआ है ।
गोस्वामी जी ने रामकथा को माध्यम बनाकर सामाजिक राजनीतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों को नया मोड़ दिया और जनता के नैतिक मनोबल को थामें रखा। उनके काव्य में विभिन्न विषयों पर विभिन्न संदर्भों में सूक्तियों का प्रयोग है। रामचरितमानस सूक्ति-रत्नों का अनुपम भंडार है । उनकी प्रत्येक सूक्ति प्रासंगिक है। ऐसी कोई सूक्ति नहीं जो आज जीवन-मूल्यों को फीका करती हो । मानस के अतिरिक्त तुलसीदास की अन्य रचनाओं में भी सूक्ति-रत्नों की छटा दर्शनीय है ।
समाज में विद्वान का सम्मानित पद रहा है । विद्वान किसी का उपहास नहीं करता । प्रत्येक का उपकार करना ही उसका परम लक्ष्य है । तुलसीदास ने विद्वान की महत्ता को तो स्वीकार किया है किन्तु उसका विनम्र होना भी सराहा है । विद्वान की गरिमा विनम्रता में है-
बरषहिँ जलद भूमि नियराएँ । जथा नवहिँ बुध बिधा पाएँ ।।
(मानस-4/14/3)
उपयुक्त समय पर धन आदि से सहायता करना अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होता है । दोहावली में इस तथ्य का प्रतिपादन करते हुए गोस्वामी लिखते हैं-
अवसर कौड़ी जो चुकै, बहुरि दिए का लाख?
दुइजन चंदा देखिए, उदै कहा भरि पाख ।।
(दोहावली-344)
'तुलसी सूक्ति कोश' पढ़कर मुझे अति प्रसन्नता हुई । जहाँ तुलसी कृत रामचरितमानस भारतीय साहित्य में अद्वितीय ऊर्जा का संवर्धन करती है वहीं रूस और चीन के लोगों ने भारत को रामचरितमानस के अनुवाद द्वारा ही जाना । रामचरितमानस का रूसी अनुवाद एलेक्स बारान्निकोव और चीनी अनुवाद डॉ० जिंगडिंग हन ने प्रस्तुत किया । भारतीय जीवन और संस्कृति को जानने और सीखने के लिए इन अनुवादों ने रूस और चीन के लोगों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया । भारत से मॉरीशस । सूरीनाम, त्रिनिदाद ब्रिटीश गुआना दक्षिण अफ्रीका और अन्य स्थानों पर श्रमिक के रूप मैं गए भारतीयों को रामचरितमानस दु:ख, कठिनाई के समय में सात्वना प्रदान करता था ।
अनिल कुमार ने तुलसीदास की सभी रचनाओं से सूक्तियाँ चुनकर अनुपम संग्रह तैयार किया है। तुलसी की सूक्तियाँ जहाँ एक ओर किसी न किसी रूप में घरेलू जीवन में प्रयोग की जाती हैं वहीं दूसरी तरफ ये सूक्तियाँ मानव-जीवन के कल्याण और सुधार में सहायक हैं । जब मैं तुलसी के रामचरितमानस पर शोध कार्य कर रही थी तब मैंने भी सूक्तियाँ का अध्ययन किया जो ज्ञान का भंडार हैं । कुछ सूक्तियाँ तो आज भी मन-मस्तिष्क पर छाई हुई हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं कि अनिल कुमार द्वारा संकलित-सम्पादित 'तुलसी सूक्ति कोश' हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी ।
शब्द संक्षेपण
1
तुलसी ग्रन्थावली
तु०ग्र०
2
रामचरितमानस
राचमा
3
बालकाण्ड
बा०
4
अयोध्याकाण्ड
अयो०
5
अरण्यकाण्ड
अर०
6
किष्किन्धाकाण्ड
कि०
7
सुन्दरकाण्ड
सु०
8
लंकाकाण्ड
ल०
9
उत्तरकाण्ड
उ०
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