सम्पादकका निवेदन
तत्त्व चिन्तामणिके पहले भागकी भूमिकामें यह आशा प्रकट की गयी थी कि इस सरल भाषामें लिखी हुई तत्त्वपूर्ण पुस्तकका अच्छा आदर होगा और लोग इससे विशेष लाभ उठावेंगे । आनन्दकी बात है कि वह आशा विफल नहीं हुई । तत्त्व चिन्तामणिका वह पहला भाग शीघ्र ही समाप्त हो गया और अब उसका दूसरा संशोधित संस्करण भी निकल गया है । यह ग्रन्ध उसीका दूसरा भाग है । पहले भागकी अपेक्षा इसमें प्राय दूने पृष्ठ हैं । तत्त्व ज्ञानके बहुत ऊँचे सिद्धान्तोंका सरल भाषामें बोध करा देनेवाले लेख तो इसमें हैं ही, साथ ही कुछ ऐसे लेख हैं जिनमें भ्रातृ धर्म और पातिव्रत धर्मपर भी विस्तारसे प्रकाश डाला गया है । इससे यह पुस्तक तत्व विचारपूर्ण होनेके साथ साथ सरल, व्यावहारिक शिक्षा देनेवाली और सस्ती होनेके कारण सबके कामकी वस्तु हो गयी है । मेरी प्रार्थना है कि इस कन्दको पाठक पाठिकागण मननपूर्वक पढें और इससे पूरा लाभ उठावें ।
विनय
इस दूसरे भागमें भी कल्याणके प्रकाशित लेखोंका ही संग्रह है । पहले भागको लोगोंने अपनाया इसके लिये मैं उनका आभारी हूँ । यहाँ मैं पुन इस बातको दुहरा देना चाहता हूँ कि मैं न तो विद्वान् हूँ और न अपनेको उपदेश, आदेश एवं शिक्षा देनेका ही अधिकारी समझता हूँ । मैं तो एक साधारण मनुष्य हूँ । श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीभगवन्नामके प्रभावसे मैंने जो कुछ समझा है, उसीका कुछ भाव अन्तर्यामीकी प्रेरणासे लिखनेका प्रयत्न किया गया है । वास्तवमें यह उसी अन्तर्यामीकी वस्तु है, मेरा इसमें कोई अधिकार नहीं है ।
मेरा सभी पाठकोंसे सविनय निवेदन है कि वे कृपापूर्वक इन निबन्धोंको मन लगाकर पढ़ें और इनमें रही हुई त्रुटियाँ मुझे बतलावें ।
विषय सूची
1
मनुष्यका कर्तव्य
7
2
हमारा कर्तव्य
13
3
धर्मकी आवश्यकता
24
4
शीघ्र कल्याण कैसे हो?
29
5
संध्योपासनकी आवश्यकता
40
6
बलिवैश्वदेव
43
एक निवेदन
46
8
भगवत्प्रप्तिके विविध उपाय
48
9
श्रद्धा और सत्संगकी आवश्यकता
70
10
ईश्वर सम्बन्धी वक्ता और श्रोता
76
11
महात्मा किसे कहते हैं?
81
12
महापुरुषोंकी महिमा
93
जन्म कर्म च मे दिव्यम्
101
14
भगवान्का अवतार शरीर
116
15
भगवान् श्रीकृष्णका प्रभाव
122
16
ईश्वर दयालु और न्यायकारी है
134
17
भगवान्की दया
145
18
ईश्वर सहायक हैं
157
19
प्रेमसे ही परमात्मा मिल सकते हैं
159
20
प्रेमका सच्चा स्वरूप
169
21
आत्मनिवेदन
183
22
ध्यानकी आवश्यकता
193
23
भक्तराज प्रह्लाद और ध्रुव
197
भावनाके अनुसार फल
199
25
सत्यकी शरणसे मुक्ति
202
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